अपने शहर में भूले बिसरे बैजू बावरा
ओ दुनिया के रखवाले.. बचपन की मुहब्बत को.. इंसान बनो कर लो भलाई का
विवेक राव, मेरठ। ओ दुनिया के रखवाले.., बचपन की मुहब्बत को.., इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम.., तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा.., झूले में पवन के आई बहार.. जैसे गीत आज से करीब 69 साल पहले बैजू बावरा फिल्म में सुनाई दिए थे। ये धुनें आज भी कानों में मिठास घोलती हैं। इस फिल्म से सुपर स्टार बने अभिनेता भारत भूषण का मेरठ से जन्म का नाता रहा है। मुफलिसी में जीवन बिताने वाले अभिनेता को अब अपना शहर भी भूलने लगा है।
अभिनेता भारत भूषण 14 जून 1920 को मेरठ में जन्मे थे। उनका घर सदर के ढोलकी मोहल्ले के बोरी बारदाना चौक पर हुआ करता था। उनके पिता राय बहादुर मोती लाल अलीगढ़ से यहां आकर बसे थे। बचपन से फिल्मों के शौकीन भारत भूषण पिता के विरोध के बाद भी 1940-41 में अपने ख्वाब पूरे करने मुंबई चले गए। कुछ फिल्में मिली, लेकिन बैजू बावरा फिल्म ने उन्हें सुपर स्टार की श्रेणी में खड़ा किया। 27 जनवरी 1992 को वह दुनिया से रुख्सत हो गए। 1958 तक उनका परिवार मेरठ में रहा। इसके बाद वह कोठी कस्तूरी लाल को बेचकर चले गए थे।
भारत भूषण की फिल्में
भारत भूषण ने कई फिल्मों में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। इसमें भक्त कबीर-1942, भाईचारा 1943, सुहागरात 1948, उधार 1949, एक थी लड़की 1949, राम दर्शन 1950, आंखें 1950, सागर 1951, बैजू बावरा 1951, श्री चैतन्य महाप्रभु 1954, मिर्जा गालिब 1954 आदि हैं। 1955 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
शहर में उनकी एक प्रतिमा हो
फिल्म फोटोग्राफर ज्ञान दीक्षित कहते हैं कि भारत भूषण से उनकी खूब मुलाकात होती थी। शराबी फिल्म में उन्होंने उनकी कई तस्वीरें ली थी। उनकी बेटी अपराजिता (जिन्होंने रामायण में मंदोदरी की भूमिका निभाई थी) आजकल मुंबई में हैं। भारत भूषण की एक प्रतिमा मेरठ में जरूर लगनी चाहिए।
भारत भूषण की मेरठ में लगेगी प्रतिमा
मेरठ की कई विभूतियों की देश व विदेश तक पहचान रही है। भारत भूषण जैसे अभिनेता की अपने शहर में कोई प्रतिमा या शिलापट न होना दुखद है। ऐसे कलाकारों, खिलाड़ियों और रचनाकारों की स्म़ृति संग्रह के लिए एक कमेटी बनाने का प्रयास रहेगा। भारत भूषण के जन्मस्थान के आसपास उनकी एक प्रतिमा लग सकती है।
-राजेंद्र अग्रवाल, सांसद