एचआइवी की तुलना में पांच गुना जानलेवा है वायु प्रदूषण
शिकागो विवि का एनसीआर-मेरठ की हवा पर नया शोध, दो दशक में उम्र दस साल घटी।
मेरठ (संतोष शुक्ल)। वायु प्रदूषण अब जिंदगी की डोर काटने लगा है। दिल्ली-एनसीआर में दो दशक में औसत उम्र दस साल तक घटने का खतरा है। द एनर्जी पालिसी इंस्टीटयूट, दिल्ली और शिकागो विवि के एक शोध के मुताबिक दिल्ली की हवा में पीएम-2.5 की बढ़ती मात्रा से एचआईवी की तुलना में पांच गुना, जबकि संघर्ष और आतंकवाद से 25 गुना मौतें हुई हैं।
69 फीसद बढ़ा पीएम-2.5, उम्र 10 साल कम
शोधकर्ताओं ने हाल में दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ, अमरोहा, बुलंदशहर, नोएडा, गुडग़ांव, फरीदाबाद में हवा की गुणवत्ता और मरीजों के फ्लो पर स्टडी की। पता चला कि जहां 1998 में एनसीआर में उम्र में 2.2 वर्ष की कमी आई थी, वहीं 2018 में यह बढ़कर 4.3 वर्ष हो गया। दो दशक में पीएम-2.5 की मात्रा में 69 फीसद वृद्धि दर्ज की गई है।
दर्जनों सिगरेट जितना जहर
सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञों के मुताबिक, पीएम-2.5 की मात्रा 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक होने पर रोजाना दर्जनभर सिगरेट पीने जितना जहर फेफड़ों में पहुंच रहा है। शरीर में आक्सीजन की कमी से जहां निमोनिया बड़ी संख्या में जानें ले लेता है, वहीं प्रतिरोधक क्षमता घटने से अन्य बीमारियों ने जकड़ा। अस्थमा, हार्ट, सीओपीडी एवं शुगर से भी मौत का आंकड़ा बढ़ा।
फैल रहे बच्चों के फेफड़े
स्पायरोमीटर की जांच में दिल्ली-एनसीआर के बच्चों के फेफड़ों की क्षमता 40 फीसद कम हो गई है। बच्चों की कम लंबाई, सांस जल्दी-जल्दी लेने एवं नाक में बाल न होने से उनमें पीएम-2.5 के कण रक्त तक पहुंच जाते हैं। हर चौथा बच्चा अस्थमा का रोगी है।
वायु प्रदूषण से अन्य कारणों की तुलना
-धूम्रपान के बराबर प्रदूषित हवा से हो रही है मौत
-एल्कोहल एवं ड्रग से होने वाली मौतों से दोगुना
-प्रदूषित पेयजल से होने वाली मौतों से तीन गुना
इन्होंने कहा...
सर्दियों में दिल्ली-मेरठ में पीएम-2.5 की मात्रा का 64 फीसद प्रदूषण बाहर से पहुंचता है। एनसीआर में लोगों की उम्र घट रही है। ईपीसीए ने कंस्ट्रक्शन कारोबार, ईंट भट्टा, प्लांट, भारी वाहन, इंडस्ट्री बैन कर दी किंतु हवा में प्रदूषण कम नहीं हो रहा। आपात स्थिति में डीजल वाहनों को भी बंद करना संभव है।
पोलाश मुखर्जी, रिसर्च एसोसिएट, सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट, नई दिल्ली
हवा में सल्फर एवं नाइट्रोजन की मात्रा ज्यादा होने से सांस की नलियों में अम्ल पहुंचने लगता है। इससे नलियां गल भी सकती हैं। फेफड़ों में संक्रमण, सूजन एवं अन्य वजहों से मरीज जल्दी आईसीयू में पहुंचता है।
डा. वीएन त्यागी, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ
पीएम-2.5 की मात्रा 350 माइक्रोग्राम होने पर हवा में आक्सीजन 2.5 फीसद तक कम हो सकती है। इससे हार्ट पर लोड बढ़ता है। मार्निंग वाक में जल्दी-जल्दी सांस लेने से ज्यादा प्रदूषण शरीर में पहुंचता है। स्मॉग में अटैक व स्ट्रोक ज्यादा होता है।
डा. संजीव सक्सेना, वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