पारदर्शिता के साथ पार्टी के लिए चंदा जुटाते थे अटल बिहारी वाजपेयी
़1987 में मेरठ में 13 स्थानों पर की सभाएं, उद्यमियों से नहीं कार्यकर्ताओं से जुटाया था 2.50 लाख का चंदा।
मेरठ (संतोष शुक्ल)। वो सियासत में शुचिता के प्रतीक पुरुष थे। सियासत की लहरों से टकराने के बावजूद उनका व्यक्तित्व अटल रहा। सत्ता की चकाचौंध से कोसों दूर सियासत की ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर सीना तानकर चलने का नैतिक बल रखते थे। उनकी एक हुंकार पर जनमानस तर्क-वितर्क की बेड़ियों से निकलकर पीछे चल पड़ता था। ऐसे अटलजी ने पार्टी कोष के लिए फंड जुटाने में भी पूरी पारदर्शिता रखी। 1987 में मेरठ में 13 जनसभाएं कर उन्होंने पार्टी कोष के लिए ढाई लाख रुपए जुटाया था।
जनता से ही से मांगा..
भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष ब्रजगोपाल गुप्ता बताते हैं कि वाजपेयी उन दिनों बेहतरीन संबोधन के लिए देशभर में मशहूर थे। भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद वह 81 और 82 में भी मेरठ आए थे। हालांकि इस वक्त सियासी हवा कांग्रेस के पक्ष में बहती थी। 1984 लोकसभा चुनावों में दो सीट पर सिमटने के बाद अटल नए सिरे से कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने उतरे। पार्टी में फंड की कमी थी, किंतु वह उद्योगपतियों के बजाय अपने कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचे। मेरठ में 1987 में उन्होंने 13 स्थानों पर सभाएं की। कार्यकर्ताओं ने अपने जननेता के साथ कदम से कदम मिलाया। महानगर इकाई ने भी करीब एक लाख का अंशदान किया था।
..थैली में पैसे कम तो भाषण भी कम
तत्कालीन भाजपा महानगर महामंत्री डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी बताते हैं कि अटलजी ने मजाकिया लहजे में कहा था कि थैली में पैसे पूरे हैं या नहीं। अगर पैसे कम होंगे तो भाषण भी कम होगा। अटल जी ने सिसौली, माछरा, किठौर, परीक्षितगढ़ में छोटी-छोटी जनसभाएं कीं। इसके बाद वह लावड़, दौराला, सरधना, बरनावा, बिनौली, बड़ौत और खेकड़ा पहुंचे। इस दौरान मिलने वाले चंदे की पारदर्शिता सौ फीसद थी।
नाम में क्या रखा है..
जिले में 13 स्थानों पर कार्यक्रम के लिए पंपलेट छपवाया गया। हुआ यूं कि अध्यक्ष अटल और प्रदेश अध्यक्ष कल्याण सिंह के नाम की मोटाई बराबर रखी गई। कई नेताओं ने दोनों का नाम बराबर रखने पर आपत्ति जताई। ब्रजगोपाल बताते हैं कि वह डरते-डरते पंपलेट लेकर अटल के पास गए, किंतु अटल ने हंसते हुए इसकी सहमति दे दी। कहा रैली की तैयारी करो..नाम में क्या रखा है।
..कहां है सरधना का अमरूद
अटल खानपान के बेहद शौकीन थे। ब्रजगोपाल याद करते हैं कि सरधना की गोष्ठी में उनकी पसंद का अमरूद मंगाया गया था। इससे पहले फलावदा की बर्फी उन्हें काफी रास आई थी। जब भी यहां आए, गजक, रेवड़ी, बर्फी एवं अमरूद का स्वाद जरूर लिया।