मुझे तिमिर पीते जाना है, एक अपील ने उम्मीदों की लौ में फिर से जान फूंकी Meerut News
कोरोना से जंग जारी है। निराशा के अंधेरों से निकलकर लोग नई उम्मीदों के साथ रोशनी लेकर खिड़कियों पर पहुंचे। चंद लम्हों तक घर में अंधेरा किंतु बाहर प्रकाश की गंगा तैरती रही।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। महामारी के खौफ ने जगमगाती दुनिया में एक अंधकार पैदा कर दिया है। मानव मस्तिष्क सुन्न पड़ गया है। इलाज की खोज में विज्ञान अंधेरी सुरंग में गोते लगा रहा है। असंख्य मौतों ने मन को झकझोर दिया। प्रकृति खामोशी से सब कुछ देख रही है। दुनिया ऐसी ढलान पर खड़ी है, जहां जिंदगी की डोर हाथ से सरकने का खतरा है। किंतु इस बीच प्रधानमंत्री की एक अपील ने उम्मीदों की लौ में फिर से जान फूंक दी। दीया जलाने का संदेश रात के नौ बजे पूरे देश में एक करंट की तरह प्रवाहित हुआ। निराशा के अंधेरों से निकलकर लोग नई उम्मीदों के साथ रोशनी लेकर खिड़कियों पर पहुंचे। चंद लम्हों तक घर में अंधेरा, किंतु बाहर प्रकाश की गंगा तैरती रही। ये चिराग कई आंधियों पर भारी नजर आए। मन मंदिर जगमग करने से आत्मबल का दिव्य प्रकाश फैलेगा। बीमारी शिकस्त खाएगी।
कोरोना योद्धाओं को जय हिंद
संक्रमण के साए में दुनिया घरों में सिमट गई। बाजार वीरान हैं, जबकि अस्पतालों में हाहाकार मचा है। हर खांसते और छींकते व्यक्ति से लोग दूरी बना लेते हैं। एक बीमार सैकड़ों नए लोगों को संक्रमित कर सकता है। किंतु इन जटिल परिस्थितियों में मेडिकल कर्मी कोरोना मरीजों के बीच डटे हुए हैं। प्रोटेक्शन किट में इतनी गर्मी पैदा होती है कि कई चक्कर खाने लगे। जरा सी चूक होते ही संक्रमण तय। एक के संक्रमित होने पर सभी को क्वारंटाइन में जाना होगा, और चिकित्सा व्यवस्था चरमरा जाएगी। किंतु कोरोना योद्धाओं ने इस किट को वर्दी बताया, जिसे पहनकर देश सेवा का सौभाग्य मिला। इस टीम में ऐसे जूनियर डाक्टर हैं, जो इसी शहर में मां-बाप से माहभर से नहीं मिल पाए। हाल में शादी हुई है, किंतु कोरोना ने पत्नी से महीनों की दूरी बना दी। ये योद्धा ही नहीं, तपस्वी भी हैं।
सेवा के लिए उमड़ा जनज्वार
देश के कदम थम गए हैं। हजारों लोग घरों में रहकर सरकार के फरमान का सम्मान कर रहे हैं, किंतु इस बीच रोजमर्रा की जरूरतें और पेट की भूख ने मानवता को नए ढलान पर खड़ा कर दिया है। किंतु जनसेवा के लिए शहर के कोने-कोने से जनज्वार उमड़ पड़ा। किंतु पूरे अनुशासन के साथ। सैकड़ों स्थानों पर भोजन बनाकर ऐसे लोगों तक पहुंचाया जा रहा है, जिनका जीवनचक्र रोज कमाने और खाने तक सिमटा हुआ था। उनके पास कोई पूंजी और संसाधन नहीं, किंतु समाज ने बढ़कर उनका हाथ थाम लिया। गरीब, मजदूर, ठेले और रेड़ी वालों के साथ ही झुग्गियों में रहने वालों तक भी दवाएं, राशन और भोजन पहुंचाया जा रहा है। यहां मानवता का संस्कार देखिए, जहां जात-पात, पंथ व मजहब सब गौण हैं। सिर्फ मानवता का प्रकाश फैला है। सिर्फ एक संकल्प और। हमारे शहर में कोई भूखा नहीं सोएगा।
प्रकृति बात करना चाहती है
महामारी ने रफ्तार भरी दुनिया के आगे ब्रेकर बना दिया। भागते दौड़ते रास्ते थम से गए। भारत ने 21 दिनों तक ठहरने का व्रत लिया, जिसमें कई दिग्गजों के आत्ममंथन से निकला अमृत छलकने लगा है। उन्हें प्रकृति का संकेत और भाषा समझ में आ रही है। प्रकृति ने चंद दिनों में ही कई रूप दिखाए हैं। मेरठ के सबसे व्यस्त क्षेत्रों में चमगादड़ पेड़ों पर लटके हुए हैं। ये शांतिप्रिय प्राणी है, जिसे शहर की खामोशी भाने लगी है। चिड़ियों का झुंड बड़ा हो रहा है। उनके चहचहाने की आवाज ऊंची है। पेड़ पौधों की भाषा बदली हुई है। तालाबों और नदियों के पानी में अपार शांति है। जालंधर से हिमालय दिखा है। मेरठ की हवा अप्रैल में भी ठंडी बनी हुई है। वाहनों की खामोशी से आसमान साफ है। प्रकृति जैसे कह रही है कि ये दौर आत्ममंथन का है। छेड़छाड़ बंद करें।