भाजपा के हाथ से छूट रही है गुर्जर वोट बैंक की डोर
गुर्जरों के मिजाज ने भाजपा पर दबाव बढ़ा दिया है। पश्चिमी उप्र में कांग्रेस के सचिन पायलट और अवतार सिंह भड़ाना की काट में भाजपा को बड़ा गुर्जर कार्ड खेलना पड़ेगा।
By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 11:46 AM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 11:46 AM (IST)
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। चुनावी जंग को धार देने में जुटी भाजपा नए सियासी चुनौती से गुजर रही है। जहां भगवा रथ रोकने के लिए सपा-बसपा गठबंधन के साथ कांग्रेस भी बड़ी घेरेबंदी में जुटी है, वहीं गुर्जरों के मिजाज ने भाजपा पर दबाव बढ़ा दिया है। पश्चिमी उप्र में कांग्रेस के सचिन पायलट और अवतार सिंह भड़ाना की काट में भाजपा को बड़ा गुर्जर कार्ड खेलना पड़ेगा। माना जा रहा है कि योगी मंत्रिमंडल में गुर्जर चेहरा शामिल किया जाएगा।
जाट बनाम गुर्जर में फंसी भाजपा
भाजपा पश्चिमी उप्र को ध्रुवीकरण की सियासी प्रयोगशाला मानती है। 2014 लोकसभा एवं 2017 विस चुनावों में भाजपा ने गुर्जर, जाट समेत करीब 40 पिछड़े वर्ग की जातियों को अपने साथ जोड़ लिया। चौ. अजीत सिंह से जाट वोटर छिटका तो मायावती के हाथ से गैर जाटव और गुर्जर वोट निकल गए। मुस्लिम मतदाता खुलकर भाजपा के खिलाफ गए, जिससे भगवा खेमे को ध्रुवीकरण का सीधा फायदा हुआ। किंतु 2014 से अब तक जाटों की तुलना में गुर्जर चेहरे हाशिए पर रह गए। 2017 में यूपी में मंत्रिमंडल की रेस में अवतार सिंह भड़ाना समेत सभी पांच गुर्जर दावेदार पिछड़ गए। पश्चिमी यूपी से चौ. भूपेंद्र सिंह एवं मथुरा के लक्ष्मीनारायण सिंह के रूप में दो जाट चेहरे योगी टीम में शामिल किए गए। बागपत सांसद डा. सत्यपाल सिंह केंद्रीय मंत्री व सतपाल मलिक को राज्यपाल बनाया गया।
भाजपा को घेरेंगे भड़ाना
गुर्जरों के बीच बेहतर पकड़ रखने वाले अवतार सिंह भड़ाना लंबे समय से भाजपा नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व प्रदेश संगठन ने भड़ाना को तवज्जो नहीं दी, ऐसे में वो कांग्रेस में चले गए। अगर कांग्रेस ने भड़ाना को मेरठ से चुनावी मैदान में उतारा तो भाजपा के गुर्जर वोट बैंक में बड़ी सेंध लगेगी। वह 2004 में मेरठ से कांग्रेस के टिकट पर सांसद रह चुके हैं। पश्चिमी उप्र की अन्य सीटों पर भी इसका असर दिख सकता है।
गुर्जर चेहरे को शामिल करने का दबाव
पिछले साल लखनऊ में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने 40 ओबीसी जातियों के साथ मंथन कर उन्हें पार्टी से जोड़ने पर होमवर्क किया। इसमें अवतार सिंह भड़ाना ने मंच से गुर्जरों की पैरवी करते हुए भाजपा को कटघरे में खड़ा किया। किंतु मंत्रिमंडल का विस्तार न होने से उनकी आवाज अनसुनी रह गई। अब सपा के सुरेंद्र नागर समेत तमाम गुर्जर चेहरे पश्चिमी उप्र में भाजपा के मतों में सेंधमारी के लिए गांवों में सीधे संपर्क कर रहे हैं। सियासी पंडितों की मानें तो भाजपा मंत्रिमंडल में गुर्जर चेहरे को शामिल कर डैमेज कंट्रोल करेगी। इसमें अशोक कटारिया संगठन में लंबे समय से सक्रिय हैं, जिन्हें पार्टी पहले ही एमएलसी के साथ प्रदेश महामंत्री जैसा बड़ा ओहदा दे चुकी है। लखनऊ में रहने का फायदा उन्हें मिल सकता है। मेरठ दक्षिण के विधायक डा. सोमेंद्र तोमर भी खांटी भाजपाई हैं, जिन्हें पार्टी ने पंचायती राज का सभापति बनाया, किंतु गुर्जरों में इसका कोई बड़ा संदेश नहीं पहुंचा। अब मंत्रिमंडल में उनका दावा बढ़ा है। इधर, दादरी के तेजपाल नागर बसपा से, सहारनपुर के प्रदीप चौधरी लोकदल से व नंदकिशोर गुर्जर सपा से भाजपा में आए थे। उधर, एक खेमा बाहर से आए चेहरों की तुलना में मूल संगठन को तवज्जो देने की बात कह चुका है।
