प्रदूषण से घुटती सांसों को नेचुरल सिटी फॉरेस्ट में मिलेगी ‘ऑक्सीजन’ Meerut News
शहर में रहकर भी आप प्रकृति के करीब रह सकेंगे और उसका अहसास कर सकेंगे। इसका तोहफा इसी साल मिल जाएगा। यह मुमकिन होगा ‘नेचुरल सिटी फॉरेस्ट’ में।
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। शहर में रहकर भी आप प्रकृति के करीब रह सकेंगे और उसका अहसास कर सकेंगे। इसका तोहफा इसी साल मिल जाएगा। यह मुमकिन होगा ‘नेचुरल सिटी फॉरेस्ट’ में। इसे विकसित करने के लिए एमडीए ने शताब्दीनगर में जमीन चिह्न्ति कर ली है। यहां सेक्टर-चार में 10 एकड़ जमीन पर यह फॉरेस्ट विकसित होगा। सिटी फॉरेस्ट गाजियाबाद में विकसित किया जा चुका है, उसी तर्ज पर यहां भी किया जाएगा। एमडीए के चीफ इंजीनियर दुर्गेश श्रीवास्तव ने बताया कि वीसी के निर्देश पर इसकी कार्ययोजना बनाने का कार्य भी शुरू कर दिया गया है। जल्द इसे मूर्त रूप देने की योजना है।
शहर के लिए होगा ऑक्सीजन बैंक
शहर को ऑक्सीजन देने व सैर करने वालों के लिए यह सिटी फॉरेस्ट बेहतर विकल्प होगा। शताब्दीनगर में प्रदूषण और वाहनों का दबाव भी नहीं है। शताब्दी नगर वैसे भी हरा-भरा है, ऐसे में फॉरेस्ट के विकसित हो जाने से वहां एक बड़ा ऑक्सीजन बैंक तैयार हो जाएगा। इससे शहर की हवा साफ होने में भी सहायता मिलेगी। दैनिक जागरण चौराहे के पास संजय वन भी सिटी फॉरेस्ट है, जहां शहर के लोग अक्सर घूमने जाते हैं। इससे शहर को काफी ऑक्सीजन मिल जाती है।
शासन का है निर्देश
सभी बड़े शहरों में सिटी फॉरेस्ट विकसित करने का निर्देश पिछले साल ही शासन ने दिया था। इसके तहत पिछले साल भी कवायद शुरू हुई थी, लेकिन कुछ समय बाद प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, लेकिन अब फिर से इसकी तैयार होनी शुरू हुई है। इसके लिए या तो शासन से धनराशि मांगी जाएगी या फिर एमडीए अपनी अवस्थापना निधि से इस पर खर्च करेगा।
बस कैलेंडर बदलता रहा..प्रदूषण का हाल वही है
वायु प्रदूषण अब सर्दियों की मोहताज नहीं रहा। पिछले तीन माह से प्रदूषण का स्तर समान बना हुआ है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि अक्टूबर से दिसंबर तक प्रदूषण के स्तर में कोई फर्क नहीं आया है। पारा 30 से 12 डिग्री तक गिरने के बावजूद हवा में पीएम2.5, पीएम10, वायु गुणवत्ता सूचकांक समेत अन्य प्रदूषण की मात्र तकरीबन समान मिली। आइए विस्तार से जानते हैं इस रिपोर्ट में..
ये है बचाव
एन-95 मास्क पहनें। फ्लू का टीका लगवाएं। छींकने, खांसने वाले के पास न खड़े हों। भोजन से पहले हाथ को देर तक धोएं। अस्पतालों में बिना वजह प जाएं। नमक-पानी का गरारा करें। गुड़ का सेवन करें। तुलसी की पत्ती की काली चाय पिएं। आंवला, अदरक, हल्दी, दालचीनी का सेवन बढ़ाएं।
बड़ी खतरनाक है ऐसी स्थिति
रिसर्च करने वाली संस्था सेंटर फार साइंस एंड इन्वायरमेंट के वैज्ञानिकों का कहना है कि पारा गिरने से वायु दाब बढ़ता है। प्रदूषित कण निचली परत में तैरने लगते हैं। इसमें कोहरा मिलने से स्मॉग बन जाता है, जो सांस के मरीजों के साथ ही जीवों एवं पेड़-पौधों के लिए खतरनाक है।
इनका कहना है
तापमान कम होने पर पार्टीकुलेट मैटर हवा में नीचे पहुंच जाते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। किंतु एनसीआर में गर्मियों में भी धूलकण, औद्योगिक कारोबार एवं वाहनों के अंधाधुंध संचालन से 28-30 डिग्री ताप में भी प्रदूषण मिल रहा है।
- अनुमिता राय चौधरी, वैज्ञानिक, सेंटर फार साइंस एंड इन्वायरमेंट
वैज्ञानिक भी हैरान हैं
सर्द मौसम में पीएम2.5 का स्तर तेजी से बढ़ता है। गत दिनों इसका असर नजर भी आया, जब हवा की गुणवत्ता का इंडेक्स 500 पार कर गया। इस दौरान पीएम2.5 का स्तर 400 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा मिला। अक्टूबर से दिसंबर के बीच तीन माह में 15 से 22 तारीख के बीच के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिक भी हैरान हैं कि वायु गुणवत्ता सूचकांक यानि एक्यूआइ के स्तर पर में सर्द मौसम का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। या यूं कहें कि बिना सर्द मौसम के भी हवा खराब हो सकती है। चिमनियों, वाहनों, ब्वॉयर, बायोमास और कचरा जलाने से निकले गैसकणों का घनत्व ज्यादा है। ये कण वायुमंडल में सांस की परत में पहुंच चुके हैं।
ये बढ़ रही बीमारियां
अस्थमा, सांस की एलर्जी, एलर्जिक ब्रांकाइटिस, साइनोसाइटिस, सीओपीडी, गले में खराश, बुखार, याददाश्त में कमी, सिर दर्द, स्किन की एलर्जी व हार्ट अटैक।
ये हैं प्रदूषक
पीएम1, पीएम2.5, पीएम10, कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, अमोनिया, ओजोन, नाइट्रोजन डाई आक्साइड, बेंजीन, धूलकण व दर्जनों प्रकार के एलर्जेन।