लेबनान, साइप्रस और लीबिया के बाद अब भारत में भी हो रही जेनेटिक काउंसिलिंग, जाने मामा-भांजे की रक्त कुंडली कनेक्शन Meerut News
जेनेटिक काउंसिलिंग से दंपती बच्चे में आनुवांशिक रोगों का खतरा पता लगा रहे हैं। अब मामा की रक्त कुंडली भी भांजे की सेहत बता देगी। 9 से 12 सप्ताह के भ्रूण की हो रही जांच।
मेरठ, [संतोष शुक्ल]। अगर मामा में रक्तस्राव व घुटने में दर्द की हिस्ट्री है तो ये भांजे के लिए भी खतरे की घंटी है। मेरठ सरीखे टियर-टू शहरों में भी शादी या गर्भधारण से पहले दंपती जेनेटिक काउंसलिंग करवा रहे हैं। महिला के भाई की ब्लड हिस्ट्री सबसे महत्वपूर्ण मिल रही है। 9 से 12 सप्ताह के भ्रूण की जांच कर पता कर लिया जाता है कि बच्चा हीमोफीलिया होगा या नहीं।
इलाज पर भारी खर्च से बचाव
जेनेटिक काउंसलिंग की वजह से लेबनान, साइप्रस और लीबिया जैसे देशों में हीमोफीलिक बच्चे अब नहीं पैदा हो रहे हैं। भारत में भी जेनेटिक काउंसलिंग की डगर अपनाई जा रही है। हीमोफीलिया के मरीजों में जीवनभर रक्त में थक्का बनाने वाला फैक्टर चढ़ाना पड़ता है। केंद्र सरकार भी मानती है कि इन बीमारियों पर भारी भरकम खर्च होता है, ऐसे में नियंत्रण जरूरी है।
रक्त कुंडली का मिलान
रक्त कुंडली में ब्लड ग्रुप का मिलान नहीं होता, बल्कि मां-बाप के परिवारों की अनुवांशिक हिस्ट्री मिलाई जाती है। महिला में हीमोफीलिया के फैक्टर छिपे होते हैं। बेटा पैदा होने पर बीमारी का रिस्क 50 प्रतिशत, मां-बाप दोनों बीमारी से ग्रस्त हैं तो भी खतरा महज 25 फीसद है। बीमारियों का रिस्क पहले ही पता चल सकता है।
इन्होंने बताया
जेनेटिक काउंसलिंग में पति-पत्नी दोनों के परिवारों की हिस्ट्री बनाई जाती है। इससे होने वाले बच्चे में हीमोफीलिया, थेलेसीमिया, एनीमिया व ब्लड कैंसर जैसी बीमरियों का अंदाजा हो जाता है। विकार मिलने पर गर्भपात सुरक्षित रास्ता है।
- डा. राहुल भार्गव, रक्त रोग विशेषज्ञ