जाट बनाम गुर्जर में फंसी भाजपा
भाजपा पश्चिमी उप्र को ध्रुवीकरण की सियासी प्रयोगशाला मानती है। 2014 लोकसभा एवं 2017 विस चुनावों में भाजपा ने गुर्जर, जाट समेत करीब 40 पिछड़े वर्ग की जातियों को अपने साथ जोड़ लिया। चौ. अजीत सिंह से जाट वोटर छिटका तो मायावती के हाथ से गैर जाटव और गुर्जर वोट निकल गए। मुस्लिम मतदाता खुलकर भाजपा के खिलाफ गए, जिससे भगवा खेमे को ध्रुवीकरण का सीधा फायदा हुआ। किंतु 2014 से अब तक जाटों की तुलना में गुर्जर चेहरे हाशिए पर रह गए। 2017 में यूपी में मंत्रिमंडल की रेस में अवतार सिंह भड़ाना समेत सभी पांच गुर्जर दावेदार पिछड़ गए। पश्चिमी यूपी से चौ. भूपेंद्र सिंह एवं मथुरा के लक्ष्मीनारायण सिंह के रूप में दो जाट चेहरे योगी टीम में शामिल किए गए। बागपत सांसद डा. सत्यपाल सिंह केंद्रीय मंत्री व सतपाल मलिक को राज्यपाल बनाया गया।
भाजपा को घेरेंगे भड़ाना
गुर्जरों के बीच बेहतर पकड़ रखने वाले अवतार सिंह भड़ाना लंबे समय से भाजपा नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व प्रदेश संगठन ने भड़ाना को तवज्जो नहीं दी, ऐसे में वो कांग्रेस में चले गए। अगर कांग्रेस ने भड़ाना को मेरठ से चुनावी मैदान में उतारा तो भाजपा के गुर्जर वोट बैंक में बड़ी सेंध लगेगी। वह 2004 में मेरठ से कांग्रेस के टिकट पर सांसद रह चुके हैं। पश्चिमी उप्र की अन्य सीटों पर भी इसका असर दिख सकता है।
गुर्जर चेहरे को शामिल करने का दबाव
पिछले साल लखनऊ में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने 40 ओबीसी जातियों के साथ मंथन कर उन्हें पार्टी से जोड़ने पर होमवर्क किया। इसमें अवतार सिंह भड़ाना ने मंच से गुर्जरों की पैरवी करते हुए भाजपा को कटघरे में खड़ा किया। किंतु मंत्रिमंडल का विस्तार न होने से उनकी आवाज अनसुनी रह गई। अब सपा के सुरेंद्र नागर समेत तमाम गुर्जर चेहरे पश्चिमी उप्र में भाजपा के मतों में सेंधमारी के लिए गांवों में सीधे संपर्क कर रहे हैं। सियासी पंडितों की मानें तो भाजपा मंत्रिमंडल में गुर्जर चेहरे को शामिल कर डैमेज कंट्रोल करेगी। इसमें अशोक कटारिया संगठन में लंबे समय से सक्रिय हैं, जिन्हें पार्टी पहले ही एमएलसी के साथ प्रदेश महामंत्री जैसा बड़ा ओहदा दे चुकी है। लखनऊ में रहने का फायदा उन्हें मिल सकता है। मेरठ दक्षिण के विधायक डा. सोमेंद्र तोमर भी खांटी भाजपाई हैं, जिन्हें पार्टी ने पंचायती राज का सभापति बनाया, किंतु गुर्जरों में इसका कोई बड़ा संदेश नहीं पहुंचा। अब मंत्रिमंडल में उनका दावा बढ़ा है। इधर, दादरी के तेजपाल नागर बसपा से, सहारनपुर के प्रदीप चौधरी लोकदल से व नंदकिशोर गुर्जर सपा से भाजपा में आए थे। उधर, एक खेमा बाहर से आए चेहरों की तुलना में मूल संगठन को तवज्जो देने की बात कह चुका है।
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