आइसीयू में भी सांस लेने लायक हवा नहीं, संक्रमण का खतरा बढ़ा
वाहनों के शोरगुल से व्यस्त रहने वाले चौराहों की हालत तो खराब है ही, अस्पताल के आइसीयू में भी सांस लेने लायक हवा नहीं है। यहां भी हवा की गुणवत्ता खराब है।
मेरठ (जेएनएन)। वातावरण में धुंध की चादर तनने से पहले ही हवा प्रदूषित होने लगी है। स्कूल, बाजार और पार्क क्या, अस्पतालों का आइसीयू तक सुरक्षित नहीं रहा। शुक्रवार को जिला अस्पताल, मेडिकल इमरजेंसी व अन्य स्थानों की हवा की गुणवत्ता परखी गई तो वायु प्रदूषण मानक से ढाई गुना तक मिला। भर्ती मरीजों के फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
सबसे प्रदूषित शहरों में एक
मेरठ को प्रदेश के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार किया जाता है किंतु गर्मियों में हवा में पीएम-2.5 एवं पीएम-10 की मात्र कम दर्ज की गई थी। सर्द मौसम के साथ ही प्रदूषित कण नीचे आ गए, जिससे बाग-बगीचों से लेकर बाजारों तक धुंध की परत साफ नजर आने लगी है। शुक्रवार को दैनिक जागरण ने सबसे सुरक्षित समङो जाने वाले अस्पतालों के अंदर बने आइसीयू में हवा की गुणवत्ता मापी। हैरानी की बात ये कि यहां भी हवा में पीएम-2.5 मानक 60 से ढाई गुना (करीब 150 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) मिला। इससे अस्पतालों की सफाई पर सवाल खड़े हुए हैं, वहीं आसपास कूड़ा जलाने, वाहनों के बेरोकटोक संचालन और कंस्ट्रक्शन कारोबार से बंद स्थान भी वायु प्रदूषण की चपेट में हैं।
रासायनिक कणों से भरी धुंध
जिला अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में दोपहर तीन बजे पीएम-2.5 की मात्र करीब 140, जबकि मेडिकल कालेज की इमरजेंसी में 160 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक रही। चिकित्सकों की मानें तो इस प्रदूषित हवा में खतरनाक बैक्टीरिया एवं फंगस भी सांस के रास्ते फेफड़ों की झिल्ली में पहुंच सकते हैं। इससे पहले केएमसी अस्पताल एवं जसवंत राय सुपरस्पेशलिटी में हवा की गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर-135 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक मिली। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह धुंध रासायनिक कणों से भरी है। हवा के साथ रिएक्शन कर सल्फर के कण सल्फ्यूरिक अम्ल बनाते हैं। इन बूंदों में नाइटिक एसिड के भी अंश मिले हैं। इससे सांस की नलियां गल सकती हैं।
- इन चीजों से बचें
- कूड़ा न जलाएं। कहीं जल रहा हो तो वहां से न गुजरें। अगर ऐसा नहीं तो मास्क लगाएं। इसमें पालीथीन के विषाक्त पदार्थ जलकर जहरीली गैस बनाते हैं।
- कूड़े में फंगस से कई बार फल व अन्य पदार्थ सड़ जाते हैं। सफाई के दौरान उड़ने वाली धूल भी नाक की एलर्जी और अस्थमा के अटैक का कारण बन सकती है।
- फूल, पत्ते व पेंट समेत कई अन्य वस्तुओं को सूंघने से बचें। इसमें भी सांस नलिकाओं को उत्तेजित करने वाले कण व बैक्टीरिया होते हैं।
- घर में जानवरों को पालने से बचें। उनके रोएं, छींक, नजला, अस्थमा एवं अन्य बीमारियों का कारण बन सकते हैं। अस्पतालों में बेवजह न जाएं। सर्दियों में यहां पर बैक्टीरिया, फंगस एवं वायरल लोड बढ़ जाता है। स्वस्थ व्यक्ति भी मरीज बन सकता है।
इनका कहना है
अस्पताल में मानक के मुताबिक सफाई कराई जा रही है। किंतु धुंध के दौरान मरीजों के लिए शुद्ध हवा का संकट गहराने लगता है। गहरी धुंध में आक्सीजन की मात्र घटने से कई बार स्वस्थ व्यक्ति की भी सांस फूलने लगती है।
-डा. पीके बंसल, सीएमएस, जिला अस्पताल
ऊपरी श्वसन तंत्र के मरीज ओपीडी में पहुंचने लगे हैं। अस्थमा के मरीज या कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वालों में यही संक्रमण लंग्स-‘निचले श्वसन तंत्र’ में पहुंचकर निमोनिया बना देता है। संवेदनशील मरीज फ्लू की वैक्सीन लगवाएं।
-डा. अमित अग्रवाल, चेस्ट फिजीशियन