सियासी तर्ज पर जमात में परिवारवाद का भी विवाद, साद कुछ इस तरह बना जमात का हुक्मरान Meerut News
मौलाना इलियासी की मौत के बाद परिवारवाद पूरी तरह से हाबी होते हुए साद को जमात का प्रमुख बनाया गया था। जिस कारण जमात में विवाद बढ़ गया। अब पद के लिए परिवार में दो हिस्से हैं।
मेरठ, [राजन शर्मा]। शामली जिले के छोटे से कस्बे कांधला से चले फकीर मिजाज शख्सियत मौलाना इलियास कांधलवी ने दीन की राह पर डग भरे। उन्होंने मुस्लिम समाज में दीन का प्रचार-प्रसार और एकता के मकसद से तब्लीगी जमात के सफर का आगाज किया। करोड़ों लोग इससे जुड़ गए, लेकिन मौलाना के इंतकाल के बाद जमात पर परिवारवाद हावी हो गया। मौलाना साद ने तो इंतिहा ही कर दी। उन्होंने तमाम बुजुर्गाने दीन को दरकिनार कर खुद को जमात का 'हाकिम' घोषित कर दिया। नतीजतन, तब्लीगी जमात अपने मूल मकसद से ही भटक गई। जानकारों का मानना है कि फिलवक्त जमात के कुप्रबंधन और हठधर्मिता के कारण ही कोरोना प्रकरण को लेकर जिल्लत झेलनी पड़ रही है।
मौलाना इलियास कांधलवी की सरपरस्ती में तमाम लोग निस्वार्थ भाव से तब्लीगी जमात की खिदमात को अंजाम देते रहे। उस वक्त मौलाना अशरफ उल थानवी की सलाह पर इलियास कांधलवी ने समाज के पढ़े-लिखे को भी जोडऩा शुरू किया। इस सिलसिले में मौलाना अली मियां नदवी और मौलाना मंजूर नौमानी जैसी अजीम शख्सियत निजामुद्दीन मरकज से जुड़ गईं। मौलाना इलियास के इंतकाल के बाद इस पर परिवारवाद तारी हो गया। मौलाना के खानदानियों ने उनके बेटे मौलाना युसुफ को जमात का अमीर बना दिया। इसके बाद नदवी और नौमानी मरकज छोड़कर लखनऊ चले गए। मौलाना युसुफ ने जमात के काम को काफी फैलाया। इस काम में मौलाना रहमतुल्लाह उनके हमकदम रहे।
असल हकदार को किया किनारे
मौलाना युसुफ के इंतकाल के बाद मौलाना रहमतुल्लाह जमात के अमीर के बनने के असल हकदार थे, लेकिन परिवार का न होने के कारण उन्हें तवज्जो नहीं दी गई। जानकार बताते हैं कि उस दौरान इस बात को लेकर विवाद हुआ तो मौलाना युसुफ के ससुर और फजाइले आमाल के लेखक शेखउल हदीस मौलाना मोहम्मद जिकरिया ने अपने दूसरे दामाद मौलाना इनामुल इसन को जमात का अमीर बना दिया। इस तरह अमीर्रियत फिर से परिवार में ही रह गई। मौलाना रहमतुल्लाह मरकज से चले गए।
13 सदस्यीय शूरा समिति गठित
ये बात दीगर है कि मौलाना इनामुल हसन ने जमात में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने के लिए 13 सदस्य शूरा समिति गठित की ताकि भविष्य में किसी तरह की नाइंसाफी न हो सके। मौलाना इनामुल हसन के इंतकाल के बाद अमीर बनने को लेकर परिवार में विवाद शुरू हो गया, लेकिन इसके लिए बीच का रास्ता निकाला गया। इसके तहत इनामुल हसन के भाई मौलाना इजहार उल हसन, बेटे मौलाना जुबैर, मौलाना साद और मेवात निवासी नियाजी मेहराब जमात का काम मिल-जुलकर देखने लगे। इसके अलावा मौलाना अहमद लाट और मौलाना इब्राहिम भी खिदमात को अंजाम देते रहे। ये दोनों मौलाना साद के उस्ताद भी हैं। बताते हैं कि इन बुजुर्गों का इतना अहतराम था कि इज्तिमा में मौलाना अहमद लाट का खास बयान होता था और दुआ इनामुल हसन कराते थे।
मौलाना साद की हठधर्मिता
मौलाना इजहार उल हसन, मौलाना जुबैर और मेहराब के इंतकाल के बाद जमात में अमीर बनने को लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया। बताते हैं कि मौलाना साद नीयत में फर्क आ गया। पाकिस्तान के रायविंड शहर में तब्लीगी जमात का सलाना जलसा आयोजित किया गया। इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत देशों के उलमा इकराम ने शिरकत की। इसमें जमात के अमीर बनने का मुद्दा उठाया गया। जलसे में मौलाना साद हठधर्मिता दिखाते हुए खुद को जमात का अमीर घोषित कर दिया। इसे लेकर वहां हंगामे की स्थिति पैदा हो गई। तमाम बुजुर्गाने दीन ने काफी लानत-मलामत दी, लेकिन मौलाना साद टस से मस नहीं हुए। शूरा समेत सभी आलिमों की राय को दरकिनार कर दिया।
खंड-खंड हो गई जमात
मौलाना साद के अमीर बनने के बाद मौलाना अहमद लाट, मौलाना इब्राहिम, मौलाना जुहैर और मौलाना याकूब मरकज से अलग हो गए और दिल्ली में ही तुर्कमान गेट स्थित मस्जिद फैज ए इलाही में अलग से जमात का गठन कर दिया। फिलहाल ये आलिम अलग से अपनी जमात चला रहे हैं।
साद की नजर में कोरोना का इलाज
इस्लाम समेत दीगर मसलों पर अपनी व्याख्या को लेकर मौलाना साद दारुल उलूम समेत तमाम उलमा इकराम के निशाने पर रहे हैं। कोरोना वायरस से बचाव को लेकर सभी इस्लामी संस्थान सरकार और स्वास्थ्य विभाग की गाइड लाइन का अनुसरण करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन इस बाबत भी मौलाना साद की राय जुदा है। एक वायरल ऑडियो में वह कह रहे हैं कि यदि मस्जिद में मौत हो भी जाए तो मरने के लिए मस्जिद से अच्छी जगह और कौनसी हो सकती है। उन्होंने मस्जिद में जमा न होने की सलाह को सिरे से खारिज कर दिया। इसके अलावा वह दावा कर रहे हैं कि यदि मस्जिद में नमाज और एतकाफ किया जाए तो जल्द ही कोरोना से निजात पाई जा सकती है।
जमात के मायने
जमात लफ्ज का मतलब किसी खास मकसद के लिए जमा होना है। इसमें शामिल होने के लिए इच्छुक लोग कुछ समय के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीग के सुपुर्द हो जाते हैं। उनका घर-परिवार या दुनियादारी से कोई वास्ता नहीं रह जाता है।
जमात के छह उसूल
- ईमान यानी अल्लाह पर भरोसा।
- नमाज पढऩा।
- इकराम ए मुस्लिम यानी एक दूसरे का सम्मान करना।
- नीयत का साफ होना।
- रोजाना के कामों से दूर रहना।