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काली नदी का स्याह सच

By Edited By: Published: Tue, 29 May 2012 02:22 AM (IST)Updated: Tue, 29 May 2012 02:29 AM (IST)
काली नदी का स्याह सच

मेरठ : जहर बन चुका काली नदी का जल मेरठ के जयभीमनगर, आढ़, कुढ़ला, धंजू, देदवा, उलासपुर, बिचौला, मैथना, रसूलपुर, गेसपुर, मुरादपुर, बढ़ौला, कौल व यादनगर समेत मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, अलीगढ़, बुलंदशहर, कन्नौज के 112 गांवों के सैकड़ों लोगों की जान ले चुका है। यमुना प्रदूषण नियंत्रण प्रोजेक्ट के अन्तर्गत इस नदी से प्रदूषण दूर करने को करीब 480 करोड़ स्वाहा हो चुके हैं पर बढ़ते प्रदूषण से इसका कंठ नीला पड़ गया है। नदी नाले का रूप धारण कर चुकी है। इसके पानी का इस्तेमाल लोगों को मौत के आगोश में ले जा रहा है।

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ये है तस्वीर

गंगा की सहायक काली नदी मुजफ्फरनगर के गांव अंतवाड़ा से शुरू होकर 300 किमी लंबी दूरी तय करके मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए कन्नौज में जाकर गंगा में मिलती है। 80 के दशक तक टेढ़ी-मेढ़ी व लहराकर बहने वाली इस नदी को नागिन पुकारा जाता था, जबकि कन्नौज में यह कालिन्दी के नाम से मशहूर है। उद्गम स्थान से मेरठ तक यह नदी एक छोटे नाले के रूप में बहती है। अवैध कब्जे व कचरा पड़ने के कारण आगे भी नाले का रूप धारण कर रही है। मेरठ के तीन नालों आबू नाला नंबर वन, आबू नाला नंबर टू, ओडियन नाला का गैर शोधित तरल कचरा भी इसमें जाता है। 80 के दशक मे आद्योगिक इकाइयों, घरेलू बहिस्राव, मृत पशुओं का नदी में बहिस्राव, कमेलों व अन्य का गैर-शोधित कचरा ढोने का साधन मात्र बननी शुरू हुई। 1984 में हजारों मछली प्रदूषण के कारण मरीं पर प्रदूषण नियंत्रण या सिंचाई विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। असर यह हुआ कि आज उसके पानी को हथेली में लेने से हाथ की रेखाएं नहीं दिखती हैं। घोसीपुर कमेले से पशुओं का खून व अवशेष सीधे काली नदी में डाले जा रहे हैं।

नदी में समाया भयंकर प्रदूषण

अनुसंधान एवं नियोजन (जल संसाधन) विभाग खंड मेरठ, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) व जनहित फाउंडेशन की रिपोर्ट व व‌र्ल्ड वाइड फंड की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि 2035 तक यह नदी लुप्त हो जाएगी। इसमें पानी की रफ्तार लगातार घटती जा रही है। गेज स्थान बुलंदशहर में जल स्तर 35 क्यूसेक है जो 25 साल पहले 600 क्यूसेक रहता था। इनमें लेड 1.15 से 1.15, क्रोमियम 3.18 से 6.13 व केडमियम 0.003 से 0.014 मिलीग्राम/लीटर पाए गये हैं। बीएचसी व हेप्टाक्लोर जैसे पॉप्स भी इसमें मिले हैं। 2-3 हजार किलो लीटर गैर-शोधित तरल कचरा रोजाना इसमें डाला जाता है। वर्ष 1999-2001 केंद्रीय भू-जल बोर्ड की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, इस नदी के पानी नमूनों में लेड, क्रोमियम आदि तत्व पाये गये हैं। मेरठ समेत पूरे नदी क्षेत्र आसपास के112 गांव प्रदूषित घोषित किये गये हैं।

जापान ने नहीं दिया 88 करोड़

मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप पर प्रदेश सरकार के नियोजन विभाग ने इस नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 88 करोड़ रुपये की योजना बनाई। धनराशि को राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय व जापान बैंक ऑफ इंटरनेशनल को-ऑपरेशन आग्रह किया पर जापान सरकार ने पूर्व में यमुना एक्शन प्लान योजना की आडिट रिपोर्ट न मिलने के कारण यह पैसा नहीं दिया।

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