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मिशन-2019 के लिए पश्चिमी उप्र की सियासी हवा बदलने में जुटी भाजपा

प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक मेरठ में होने के पीछे कुछ मकसद हैं और कुछ मजबूरियां भी। मेरठ का संदेश पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश तक जाता है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 08:33 PM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 08:31 AM (IST)
मिशन-2019 के लिए पश्चिमी उप्र की सियासी हवा बदलने में जुटी भाजपा
मिशन-2019 के लिए पश्चिमी उप्र की सियासी हवा बदलने में जुटी भाजपा

मेरठ (जेएनएन)। प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की दो दिनी बैठक मेरठ में यूं ही नहीं हो रही है। इसके पीछे कुछ मकसद हैं और कुछ मजबूरियां भी। मेरठ का संदेश पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश तक जाता है, इसलिए क्रांति की यह भूमि भाजपा के पूरे संगठन को यहां खींच लाई। पश्चिम में ही कैराना लोकसभा सीट है, जहां उपचुनाव में भाजपा हार गई।

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मुजफ्फरनगर दंगे के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब महागठबंधन की चुनावी नाव में जाट और मुस्लिम एक साथ सवार दिखे। दलित एजेंडे को लेकर दो अप्रैल को आहूत बंद में सर्वाधिक हिंसा, मुजफ्फरनगर में ही हुई थी। भाजपा का थिंक टैंक गौर से यह सब देख रहा था। रिपोर्ट कार्ड आलाकमान तक पहुंचा तो पार्टी के कान खड़े हो गए। मिशन 2019 का क्या होगा? चिंता उभरी। पूरे पश्चिम को राजनीतिक संदेश देने का समय आ गया था। इसलिए भी कि 2019 का महासमर भी अब ज्यादा दूर नहीं रह गया है।

कैराना की टीस
पहले मोदी, फिर योगी की जीत इस चमत्कार का नतीजा था कि भाजपा समाज के हर वर्ग से वोट खींच लाई थी। अब परिदृश्य बदल चुका है। कैराना गवाह है। भाजपा ने पूरी सरकार उतार दी, संगठन ने डेरा डाले रखा। चुनावी पिच पर बल्लेबाजी के लिए दिग्गजों को उतारा गया लेकिन वे जीतने लायक स्कोर नहीं बना पाए। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती झांकने भी नहीं आईं, फिर भी महागठबंधन ने आसानी से मैच जीत लिया। गोरखपुर के बाद कैराना की हार ने पार्टी को विचलित कर दिया। किसानों की कर्ज माफी और गन्ना भुगतान के दावे भी काम नहीं आए। मानो यही काफी नहीं था। बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई। विडंबना यह कि दोनों सीटों पर भाजपा के वोट बढ़े, लेकिन महागठबंधन से कम पड़ गए। कार्यसमिति बैठक में भाजपा इसी की काट ढूंढ़ रही है। 

मुस्लिम-जाट फैक्टर
पश्चिम में मिशन 2019 को कामयाब बनाने के लिए भाजपा को मुस्लिम-जाट समीकरण का तोड़ ढूंढऩा होगा। जाटों को कैसे अपने पाले में लाया जाए, यह यक्ष प्रश्न बन गया है। पार्टी इसी का उत्तर ढूंढ़ रही है। क्या हिंदुत्व और ध्रुवीकरण की गुगली विपक्ष का विकेट गिरा पाएगी? या फिर जातीय गुणा-भाग को नए सिरे से दुरुस्त करने की जरूरत है। मंथन जारी है।

ओबीसी कार्ड
डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने मेरठ में दावा किया कि पिछड़ा वर्ग पूरी तरह भाजपा के साथ है। किंतु वह भी जानते हैं कि इसके लिए पर्याप्त होमवर्क करना होगा। महागठबंधन का कांटा पूरब से ज्यादा पश्चिम में चुभेगा। इसलिए कि यहां मुस्लिम वोट ज्यादा हैं, जो एकमुश्त विपक्ष की झोली में जाएगा। जाट वोट भी खिसकता दिख रहा है। ओबीसी ही इसकी भरपाई कर सकते हैं। इस वर्ग को कैसे पाला बदलने से रोका जाए, कार्यसमिति के एजेंडे में यह भी है।   

मातादीन वाल्मीकि क्यों
एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में यह दुष्प्रचार किया गया कि भाजपा अनुसूचित जाति का आरक्षण खत्म करना चाहती है। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक सफाई देते रहे लेकिन अफवाहों ने ऐसा जोर पकड़ा कि दो अप्रैल को कई शहर जल उठे। भीम आर्मी जैसा एक नया जातीय संगठन भी खड़ा हो गया। यह भाजपा के लिए नई सिरदर्दी है। जब चुनाव सामने हो, तब पार्टी अनुसूचित जाति के लोगों की नाराजगी मोल नहीं ले सकती। मजबूरी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदलने वाला बिल लाना पड़ा। अनुसूचित जाति को संदेश देने के लिए ही आयोजन स्थन का नामकरण मातादीन वाल्मीकि के नाम पर किया गया है। क्या इससे काम चल पाएगा। सामाजिक समरसता बनी रहेगी, या फिर सवर्णों को भी मनाना पड़ेगा। कार्यसमिति इस पर भी मंथन कर रही है। 

और अंत में
चुनौतियां सामने हैं, समय कम है। फिलहाल राजनाथ सिंह ने 73 से बेहतर का नारा दे दिया है। रविवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सांसदों-विधायकों के साथ माथापच्ची करेंगे। 2019 में भाजपा की नीति-रणनीति क्या होगी, इसे अभी अंतिम रूप दिया जाना है। तब तक इंतजार।


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