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LokSabha Election 2019 : वेस्ट में बदलाव का साहस नहीं दिखा सकी भाजपा

वेस्ट यूपी में भारतीय जनता पार्टी ने इस बार लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं करके मोदी कार्ड पर चुनाव लड़ने की मंशा जताई है।

By Ashu SinghEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 02:25 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 02:25 PM (IST)
LokSabha Election 2019 : वेस्ट में बदलाव का साहस नहीं दिखा सकी भाजपा
LokSabha Election 2019 : वेस्ट में बदलाव का साहस नहीं दिखा सकी भाजपा
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। प्रत्याशियों के बदलाव की सुलगती चर्चा पर होली के दिन भाजपा ने चुनावी रंग उड़ेलकर इसे शांत कर दिया। यूं कहें कि पार्टी बदलाव का साहस नहीं जुटा सकी। प्रत्याशियों के सर्वे की फाइलों को अलमारी में बंद कर निर्णय लिए गए। रणनीतिकारों ने पश्चिमी उप्र में आधा दर्जन सीटों पर नए चेहरों को उतारने का दावा किया था,पर ऐसा नहीं हुआ। साफ है कि भाजपा इस बार भी मोदी मैजिक के भरोसे मैदान में उतरेगी।
रिपोर्ट कार्ड तो बेहतर नहीं था
पार्टी जानती है कि पश्चिम से उठी चुनावी हवा से प्रदेशभर में माहौल बनता है। पार्टी ने 14 में से न्यूनतम पांच सीटों पर बदलाव का संकेत दिया था। पार्टी के अंदरूनी सर्वे में तकरीबन सभी सीटों पर सांसदों का रिपोर्ट कार्ड बेहतर नहीं मिला था। इन्हीं वजहों से मेरठ से वैश्य सीट को गाजियाबाद शिफ्ट करने की चर्चा थी। मेरठ-हापुड़ सीट पर 2009 से सांसद राजेंद्र अग्रवाल बेशक संघ के करीबी रहे हैं।
नए प्रत्याशी की मांग थी
मंडल अध्यक्षों से लेकर कई जिला पंचायत सदस्यों-कार्यकर्ताओं व संगठन के दिग्गजों ने भी प्रदेश अध्यक्ष डा.महेंद्रनाथ पांडेय से इस बार नए प्रत्याशी उतारने की मांग की। इसी कड़ी में गौतमबुद्धनगर-नोएडा सांसद डा.महेश शर्मा के विरोध को देखते हुए उन्हें गाजियाबाद में वीके सिंह की जगह लड़ाने की बात चली। 2014 में गाजियाबाद सीट पर रिकार्ड मतों से जीते जनरल वीके सिंह भी सर्वे में कमजोर मिले थे,जिन्हें तीन ठाकुर विधायकों वाली नोएडा संसदीय सीट पर भेजने की चर्चा थी।
गठबंधन की वजह से बचे
बिजनौर सांसद कुंवर भारतेंद्र के स्थान पर कई नए चेहरे कतार में थे लेकिन पार्टी ने टिकट रिपीट किया। आरोप लगे कि भारतेंद्र अपने संसदीय क्षेत्र में पांच साल तक जनता से कनेक्ट नहीं हो पाए। सहारनपुर सांसद राघव लखनपाल का भी काफी विरोध था। पार्टी के तमाम गुर्जर चेहरे यहां से दावा जता चुके थे। हालांकि दिग्गज नेता अरुण जेटली के करीबी राघव लखनपाल टिकट बचा ले गए। अमरोहा में इस बार पार्टी का एक खेमा जाट चेहरे को उतारने की पैरोकारी में था। सांसद कंवर सिंह तंवर के बसपा में जाने की भी चर्चा थी,लेकिन दिल्ली में मजबूत पकड़ के चलते तंवर को दोबारा टिकट दिया गया। सियासी पंडितों की मानें तो गठबंधन की वजह से अमरोहा, मुजफ्फरनगर व बागपत में प्रत्याशी नहीं बदले गए। मुरादाबाद में सांसद सर्वेश सिंह के विकल्प पर पार्टी ने चर्चा तक नहीं की।
सुरक्षित सीटों पर कड़े निर्णय
पार्टी ने प्रदेशभर में तमाम सुरक्षित सीटों पर चेहरों को बदल दिया है। इसका असर पश्चिमी यूपी में भी नजर आ रहा है। नगीना सांसद डा.यशवंत के बदलाव की चर्चा तेज थी। तमाम सांसदों को दोबारा टिकट देने के बावजूद पार्टी ने डा. यशवंत को होल्ड कर दिया। यहां से अशोक प्रधान समेत कई अन्य नामों की चर्चा है। बुलंदशहर सांसद भोला सिंह के खिलाफ भी जनता एवं कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी। 2014 में पूर्व सीएम कल्याण सिंह के हस्तक्षेप से भोला सिंह को टिकट मिला था,लेकिन इस बार संसदीय बोर्ड ने उन्हें वेटिंग लिस्ट में डाल दिया। उधर,अति पिछड़ा वर्ग सैनी के कोटे में रही संभल पर पार्टी ने चेहरा बदला है।
कैराना में अबकी बार कौन
सांसद बाबू हुकुम सिंह के निधन से खाली होने के बाद कैराना में हाईप्रोफाइल उपचुनाव हुआ। रालोद के टिकट पर सपा की तबस्सुम हसन ने हुकुम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को शिकस्त देकर प्रदेश में भाजपा विरोधी गठबंधन को आक्सीजन दी। 2018 में उपचुनावों के दौरान भाजपा के दर्जनों मंत्रियों ने डेरा डाला। मृगांका लगातार जनता के बीच बनी रहीं, जिससे उनका दावा फिर मजबूत बनकर उभरा। उधर,पार्टी पूर्व एमएलसी वीरेंद्र सिंह के भाई व पूर्व न्यायाधीश को भी गंभीर चेहरा मान रही है। 

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