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Women empowerment: तिरंगे से मिला तीन सौ महिलाओं को 'जीवन', आत्‍मनिर्भरता की ओर एक कदम Meerut News

मेरी जान तिरंगा है मेरी शान तिरंगा है...राष्ट्रीय एकता सद्भाव गौरव और अखंडता का प्रतीक हैं तिरंगा। तीन सौ महिलाओं को झंडा बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार दिया जा रहा है।

By Prem BhattEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 01:25 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 01:25 PM (IST)
Women empowerment: तिरंगे से मिला तीन सौ महिलाओं को 'जीवन', आत्‍मनिर्भरता की ओर एक कदम Meerut News
Women empowerment: तिरंगे से मिला तीन सौ महिलाओं को 'जीवन', आत्‍मनिर्भरता की ओर एक कदम Meerut News

मेरठ, जेएनएन। Women empowerment मेरी जान तिरंगा है, मेरी शान तिरंगा है...राष्ट्रीय एकता, सद्भाव, गौरव और अखंडता का प्रतीक हैं तिरंगा। स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराकर हम सभी गौरव का अनुभव करते हैं। सिर्फ तिरंगा फहराना ही नहीं, इसके बाद तिरंगा संभाल कर रखना भी आवश्यक है। लोग झंडा फहराने के बाद इसका दुरुपयोग न कर सकें, इसके लिए मेरठ के 26 वर्षीय दुर्गेश ठाकुर ने एक नई पहल की है।

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रोजगार प्रदान कर रही संस्‍था

उनकी संस्था उद्गम न सिर्फ इस समय तीन सौ महिलाओं को झंडा बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार प्रदान कर रही हैं, बल्कि झंडा लेने वालों से उनका आग्रह है कि वे झंडा फहराने के लिए उन्हें वापस भी कर सकते हैं। अक्सर लोग झंडा फहराने के बाद उसका सम्मान करना भूल जाते हैं। मीनाक्षीपुरम निवासी दुर्गेश बताते हैं कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाने के बाद लोग झंडे सम्मान करना भूल जाते हैं, और इधर-उधर रख देते हैं। अपने अभियान के तहत हम लोगों से झंडा फहराने के बाद उसे वापस करने की अपील कर रहे हैं।

बदल दिया तीन सौ महिलाओं का जीवन

मीनाक्षीपुरम, कसेरूखेड़ा और मोहिउद्दीनपुर के अलावा अंजोली, डिमोली और छज्जुपुर की तीन सौ महिलाएं कागज और कपड़े के झंडे तैयार कर रही हैं, जो 14 और 15 अगस्त के दिन अपने-अपने क्षेत्रों में दुकान लगाएंगी। महिलाओं को झंडा बनाने का प्रशिक्षण देने वाली चांदनी बिष्ट बताती हैं कि यहां न सिर्फ महिलाओं को झंडा बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, बल्कि बिक्री की जानकारी भी दी जाती हैं। जिससे महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हो सकें।

गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं दुर्गेश

35 साल पहले दुर्गेश के दादा सुखराम ने गंगानगर गांव अमेरा में पूजा पब्लिक स्कूल खोलकर बच्चों को शिक्षित करने की राह चुनी। दुर्गेश उस राह में नई रोशनी डाल रहे हैं। स्कूल ने 150 गरीब और असहाय बच्चों को गोद लिया हुआ है। जिसे शिक्षित करने के अलावा उसके खाने-पीने, कपड़ों और किताबों का खर्च स्कूल प्रबंधन द्वारा ही उठाया जाता है। दुर्गेश का कहना है कि इन बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩा ही उनका उद्देश्य है।


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