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शौक ऐसा भी : बंदरों की खास हैं यह अफसर दीदी, बच्‍चों की तरह रखती हैं साथ

बीडीओ ज्योति बाला को बंदरों से खासा लगाव है। उनके आवास पर बंदरों का हर समय डेरा रहता है। वह बंदरों को अपने बच्चों की तरह रखती हैं। न केवल उन्हें अपने साथ खिलाती हैं बल्कि अपने घर में सुलाती भी हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 06:55 PM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 06:55 PM (IST)
शौक ऐसा भी : बंदरों की खास हैं यह अफसर दीदी, बच्‍चों की तरह रखती हैं साथ
बच्चों की तरह बंदरों को अपने साथ रखती हैं बीडीओ ज्योति बाला।

बागपत, राजीव पंडित। ज्यादातर लोग शरारती बंदरों से परेशान ही रहते हैं। किसी ने बंदरों के डर से मकानों पर लोहे का जाल लगवा रखा है, तो कोई उन्हें को जंगलों में छुड़वाने की मांग करता है। वहीं एक बीडीओ ऐसी भी हैं, जिन्हें बंदरों से खासा लगाव है। उनके आवास पर बंदरों का हर समय डेरा रहता है। वह बंदरों को अपने बच्चों की तरह रखती हैं। न केवल उन्हें अपने साथ खिलाती हैं, बल्कि अपने घर में सुलाती भी हैं। कई बंदर उनके आवास पर कपड़े पहने नजर आते हैं। बीडीओ का कहना है कि बचपन से ही उन्हें बंदरों से लगाव है। उनके लिए बंदर बच्चों की तरह है। उनकी जहां पर पोस्टिंग होती है, वहां पहले ही उनके आवास पर बंदर मिलते हैं।

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मिलता है सुकून

मेरठ जनपद के पल्लवपुरम की रहने वाली ज्योति बाला चावला ने बताया कि वह नवंबर-2021 में सहारनपुर जनपद से ट्रांसफर होकर बड़ौत ब्लाक में आई, तो उन्हें अपने आवास में कितने ही बंदर मिले। यह देखते ही उन्हें काफी सुकून मिला, जो अभी भी उनके पास ही रह रहे हैं। सुबह आठ बजे, दोपहर दो बजे और शाम छह बजे वह बंदरों को खाना खिलाती हैं, जिनमें चना, रोटी, केला, लड्डू और मौसमी फल शामिल रहते हैं। आवास, सड़क और जंगल में वह हर रोज दो सौ से ढाई सौ बंदरों को खाना खिला देती हैं। सरकारी काम में वह कितनी भी व्यस्त हो, लेकिन बंदरों के खाने की व्यवस्था अवश्य करती है। उनका कहना है कि बंदरों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे, तो वह उसी भाषा को समझने लगेंगे। 

शरारती नहीं बल्कि समझदार होते हैं बंदर

बीडीओ का कहना है कि सुबह वह घर पर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ सुनती है, तो उनके साथ ही बंदर भी हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ सुनते हैं। हाल ही एक दिन तेज बारिश हो रही थी। उन्होंने आवास का दरवाजा खोल दिया, तो लगभग 30 बंदर कमरे में आकर बैठ गए। बड़ौत ब्लाक से पहले वह सहारनपुर जनपद में तैनात थी, तो वहां भी एक बंदर उनके साथ रहने लगा था। वह उसे बच्चे की रखती थी। बंदर उनके साथ बर्तनों में खाना खाता था और मोबाइल भी देखता था। उन्होंने उसका नाम हन्नू रख दिया। कई माह तक बड़ौत में भी वह उनके साथ रहा, लेकिन अचानक कुछ दिनों पहले चला गया। वह बचपन से ही भगवान हनुमान की भक्त हैं। 


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