वर्दी वाला : सिविल लाइन सर्किल संजीवनी, बढ़ा जुर्माना बन गया अभिशाप Meerut News
विशेष कॉलम बधाई हो बधाई आजकल पुलिस को यह वाक्य भी डराने लगा है। अपने बॉस को नई तैनाती के लिए अधीनस्थ बधाई देने से पैर पीछे खींच रहे हैं।
मेरठ, [सुशील कुमार]। शीर्ष अफसरों को शायद 17 सितंबर 2019 की तारीख हमेशा याद रहेगी। बदमाशों ने सर्राफ शोरूम लूटकर पुलिस को जो ललकारा था। बदमाशों को नाकों चना चबवाने वाले कमांडर अजय साहनी अजय साहनी के चेहरे पर उस दिन चिंता की लकीरें साफ झलक रही थीं। हो भी क्यों न, शहर के व्यापारी गुस्से में जो थे। तब तिलमिलाए कमांडर अपने अधीनस्थों पर कार्रवाई का बम फेंकने की तैयारी में लग गए, व्यापारियों को शांत जो करना था। थाना प्रभारी से लेकर चौकी इंचार्ज तक नाप दिए, अब सीओ की भी बारी आई। गुस्से से तिलमिला कर बोले, तुमको सबसे खराब सर्किल में भेजा जाएगा। कमांडर ने आवास पर मीटिंग बुलाई। पूछा गया कि जनपद का खराब सर्किल कौन सा है ...जवाब मिला कि सिविल लाइन। जनाब पहले ही सिविल लाइन में तैनात हैं। तब कमांडर के चेहरे पर बेसाख्ता हंसी आ गई, अफसर भी हंसने लगे। तब सीओ समझे कि भई, अब तो बच गए।
बधाई से लगता डर
बधाई हो बधाई, आजकल पुलिस को यह वाक्य भी डराने लगा है। अपने बॉस को नई तैनाती के लिए अधीनस्थ बधाई देने से पैर पीछे खींच रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस बधाई को अफसर न जाने क्या समझ ले। बात कर रहे हैं नोएडा में बनी पुलिस कमिश्नरी में तैनात नए अफसरों की। एक सीओ हरि मोहन हरि मोहन ने हिम्मत कर पूर्व में तैनात रहे कप्तान को अपर कमिश्नर आयुक्त बनने की बधाई दी, सीओ की बधाई पर अपर कमिश्नर आयुक्त के मन की बात जुबान पर आ गई। बोले, भैया कैसी बधाई, डीआइजी बनने के बाद भी एक ही जनपद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। अफसर का बयान आने के बाद दूसरे अधीनस्थों ने फोन पर बधाई देने के सिलसिले पर ब्रेक लगा दिया। दरअसल, नोएडा में तैनात दो अफसर पूर्व में मेरठ के कप्तान रह चुके हैं, ऐसे में अधीनस्थों का बधाई देने का हक तो बनता ही है।
इनाम से बड़ी कुर्सी
एक जवाब दो, इनाम बड़ा या थाने की कुर्सी? पुलिसकर्मियों का जवाब है थाने की कुर्सी। वरना अच्छे कार्य के लिए इनाम लेकर हर कोई खुश हो जाता है लेकिन पुलिस महकमे में अच्छे काम के बदले इनाम नहीं थाने की कुर्सी चाहिए। बात हाल में हुई सर्राफ शोरूम की लूट के पर्दाफाश की हो रही है। वारदात खोलने में तीन पूर्व थाना प्रभारी लगे हुए थे। कमांडर ने पूरी टीम को इनाम देकर बधाई दी। उस समय पूर्व थाना प्रभारी बोले, सर, इनाम के बदले में थाने की कुर्सी दे दीजिए। कमांडर अजय साहनी अजय साहनी कुछ समय तक हक्के बक्के रह गए। उनकी भी कुछ मजबूरियां हैं, शासन ने उनके हाथ जो बांध दिए हैं। प्रशासनिक आधार पर हटे थाना प्रभारी को छह माह तक दोबारा चार्ज नहीं मिलेगा। शासन का आदेश पालन करना होगा। अब तो जनाब कुर्सी को छोड़कर इनाम से काम चलाएं, थाने की कुर्सी का मोह फिलहाल छोड़ें।
बढ़ा जुर्माना बना अभिशाप
बात कुछ दिन पहले की है। पुलिस लाइन में यातायात के मुखिया संजीव वाजपेयी बैठे थे। तभी फोन पर एक भाजपा नेता बोले, हमारे लोगों का भी चालान कटेगा क्या? सत्ता का नशा है, इतना तो यातायात के मुखिया को कहने का अधिकार है ही। तभी जवाब मिलता है, आप चालान लेकर भेज दीजिए, देख लेंगे। चालान लेकर एक व्यक्ति नहीं आया बल्कि बड़ी संख्या में युवक थे। शायद सभी चालान एकत्र किए हुए थे। चालान देखकर यातायात के मुखिया का माथा ठनका कि अब क्या करें। अंतत उन्होंने कहा कि जुर्माना भरना तो पड़ेगा ही, मेरी जेब से भरा जाए या आपकी जेब से। तब सिफारिश करने वालों ने कहा कि सर, अपनी जेब से ही भर दीजिए। अब यातायात के मुखिया की जेब ढीली होनी तय थी। ऑनलाइन जुर्माना परंपरा उनके लिए एक अभिशाप बन गई है। हर रोज सिफारिश में दस के करीब चालान भुगतने पड़ते हैं।