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Special Column: शहर में आबादी के हिसाब से कर्मी ही नहीं तो सफाई कैसे हो, भूल जाइए स्मार्ट सिटी Meerut News

मेरठ शहर में सुबह घर के बाहर कचरा नहीं उठता है तो लोग पूछते हैं कि सफाई कर्मी कहां हैं। नालियों की गदंगी सड़ांध मारने लगती है तो लोग पूछते हैं कि सफाई कर्मी कहां हैं।

By Prem BhattEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 03:00 PM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 03:00 PM (IST)
Special Column: शहर में आबादी के हिसाब से कर्मी ही नहीं तो सफाई कैसे हो, भूल जाइए स्मार्ट सिटी Meerut News
Special Column: शहर में आबादी के हिसाब से कर्मी ही नहीं तो सफाई कैसे हो, भूल जाइए स्मार्ट सिटी Meerut News

मेरठ, [दिलीप पटेल]। सुबह घर के बाहर कचरा नहीं उठता है तो लोग पूछते हैं कि सफाई कर्मी कहां हैं। नालियों की गदंगी सड़ांध मारने लगती है तो लोग पूछते हैं कि सफाई कर्मी कहां हैं। पेड़ों की छंटाई के बाद टहनी उठाने के लिए भी लोग सफाई कर्मी को ही खोजते हैं। दरअसल, सफाई कर्मी के बगैर स्वच्छ शहर का सपना देखना बेकार है। वर्तमान में बीस लाख की आबादी के शहर में महज तीन हजार सफाई कर्मी हैं। उनमें भी 70 फीसद की नौकरी आउटसोर्सिंग पर है, अर्थात जिन पर शहर को चमकाए रखने का जिम्मा है, वक्त की मार भी वही सह रहे हैं। एक तो नौकरी नियमित नहीं है, दूसरे वेतन इतना कम कि भविष्य के सपने भी अच्छे से नहीं बुन सकते। सच यही है कि आउटसोर्सिंग की उपजी परंपरा के बावजूद आबादी के हिसाब से सफाई कर्मियों की भर्ती सुनिश्चित नहीं हो सकी है।

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भूल जाइए स्मार्ट सिटी

राज्य स्मार्ट सिटी मिशन में मेरठ का नाम आया तो स्वच्छ शहर की तस्वीर आंखों के सामने उभरने लगी थी। हर व्यक्ति यही सोच रहा था कि अब शहर में बदलाव आएगा। जनप्रतिनिधि भी मंचों से यही कह रहे थे। नगर निगम ने भी कागज पर स्मार्ट सिटी के रूप में शहर को विकसित करने का प्लान बना डाला था, लेकिन कोरोना महामारी के दौर में अब स्मार्ट सिटी की परिकल्पना जैसे बीते दिनों की बात हो गई है। गत दिनों नगर निगम के एक अधिकारी से चर्चा क्या कर दी, उनकी पीड़ा बाहर आ गई। कहने लगे, कागज पर योजनाएं हैं। यह भी मालूम है कि करना क्या है, मगर योजनाएं धरातल पर तभी उतरेंगी जब हाथ में बजट होगा। पांच वित्तीय वर्ष में 250 करोड़ मिलने हैं, दो वित्तीय वर्ष बीतने वाले हैं, लेकिन चवन्नी नहीं मिली। फिलहाल उम्मीद बनाए रखिए, सपना जरूर साकार होगा।

बदनुमा दाग है अतिक्रमण

अतिक्रमण ने केवल पैदल चलने वालों का अधिकार ही नहीं छीना है, शहर को बदसूरत बनाने में भी इसी का हाथ है। सड़क पर आड़े-तिरछे खड़े ठेलों का अतिक्रमण हो या फिर फुटपाथों पर सजी दुकानों का, एक बदनुमा दाग है। यह दाग हट सकते हैं, लेकिन इसके लिए खुद लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी। फुटपाथ के बारे में सोचना पड़ेगा। आखिर ये फुटपाथ बनाए किसलिए जाते हैं, सोचना होगा कि दुकान के सामने जगह रहेगी तो सड़क पर वाहन नहीं खड़े होंगे। आवागमन बाधित नहीं होगा। नालों पर कब्जे नहीं होंगे तो सफाई बेहतर हो सकेगी। बढ़ते अतिक्रमण से संकरी होती सड़कें, और हर रोज होती दुर्घटनाएं किसी से छिपी नहीं हैं। यही वजह है कि सरकार स्ट्रीट वेंडर्स को बसाने की योजना लेकर आई है, ताकि सड़कों को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाई जा सके। हालांकि, यह सबके प्रयास से ही संभव होगा।

ये बदलाव अच्छा है

जिन नालों की पटरी किनारे अक्सर लोग कूड़ा फेंक दिया करते थे, अब उन नालों के किनारे कहीं फूल खिलते नजर आने लगे हैं तो कहीं पर हरे-भरे पौधे शोभा बढ़ा रहे हैं। स्वच्छ और सुंदर शहर का सपना देखने वाले लोगों के लिए ये बदलाव अच्छा है। शहर के बड़े नालों के किनारे परती जमीन पर लोग खुद के खर्चे से तारबंदी कर रहे हैं। उसके अंदर फूलदार और हरियाली वाले पौधे लगा रहे हैं। लोगों के इन छोटे से प्रयास की वजह से बदसूरत दिखने वाले नालों के किनारे भी खूबसूरत दिखने लगे हैं। पर्यावरण की सेहत सुधारने के लिए यह बदलाव बहुत जरूरी है। अच्छी बात ये है कि यह तरीका लोग उन स्थानों पर अधिक अपना रहे हैं, जहां पर कचरे के ढेर लगे रहते थे। उन पर जानवरों के झुंड मौजूद होते थे। काश, नगर निगम भी कुछ ऐसा ही कर पाता।


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