नौकरी छोड़ ऋतुराज ने जैविक खेती को बनाया जीवन का लक्ष्य, बिजनौर के किसान को ऐसे मिली कामयाबी
बिजनौर के गांव ऊमरी निवासी ऋतुराज सिंह चौहान ने वर्ष 2000 में नागपुर से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश गुजरात ग्रेटर नोएडा आदि में अच्छी सैलरी पर कई वर्षों तक प्राइवेट नौकरी की लेकिन उन्होंने नौकरी छोड़कर जैविक खेती को अपना लिया।
बिजनौर, जागरण संवाददाता। गांव ऊमरी निवासी ऋतुराज सिंह चौहान इंजीनियर की नौकरी छोड़कर दो साल से गांव में जैविक खेती कर रहे हैं। उनका उद्देश्य किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है। इसके चलते वह जैविक खेती के लिए किसानों को प्रेरित भी कर रहे हैं। वह यह खेती 27 बीघे जमीन पर कर रहे हैं।
गांव ऊमरी निवासी 45 वर्षीय ऋतुराज सिंह चौहान पुत्र राजेन्द्र सिंह चौहान ने वर्ष 2000 में नागपुर से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश, गुजरात, ग्रेटर नोएडा आदि में 70 हजार रुपये की मासिक सैलरी पर कई वर्षों तक प्राइवेट नौकरी की, लेकिन उन्होंने दो साल पहले नौकरी छोड़कर जैविक खेती को अपना मुख्य व्यवसाय बनाया। उनका कहना है कि जैविक खेती उनके जीवन का लक्ष्य है। उन्होंने अपने पैतृक गांव ऊमरी में 27 बीघे जमीन पर जैविक काला व जामनी गेहूं, बासमती धान, उड़द, गन्ना आदि की खेती शुरु कर दी। नई प्रजातियां लगाना उनका शौक है। उन्होंने फलों में ड्रैगन फल के साथ कई तरह के फल जैसे सेब, आम, अमरूद, चीकू, लीची, नाशपाती, संतरा, पपीता जैसे और भी कई तरह के फलों को भी लगाया हुआ है। इसके साथ-साथ उन्होंने गन्ने के साथ लाल केला भी लगाया है, जो एक दक्षिण भारत की प्रजाति है। उनके पिता राजेन्द्र सिंह कृषि विभाग मुरादाबाद से रिटायर हैं।
पैकिंग कर बेचते हैं जैविक गु्ड़ व शक्कर
गांव ऊमरी में ही उन्होंने ऊमरी जैविक उद्यान के नाम से कंपनी बना रखी है। वह जैविक गन्ने की खेती करते हैं तथा जैविक उद्यान में जैविक गुड़ व शक्कर तैयार करते हैं। उसकी पैकिंग भी वह स्वयं करते हैं। पैकिंग के बाद ही वह उस गुड़ व शक्कर को बेचते हैं। ऋतुराज सिंह चौहान ने बताया कि जैविक खेती के उत्पादों से कोई बीमारियां नहीं फैलती है तथा स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
गन्ने के साथ करते हैं सहफसली खेती
ऋतुराज सिंह चौहान गन्ने के साथ सहफसली खेती भी करते हैं। इसमें वह सरसों, लहसुन, प्याज, अदरक, हल्दी आदि फसलों की भी पैदावार करते हैं। इससे उनकी आय में भी इजाफा होता है। इसके अलावा वह सहफसली खेती के लिए अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित करते हैं। उनका मानना है कि गन्ने के साथ सहफसली खेती करने से किसान की आर्थिक स्थिति बेहतर हो जाएगी।