साधनों के माध्यम से साध्य की उपलब्धि नहीं हो पाती: प्रणम्य सागर
दिगंबर जैन समाज का दशलक्षण महापर्व भावनाओं को आस्था की डोर में बांधकर मनाया जा रहा है। दशलक्षण महापर्व पर श्रावक कठिन उपवास के साथ तीर्थकारों की आराधना कर रहे हैं।
मेरठ, जेएनएन : दिगंबर जैन समाज का दशलक्षण महापर्व भावनाओं को आस्था की डोर में बांधकर मनाया जा रहा है। दशलक्षण महापर्व पर श्रावक कठिन उपवास के साथ तीर्थकारों की आराधना कर रहे हैं। मंदिरों में विधान में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे रहे हैं। गुरुवार को विधि विधान से उत्तम आर्जव धर्म की आराधना की गई।
ऋषभ एकेडमी में दशलक्षण महापर्व पर्व में जैन मुनि प्रणम्य सागर महाराज ने कहा कि साधनों के माध्यम से साध्य की उपलब्धि नहीं हो पाती है। साध्य और साधन में अंतर होता है, इन्हें जोड़ने के लिए साधना मुख्य है। जो केवल ध्यान के माध्यम से ही संभव है। पांचों इन्द्रियों के विषय जब ज्ञान में आते है तो इन्द्रियों को झुकना पड़ता है। मनुष्य मनु की संतान है इस लिए मन सहित है। मन हमेशा इन्द्रियों के विषय के माध्यम से तृप्ति करता है। मन आत्मा व इन्द्रियों से जुड़ा होता है। बिना ज्ञान के हम ध्यान को प्राप्त नहीं कर सकते है। बिना गुरु के आप संसार की भूल भुलैया से नहीं निकल सकते हैं।
उधर, दिगंबर जैन पंचायती मंदिर असौड़ा हाउस में उत्तम आर्जव धर्म के अवसर पर जल अभिषेक और शांति धारा का आयोजन किया गया। जैन मुनि श्री 108 जिनानंद महाराज ने कहा कि मायाचारी को छोड़कर अपने में लीन होना ही आर्जव धर्म है। जैसे काया से कुछ और वचन से कुछ और बोले और मन में कुछ और हो तो इन तीनों में भिन्नता के कारण आर्जव धर्म नहीं हो पाता है। सदैव मन और वचन को शुभ कीजिए कपट से साधन तो मिल जाएंगे लेकिन शांति नहीं मिलेगी। शांति तो साधना से ही मिलेगी। कार्यक्रम में विनेश जैन, सुनील जैन, सनील सर्राफ , अक्षत जैन संजय ,कपिल आदि का सहयोग रहा।