Kachre Se Azadi: इस गार्बेज क्लीनिक में होता है कचरे का निस्तारण
नगर निगम और नगर पालिकाओं के लिए जो कचरा सिरदर्द बना है उसी कचरे का यहां वैज्ञानिक विधि से इलाज कर खाद बना दिया जाता है जो नए पौधों में जान भर देता है।
मेरठ, दिलीप पटेल। 222 एकड़ में फैले चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में रोजाना निकलने होने वाला एक चुटकी भी कूड़ा-कचरा बाहर नहीं फेंका जाता है। इस कचरे का निस्तारण कैंपस में मौजूद गार्बेज क्लीनिक में ही कर दिया जाता है। नगर निगम और नगर पालिकाओं के लिए जो कचरा सिरदर्द बना है, उसी कचरे का यहां वैज्ञानिक विधि से इलाज कर खाद बना दिया जाता है, जो नए पौधों में जान भर देता है।
सालभर पहले चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) के अभियांत्रिकी विभाग के विकास त्यागी की देखरेख में इसकी शुरुआत हुई। वह बताते हैं कि परिसर में बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। पेड़-पौधों की पत्तियों और घरों का कचरा लगभग 4000 किग्रा प्रतिदिन निकलता है। नगर निगम विश्वविद्यालय परिसर का कचरा नहीं उठाता था, जिससे परिसर में गंदगी फैली हुई थी। इसके निस्तारण के लिए परिसर में 100 मीटर गुणा 50 मीटर क्षेत्रफल में करीब 57 लाख रुपये की
लागत से गार्बेज क्लीनिक (कंपोस्टिंग यूनिट) शुरू की गई। इसमें गीले कचरे के निस्तारण के लिए कंपोस्टिंग पिट और सूखे कचरे के लिए रैक बना रखे हैं। नीले और हरे रंग के कूड़ेदान परिसर में रखे हैं। 90 फीसद लोग गीला और सूखा कचरा अलग-अलग डालते हैं।
गार्बेज क्लीनिक से दो गार्बेज एंबुलेंस (कचरा गाड़ी) परिसर से कचरा एकत्र करती हैं। इसका सेग्रीगेशन किया जाता है। गीले कचरे को कंपोस्टिंग पिट में डालते हैं। यहां पर 10 प्रोसेसर मशीन लगी हैं। केमिकल डालकर वैज्ञानिक विधि से कचरे को खाद में तब्दील किया जाता है। 10 से 15 दिन में कचरे से खाद तैयार हो जाती है। इंजीनियर विकास त्यागी ने बताया कि अभी तक 200 बोरी खाद बना चुके हैं, जिसका उपयोग उवर्रकके रूप में होता है। गार्बेज क्लीनिक पर कूड़ा पहुंचते ही उसे पानी से साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया में जो पानी बर्बाद होता है, उसे भी इस्तेमाल करने लायक बनाया जाता है। इसके लिए दो प्लांट लगाए गए हैं।
दो कंपनियों से भी है अनुबंध: सूखे कचरे के निस्तारण के लिए गार्बेज क्लीनिक पर रैक बना रखे हैं। जिसमें प्लास्टिक समेत नॉन कंपोस्टिक मैटेरियल जैसे कांच, बोतल अलग-अलग कर लेते हैं। दो कंपनियों से अनुबंध है जिन्हें री-साइकिल के लिए दिया जाता है। इस तरह विश्वविद्यालय परिसर में उत्र्सिजत हर प्रकार के कचरे का निस्तारण होता है।
उत्तर भारत में विश्वविद्यालय कैंपस में यह पहला सफल प्रयोग: यह भी दावा है कि चौ चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में शुरू हुआ यह गार्बेज क्लीनिक उत्तर भारत के किसी विश्वविद्यालय में अपनी तरह का पहला क्लीनिक है। जिससे कूड़े का इलाज किया रहा है। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान यानी रूसा के तहत र्नििमत इस गार्बेज क्लीनिक में छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर मॉडल पर काम होता है। यानी कचरे को अलग करके उनके प्रकार के हिसाब से सभी का शत-प्रतिशत निपटान तय किया जाता है और कचरा आय का जरिया भी बनता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि देश के बच्चे-बच्चे में निजी और सामाजिक साफ-सफाई को लेकर जो चेतना पैदा हुई है, उसका बहुत बड़ा लाभ कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में भी हमें मिल रहा है। आप जरा कल्पना कीजिए, अगर कोरोना जैसी महामारी 2014 से पहले आती तो क्या स्थिति होती? शौचालय के अभाव में क्या हम संक्रमण की गति को कम करने से रोक पाते? क्या तब लॉकडाउन जैसी व्यवस्थाएं संभव हो पातीं, जब भारत की 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर थी स्वच्छाग्रह ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हमें बहुत बड़ा सहारा दिया है, माध्यम दिया है।
(आठ अगस्त को राष्ट्रीय स्वच्छता केंद्र के उद्घाटन पर दिए भाषण का अंश)