Relief from NSA : सहारनपुर के दो पत्रकारों को रासुका से 30 साल बाद मिली राहत
Relief from NSA आठ अप्रैल 1987 को गंगोह में श्रीराम शोभायात्रा निकाली गई जिसे रोक दिया गया। इससे तनातनी का माहौल बन गया। पुलिस ने एकपक्षीय कार्रवाई कर पत्रकार डा. राकेश गर्ग व राकेश गोयल समेत एक अन्य के खिलाफ संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज कर किए थे।
सहारनपुर, जागरण संवाददाता। रामजन्म भूमि आंदोलन काल में गंगोह कस्बे में जुलूस निकालने को लेकर हुए टकराव में दो पत्रकारों पर रासुका की कार्रवाई की गई थी। मामला पूरे प्रदेश में चर्चित हुआ तो मुकदमा वापसी का शासनादेश हो गया था। अब उस आदेश को स्वीकारते हुए न्यायालय ने पत्रकारों को इससे राहत दे दी है।
यह था मामला
1987 में कोर्ट के आदेश पर अयोध्या स्थित रामलला मंदिर के ताले खोले गए थे। लोगों ने खुशी में बाजार सजाए। प्रतिष्ठानों व घरों पर झंडे लगाए गए। प्रशासन द्वारा तीन अप्रैल 1987 को झंडे व बैनर उतरवा दिए गए। इससे क्षुब्ध दुकानदारों ने प्रदर्शन किया था। मामले के पीडि़त डा. राकेश गर्ग के अनुसार, आठ अप्रैल 1987 को श्री राम शोभायात्रा निकाली गई, जिसे नूरी मस्जिद पर जबरन रोक दिया गया। इससे तनातनी का माहौल बन गया। पुलिस प्रशासन ने इस प्रकरण में एकपक्षीय कार्रवाई कर पत्रकार डा. राकेश गर्ग व स्व. राकेश गोयल समेत एक अन्य के खिलाफ संगीन धाराओं में मुकदमे बनाए और रासुका लगाकर 15 अप्रैल को जेल भेज दिया। पत्रकारों ने इसके विरोध में आंदोलन चलाया, जिसकी गूंज संसद व विधानसभा तक पहुंची।
29 अप्रैल को 500 पत्रकारों ने डीएम कार्यालय पर ज्ञापन चस्पा किया था। प्रशासन ने रासुका वापस लेकर 15 मई 1987 को पत्रकारों को रिहा कर दिया लेकिन 153ए व अन्य धाराएं नहीं हटाई थीं। सपा के वरिष्ठ नेता स्व. रामशरण दास ने 1991 में मुकदमा वापसी का शासनादेश कराया था, मगर इसके क्रियान्वयन में 30 साल से ज्यादा समय लग गया। सिविल जज की अदालत ने प्रकरण में पत्रकारों को मुक्त कर दिया गया है। बार संघ के जिलाध्यक्ष अभय सैनी ने इसके लिए निस्वार्थ भाव से प्रयास किया।
यह है धारा 153 ए
आइपीसी की धारा 153 (ए) के तहत धर्म, भाषा, नस्ल आदि के आधार पर नफरत फैलाने का आरोप लगाया जाता है। धारा 153 (ए) के तहत तीन साल तक की कैद या जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं।