ई-रिक्शा में स्कूल ले जाना प्रतिबंधित है..पर अफसर आदेश के इंतजार में हैं
बचों की सुरक्षा के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने ई-रिक्शा में स्कूली बचों का लाना-ले जाना प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही सभी ऑटो रिक्शा को स्कूली बचों के अनुरूप सुरक्षित करने सभी वैन को स्कूली परमिट लेने की अनिवार्यता भी की गई है।
मेरठ, जेएनएन : बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने ई-रिक्शा में स्कूली बच्चों का लाना-ले जाना प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही सभी ऑटो रिक्शा को स्कूली बच्चों के अनुरूप सुरक्षित करने, सभी वैन को स्कूली परमिट लेने की अनिवार्यता भी की गई है। शासन के इस आदेश के बावजूद सोमवार को ई-रिक्शा, ऑटो रिक्शा, स्कूल वैन चालक व संचालक अनजान दिखे। साथ ही ट्रैफिक विभाग, आटीओ और जिला प्रशासन की ओर से भी इस व्यवस्था को सुनिश्चित कराने के लिए कोई सजगता नहीं दिखाई गई।
सारे मानक दरकिनार
ई-रिक्शा में महज चार लोगों के बैठने की जगह होती है लेकिन स्कूली बच्चों को ले जाते समय ई-रिक्शा चालक बीच की दोनों सीटों पर तीन-तीन, पीछे की ओर अतिरिक्त सीट लगाकर तीन और चालक सीट के दोनों ओर एक-एक बच्चे को बैठाकर चलते हैं। यही हाल दोनों तरह के ऑटो रिक्शा का भी है। बच्चों को बीच में टेबल रखकर बैठाया जाता है। स्कूलों में लगी वैन के चालक भी दोनों सीटों के बीच लकड़ी के टेबल रखकर 20 से अधिक बच्चों को बैठा लेते हैं।
किसी के पास नहीं स्कूल परमिट
मेरठ में कुछ ही स्कूल ऐसे हैं जहां अधिकतर बच्चे स्कूल बसों से आते-जाते हैं। अधिकतर स्कूलों में बसों की कम संख्या के कारण बच्चे ई-रिक्शा, ऑटो रिक्शा और स्कूल वैन से आवाजाही करते हैं। आरटीओ की ओर से मेरठ में अब तक तकरीबन पांच हजार ई-रिक्शा को ही रजिस्ट्रेशन नंबर मिला है जबकि शहर में इससे कहीं ज्यादा ई-रिक्शा चल रहे हैं। किसी भी ऑटो रिक्शा या वैन को स्कूल परमिट नहीं मिला है। इसी कारण स्कूल वैन व ऑटो ऊपर बच्चों का बैग रखने के लिए रैक नहीं बनवाते हैं। उनका तर्क है कि रैक होने से पुलिस स्कूल में वाहन चलने के संदेह पर पकड़ती है जबकि शासन ने स्पष्ट किया है कि सभी ऑटो रिक्शा व वैन के ऊपर बैग रखने के लिए रैक बनानी अनिवार्य है।
स्कूल बसों में नहीं आ सकते सभी बच्चे
शहर के अधिकतर स्कूलों में बस सुविधा है लेकिन सभी बच्चे यह सुविधा नहीं लेते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल जैसे कुछ ही स्कूल हैं जहां सभी पंजीकृत बच्चे या तो स्कूल बस से आते हैं अथवा अपने वाहन से। अन्य स्कूलों में तकरीबन 50 फीसद से कम बच्चे ही स्कूल बसों से आते हैं। अन्य ई-रिक्शा, ऑटो रिक्शा, वैन और निजी वाहनों से स्कूल पहुंचते हैं।
इन्होंने कहा- आदेश मिलते ही कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। हमने किसी भी वैन को स्कूल परमिट नहीं दिया है। वहीं करीब पांच हजार ई-रिक्शा के रजिस्ट्रेशन हुए हैं। एक-दो दिन में ही दिल्ली की तर्ज पर स्कूल वैनों को परमिट देने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। जो परमिट लेंगे वहीं स्कूलों में वैन चला सकेंगे।
-डा. विजय कुमार, आरटीओ, मेरठ -बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से शासन की यह पहल बेहतरीन है लेकिन इसे लागू करने से पूर्व वैकल्पिक व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए, ताकि बच्चों को भी परेशानी न हो और अभिभावकों पर भी आर्थिक बोझ न पड़े।
-राहुल केसरवानी, सचिव, मेरठ स्कूल सहोदय कांप्लेक्स स्कूली बच्चों की घटनाओं के बाद ही हमने सभी अभिभावकों को स्कूल बस से ही बच्चों को भेजने के लिए रजामंद किया। कुछ समय लगा लेकिन अब हमारे स्कूल में बच्चे या तो स्कूल बसों में अथवा निजी वाहनों से आते हैं।
-सविता चड्ढा, प्रिंसिपल, दिल्ली पब्लिक स्कूल ई-रिक्शा में बच्चे कतई सुरक्षित नहीं हैं। मजबूरी में कुछ अभिभावकों को अपने बच्चे भेजने पड़ते हैं।
-धर्मदास, अभिभावक ई-रिक्शा में क्षमता से अधिक बच्चे बैठाए जाते हैं। कई बार बच्चे दुर्घटनाग्रस्त भी हुए हैं। इनके खिलाफ सख्ती होने से वैकल्पिक व्यवस्था होगी।
-अजय कुमार, परिजन छोटे वाहनों को रेगुलेट करना जरूरी है। इनमें बच्चों के अनुसार सुरक्षा के कोई अतिरिक्त प्रबंध नहीं किए जाते हैं। इसीलिए ई-रिक्शा से बच्चों को भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। सरकार ऐसे वाहनों को परमिट ही क्यों देती है?
-वंदना शर्मा, स्कूल शिक्षिका व परिजन परमिट में अधिक रुपये नहीं लगेंगे तो हम ले लेंगे, लेकिन कमाई से ज्यादा पैसा परमिट में चला जाएगा तो हमारे लिए मुश्किल होगी।
-राहुल, वैन संचालक हम तो फिर भी ज्यादा बच्चों को नहीं बैठाते हैं। कड़ाई होने पर स्कूल परमिट ले ले लेंगे।
-लक्ष्य चौधरी, वैन चालक -मैं तो छह बच्चे ही बैठाता हूं। आज साथी का ई-रिक्शा अचानक खराब हो गया, इसलिए उसके रिक्शे के बच्चे भी बैठाने पड़ रहे हैं।
-शहजाद, ई-रिक्शा चालक