मौजूदा दौर को रचनात्मक कार्यो से बना सकते हैं यादगार
लॉकडाउन के दौरान दिनभर घर में रहते हुए वक्त का अच्छे से सदुपयोग किया जा सकता है। शहर में युवक-युवतियां छात्र-छात्राएं अपने-अपने तरीके से रचनात्मक कार्यों में वक्त लगा रहे हैं। जिस कार्य के लिए उन्हें पहले वक्त नहीं मिलता था उसमें वे नए अनुभव ले रहे हैं।
मेरठ, जेएनएन। लॉकडाउन के दौरान दिनभर घर में रहते हुए वक्त का अच्छे से सदुपयोग किया जा सकता है। शहर में युवक-युवतियां, छात्र-छात्राएं अपने-अपने तरीके से रचनात्मक कार्यों में वक्त लगा रहे हैं। जिस कार्य के लिए उन्हें पहले वक्त नहीं मिलता था, उसमें वे नए अनुभव ले रहे हैं। दिन कैसे बीत रहा है, इस पर कुछ युवतियों ने अपनी कहानी लिखी है।
यह वक्त भी जरूरी है : मुस्कान
मैं आरजी पीजी कॉलेज में हूं। कोरोना वायरस के चलते जब लॉकडाउन हुआ तो थोड़ा दुख हुआ, पर खुशी बहुत हुई। पहली खुशी तो यह रही कि हम घर में सुरक्षित रहेंगे। दूसरी यह रही कि पापा परिवार को पूरा समय देंगे। लॉकडाउन में हम पूरे परिवार के साथ गेम खेलते हैं। मम्मी के साथ कई नई डिश सीखी। लॉकडाउन के बाद मम्मी की काम में मदद कर पाती हूं। जिस महामारी से इतनी तबाही मची है, उस कोरोना के विषय में पूरा अध्ययन कर रही हूं। मेरे छोटे भाई-बहन हैं। मैं जितना अच्छा इस विषय को समझ पाऊंगी, दूसरों को भी सही तरीके से बता पाऊंगी। लॉकडाउन से मैंने दूसरों के घर मे खुशी देखी। एक आंटी जो किराये पर मेरे घर में रहती हैं। पहले वे शाम को दूसरों के घर का खाना बनाकर थककर आती थीं। उन्हें चाहे कोई भी तकलीफ क्यों न हो, छुट्टी नहीं करती थीं। लॉकडाउन के चलते उन्हें आराम मिला है। मुझे यह देख बहुत अच्छा लगता है। घर पर बैठे-बैठे मैंने इस माहौल को देखकर कविता लिखी है-
आज की इस दुनिया में, क्या किसी को समय है।
कौन किसे देखे, क्या किसी को समय है।
तरक्की और पैसा कमाना, बस यही एक धर्म है।
दो पल भी जरूरी ना क्या परिवार के साथ,
आज की इस दुनिया में क्या किसी को समय है?
-मुस्कान पाल, बीए, प्रगति नगर।
फिटनेस पर दे रहीं हूं ध्यान : अपूर्वा
मैं बीएससी बायोटेक्नोलॉजी फाइनल ईयर की छात्रा हूं। कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए लागू 21 दिन के लॉकडाउन को मैंने कई काम के लिए एक अवसर माना है। इस समय का इस्तेमाल अपनी फिटनेस में सुधार लाने के लिए कर रही हूं और इसके लिए एयरोबिक्स करती हूं। किताबें पढ़ने और अपने भाई के साथ शतरंज खेल कर समय व्यतीत कर रही हूं। ऑनलाइन गिटार सीख रही हूं। सुबह पांच बजे उठ जाती हूं। मुझे सवेरे दैनिक जागरण की भी बड़ी प्रतीक्षा रहती है। मैं रोजाना की ताजा जानकारी भी हासिल करती रहती हूं। लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए मैंने जनता कर्फ्यू वाले दिन 'गो-कोरोना-गो' के नारे भी लगाए और शंखनाद भी किया था। लॉकडाउन ने हमें एक वक्त दिया है। हमें मंथन करना चाहिए कि हम अपने जीवन को, अपने पर्यावरण को, अपने शहर को, अपने परिवेश को कैसे सुरक्षित और बेहतर बनाएं। इस गंभीर विपदा से निपटने के लिए मैं लॉकडाउन को सकारात्मक तरीके से ले रही हूं। शाम का समय पूजा करने में व्यतीत हो रहा है। बहुत सुकून मिल रहा है। प्रधानमंत्री के निर्देश का हम पूरी तरह से पालन कर रहे हैं। घर से निकलना बंद है। इस मुश्किल वक्त में सबसे यही अनुरोध है कि वे शारीरिक दूरी बनाए रखें। बाहर आना-जाना बिल्कुल बंद कर दें। खुद सुरक्षित रहे और पूरे समाज को सुरक्षित करें।
-अपूर्वा पांडेय, छात्रा, बीएससी बायोटेक्नोलॉजी