तालियां मिली न संतुष्टि, फीका रहा मंचन का अहसास
कोरोना काल ने अच्छाई पर बुराई के प्रतीक दशहरा पर्व पर ग्रहण लगा दिया।
मेरठ, जेएनएन। कोरोना काल ने अच्छाई पर बुराई के प्रतीक दशहरा पर्व पर 'ग्रहण' लगा दिया। कुछ स्थानों पर प्रतीकात्मक रूप से रामलीला का मंचन हुआ। जेल चुंगी और प्रहलाद नगर में स्थानीय कलाकार मंचन करते हैं। हर वर्ष रामलीला के आयोजन को लेकर इनमें जबरदस्त रोमांच होता था।
जेल चुंगी में रहने वाले योगराज दिल्ली में नौकरी करते हैं और वहीं पर रहते हैं। लेकिन हर वर्ष रामलीला के मंचन के लिए छुट्टी लेकर आते हैं। रविवार को मंचन के बाद उन्होंने कहा कि इस बार दर्शकों की तालियों के लिए तरस गए। हनुमान का चरित्र निभाने से एक ऊर्जा का अहसास होता था। इस बार सब फीका रहा। लेकिन कोरोना को हराने के लिए इसका कोई मलाल भी नहीं।
यहीं पर अजय वर्मा रामलीला के निदेशक हैं और पिछले आठ वर्षो से रावण का रोल निभा रहे हैं। ठेकेदारी करने वाले अजय वर्मा की संवाद अदायगी दर्शकों के बीच खासी लोकप्रिय है। उन्होंने बताया कि कोरोना ने इस बार रामलीला की रौनक छीन ली।
भाजपा नेता और पूर्व पार्षद पुत्र सुनील चढ्ढा प्रहलाद नगर में राम की भूमिका निभाते हैं। प्रशासन द्वारा अनुमति नहीं दी गई थी, ऐसे में वहां न मंचन हुआ न रावण दहन। सुनील चढ्ढा ने कहा कि प्रशासन को प्रतीकात्मक रूप से सही आयोजन की अनुमति देनी चाहिए। यहां 25 से 30 लोग मंचन से जुड़े हैं। पिछले 47 सालों से रामलीला मंचन होता रहा है। रविवार को कमेटी द्वारा आयोजित अखंड रामचरित मानस के पाठ का समापन हुआ।
बाबा मनोहरनाथ मंदिर के बाहर तैनात रही पुलिस : शहर में जहां-जहां रामलीला होती है, वहां दशहरे का मेला भी लगने की परंपरा रही है। बच्चों के झूले, खिलौने आदि की दुकानें लगती थीं। इस बार सड़कों पर कोई रौनक नहीं रही। दिल्ली रोड, सूरजकुंड का मेला प्रसिद्ध है, इस बार यहां रामलीला तो दूर रामकथा भी नहीं हुई। रविवार को मंदिर के गेट पर पुलिस तैनात रही।
दहन से पूर्व रावण दर्शन को पहुंचे लोग : कोरोना काल में आमजन को रावण दहन के दर्शन नहीं हो पाएंगे। इसलिए रविवार को दिन में ही लोग भैंसाली में खड़े किए गए रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों को देखने आते रहे। बच्चे भी 90 फुट ऊंचे पुतले को देखकर कौतुहल से भरे नजर आए। बच्चों ने रावण संग सेल्फी ली। मान्यता है कि रावण का दर्शन करने से सालभर बुरी और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं रहता। रावण दहन के बाद अवशेषों को लेने के लिए जबरदस्त मारामारी रहती है। दोपहर में मंच पर दिल्ली से आए कलाकार शाम को होने वाली रामलीला का अभ्यास करते नजर आए। इस बार 10 दिन तक होने वाली रामलीला पौने तीन घंटे ही हुई। जेलचुंगी और दिल्ली रोड स्थित रामलीला मैदान में भी लोग पुतले देखने पहुंचे।
कम हुई पुतलों की बिक्री : शहर में जगह-जगह रावण के पुतलों को बिक्री के लिए रखा गया था। विक्रेताओं ने बकायदा पंफ्लेट बांटकर प्रचार भी किया, बावजूद इसके पुतलों की उम्मीद से कम बिक्री हुई। यह कहना है भुमिया पुल निवासी अर्शी का। गढ़ रोड पर पुतले बेच रहे अर्शी ने बताया कि ज्यादातर पुतले चार और छह फुट के बनाए थे, जिनके दाम 400 और 700 रखे गए थे। शाम तक जब पुतले नहीं बिके, तो मजबूरन आठ फुट का पुतला भी मात्र 500 रुपये तक बेचना पड़ा।