पर्यावरण बस चिंता का विषय है, पढ़ने का नहीं, छात्रों में घट रहा प्रकृति प्रेम Meerut News
सीसीएसयू कैंपस में संचालित एमएससी पर्यावरण विज्ञान कोर्स बंद होने के कगार पर है। पिछले साल मात्र 20 रजिस्ट्रेशन हुए थे और इस बार विवि ने रजिस्ट्रेशन खोले ही नहीं।
By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 14 Jul 2019 01:16 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2019 01:16 PM (IST)
मेरठ, जेएनएन। पर्यावरण को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल - (एनजीटी) से लेकर तमाम स्वयंसेवी संगठन और आमजन भी चिंतित हैं, लेकिन इसमें एक बड़ी चिंता और जुड़ गई है। दरअसल, जीवन के लिए महत्वपूर्ण इस विषय को पढऩे में छात्र- छात्राओं की कोई रुचि नहीं है। यह स्थिति तब है कि जब इसमें उच्च डिग्री भी हासिल की जा सकती है। चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में चल रहे एमएससी पर्यावरण विज्ञान कोर्स में छात्रों का गिरता रुझान इसका प्रमाण है। कम प्रवेश के चलते यह कोर्स बंद होने के कगार पर पहुंच चुका है।
छात्रों में घट रहा प्रकृति प्रेम
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में सेल्फ फाइनेंस में वर्ष 1996 से एमएससी इनवायरमेंटल साइंस कोर्स संचालित है। कुल 20 सीट हैं। कैंपस का यह सबसे पुराना कोर्स है। पिछले चार साल से इस कोर्स में पांच-छह छात्र-छात्राएं ही प्रवेश ले रहे हैं। कम प्रवेश के चलते पर्यावरण विज्ञान विभाग को अब जंतु विज्ञान विभाग की बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया है। लगातार कई साल से सीट नहीं भरने के कारण विश्वविद्यालय ने इस साल अभी तक इस कोर्स में रजिस्ट्रेशन ही शुरू नहीं किया है। कोर्स बंद होने के कगार पर है। हालांकि विश्वविद्यालय ने अभी कोर्स बंद करने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की है।
यूजीसी से मिले थे दो स्थायी पद
तत्कालीन कुलपति केसी पांडे के समय यूजीसी ने पर्यावरण विज्ञान में दो स्थायी पद भी दिए थे लेकिन विभाग की आपसी खींचतान में यह पद भी वापस चले गए।
प्रदेश में रोजगार नहीं
पर्यावरण विज्ञान के समन्वयक प्रो. एके चौबे का कहना है कि स्थायी फैकल्टी न होने और प्रदेश में रोजगार के कम अवसरों के चलते कम छात्र इस कोर्स में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। प्रदेश में पर्यावरण को पढ़ाने के लिए विशेषज्ञ शिक्षक नहीं हैं। भूगोल व अन्य विषय पढ़ाने वाले शिक्षक ही पर्यावरण पढ़ा रहे हैं। जम्मू कश्मीर जैसे विश्वविद्यालय में विशेषज्ञ शिक्षक ही पर्यावरण विषय पढ़ाते हैं।
अर्थशास्त्र में पर्यावरण की पढ़ाई
पर्यावरण की उपयोगिता को विश्वविद्यालय ने भी समझा है। इस साल से एमए अर्थशास्त्र में पर्यावरण अर्थशास्त्र का नया पेपर भी जोड़ा गया है। इस पेपर में छात्र पर्यावरण अर्थशास्त्र की उपयोगिता, प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग, घरेलू और वैश्विक स्तर पर पर्यावरण पर पडऩे वाले असर का अध्ययन करेंगे। कूड़ा निस्तारण, ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में पर्यावरण के क्षेत्र में आ रही समस्या और उसका निराकरण भी इसका हिस्सा होगा। इसके जरिए वायु प्रदूषण, सालिड वेस्ट मैनेजमेंट, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि का अर्थशास्त्र पर पडऩे वाले प्रभाव का अध्ययन किया जा सकेगा।
छात्रों में घट रहा प्रकृति प्रेम
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में सेल्फ फाइनेंस में वर्ष 1996 से एमएससी इनवायरमेंटल साइंस कोर्स संचालित है। कुल 20 सीट हैं। कैंपस का यह सबसे पुराना कोर्स है। पिछले चार साल से इस कोर्स में पांच-छह छात्र-छात्राएं ही प्रवेश ले रहे हैं। कम प्रवेश के चलते पर्यावरण विज्ञान विभाग को अब जंतु विज्ञान विभाग की बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया है। लगातार कई साल से सीट नहीं भरने के कारण विश्वविद्यालय ने इस साल अभी तक इस कोर्स में रजिस्ट्रेशन ही शुरू नहीं किया है। कोर्स बंद होने के कगार पर है। हालांकि विश्वविद्यालय ने अभी कोर्स बंद करने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की है।
यूजीसी से मिले थे दो स्थायी पद
तत्कालीन कुलपति केसी पांडे के समय यूजीसी ने पर्यावरण विज्ञान में दो स्थायी पद भी दिए थे लेकिन विभाग की आपसी खींचतान में यह पद भी वापस चले गए।
प्रदेश में रोजगार नहीं
पर्यावरण विज्ञान के समन्वयक प्रो. एके चौबे का कहना है कि स्थायी फैकल्टी न होने और प्रदेश में रोजगार के कम अवसरों के चलते कम छात्र इस कोर्स में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। प्रदेश में पर्यावरण को पढ़ाने के लिए विशेषज्ञ शिक्षक नहीं हैं। भूगोल व अन्य विषय पढ़ाने वाले शिक्षक ही पर्यावरण पढ़ा रहे हैं। जम्मू कश्मीर जैसे विश्वविद्यालय में विशेषज्ञ शिक्षक ही पर्यावरण विषय पढ़ाते हैं।
अर्थशास्त्र में पर्यावरण की पढ़ाई
पर्यावरण की उपयोगिता को विश्वविद्यालय ने भी समझा है। इस साल से एमए अर्थशास्त्र में पर्यावरण अर्थशास्त्र का नया पेपर भी जोड़ा गया है। इस पेपर में छात्र पर्यावरण अर्थशास्त्र की उपयोगिता, प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग, घरेलू और वैश्विक स्तर पर पर्यावरण पर पडऩे वाले असर का अध्ययन करेंगे। कूड़ा निस्तारण, ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में पर्यावरण के क्षेत्र में आ रही समस्या और उसका निराकरण भी इसका हिस्सा होगा। इसके जरिए वायु प्रदूषण, सालिड वेस्ट मैनेजमेंट, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि का अर्थशास्त्र पर पडऩे वाले प्रभाव का अध्ययन किया जा सकेगा।
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