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लोकसभा चुनाव 2019: जीत का रास्‍ता बनता है बूथ मैनेजमेंट

भाजपा बूथ कमेटियों या बूथ के मतदाताओं तक पहुंच रखने के लिए बूथ मैनेजमेंट का नाम देती है। भाजपा की ही तरह अब कांग्रेस में भी बूथ मैनेजमेंट पर काम होने लगा है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 05:34 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 05:34 PM (IST)
लोकसभा चुनाव 2019: जीत का रास्‍ता बनता है बूथ मैनेजमेंट
लोकसभा चुनाव 2019: जीत का रास्‍ता बनता है बूथ मैनेजमेंट
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। चुनाव में बूथ कार्यकर्ताओं की भूमिका की बात हमेशा होती है। सभी पार्टियां बूथ कार्यकर्ताओं से आह्वान करती हैं धरातल पर मेहनत करने के लिए। इसीलिए ज्यादातर पार्टियों का यही नारा होता है कि 'बूथ जीतो चुनाव जीतो'। यानी अगर एक-एक बूथ कोई प्रत्याशी जीत जाए तो उसकी संबंधित सीट पर जीत निश्चित है इसीलिए पार्टियां बूथ कमेटियां बनाती हैं। बूथ यानी मतदेय स्थल। एक बूथ के अंतर्गत आने वाले कार्यकर्ताओं को ही इस कमेटी में रखा जाता है। भाजपा बूथ कमेटियों या बूथ के मतदाताओं तक पहुंच रखने के लिए बूथ मैनेजमेंट का नाम देती है। भाजपा की ही तरह अब कांग्रेस में भी बूथ मैनेजमेंट पर काम होने लगा है। बसपा व सपा की भी बूथ कमेटियां हैं।
इस तरह से काम करते हैं बूथ कार्यकर्ता
सभी पार्टियों में बूथ कमेटियों में सदस्यों की संख्या व उसकी रूपरेखा अलग-अलग होती है। भाजपा में तो पन्ना प्रमुख व भवन प्रमुख भी होते हैं। पन्ना प्रमुख यानी मतदाता सूची के एक पन्ने पर जितने मतदाता होते हैं, उनके संपर्क में रहने व उन्हें मतदान के दिन बूथ तक लाने की जिम्मेदारी इन्हें दी जाती है। इसी तरह से भवन प्रमुख किसी परिवार के सभी सदस्यों को मतदान स्थल तक ले जाने में भूमिका निभाता है। कमेटी में शामिल लोग बूथ एजेंट बनते हैं। कोई भोजन सामग्री के इंतजाम में होता है तो कोई मतदाताओं को लाने-ले जाने में लगा होता है। कुछ लोग बूथ की गतिविधि की जानकारी संगठन व प्रत्याशी तक पहुंचाने के लिए होते हैं।
इस तरह से होता है बूथ कार्यकर्ताओं का मैनेजमेंट
भाजपा की 20 सदस्यीय बूथ कमेटी में एक बूथ अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व अन्य पद होते हैं। कांग्रेस की भी 10 सदस्यीय बूथ कमेटी होती है। सपा की 10 सदस्यीय कमेटी में एक बूथ प्रभारी व बाकी सदस्य होते हैं। बसपा में 22 सदस्यीय कमेटी में एक अध्यक्ष, छह सचिव व 15 सदस्य होते हैं। बूथ कमेटियों का गठन किसी पार्टी का प्रत्याशी नहीं बल्कि संगठन करता है। सभी पार्टियां अपना प्रारूप बनाती हैं। जैसे कि भाजपा में यह भी अनिवार्यता है कि कमेटी में मोटरसाइकिल वाले, सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले भी हों। महिला, एससी-एसटी व ओबीसी को रखने का भी निर्देश सभी पार्टियां देती हैं। बूथ कमेटियों में शामिल लोग पार्टी के प्राथमिक सदस्य होते हैं इन्हें किसी भी रूप में पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है।
ऐसे बनती है चेन और पहुंचता है संदेश
भाजपा : बूथ-वार्ड-मंडल-महानगर/ जिला- क्षेत्र- प्रदेश- केंद्रीय बॉडी।
कांग्रेस : बूथ कमेटी-वार्ड कमेटी-ब्लॉक कमेटी-ब्लाकों के प्रभारी-महानगर/जिला- पीसीसी डिवीजन-प्रदेश कमेटी
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी।
सपा : बूथ- सेक्टर- विधानसभा क्षेत्र- महानगर/जिला-स्टेट- केंद्रीय
बसपा : बूथ-सेक्टर-विधानसभा क्षेत्र-महानगर/जिला-मंडल कोर्डिनेटर-जोन कोर्डिनेटर-स्टेट-केंद्रीय
संदेश प्रेषण: इसी चेन के जरिए उन तक संदेश पहुंचता है और इसी चेन के जरिए वे आगे संदेश प्रेषित करते हैं। 

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