जर्जर भवन और बंदरों का आतंक..प्राथमिक स्कूलों का स्याह सच
बच्चों को स्कूलों तक लाने के लिए सरकार भले ही लाखों रुपये खर्च कर शिक्षा भोजन और मनोरंजन की निश्शुल्क सुविधा उपलब्ध करा रही हो लेकिन शहर में कई प्राथमिक स्कूलों की हकीकत भयावह है।
मेरठ। बच्चों को स्कूलों तक लाने के लिए सरकार भले ही लाखों रुपये खर्च कर शिक्षा, भोजन और मनोरंजन की निश्शुल्क सुविधा उपलब्ध करा रही हो, लेकिन शहर में कई प्राथमिक स्कूलों की हकीकत भयावह है। छोटे-छोटे बच्चे जर्जर भवनों में बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं, जहां शौचालय तक नहीं है। हर समय बंदर और कुत्तों का जमावड़ा रहता है। चिंताजनक ये है कि अधिकारी यहां झांकने को भी तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि बच्चों कोसुरक्षित माहौल में शिक्षा देने का उद्देश्य कैसे पूरा होगा।
प्राथमिक विद्यालय पूर्वा कंबोह गेट
स्कूल की इमारत जर्जर है। लिंटर टूटा पड़ा है। छत से लोहे के सरिए झांकते साफ देखे जा सकते हैं। दीवार में पड़ी दरारों से पलास्टर उखड़ रहा है। भवन स्वामी मोहम्मद शाहनवाज कहते हैं कि इस भवन में दूसरी मंजिल पर सन 1949 में स्कूल शुरु हुआ था। समय के साथ इमारत जर्जर हो गई। कई बार विभाग में इमारत खाली करने को अर्जी दी लेकिन भवन खाली नहीं किया गया। जर्जर भवन में कभी ही हादसा हो सकता है। यहां एक प्राधानाचार्य और दो शिक्षिक तैनात हैं।
प्राथमिक विद्यालय मोरीपाड़ा
पुरानी तहसील क्षेत्रांतर्गत मोहल्ला मोरीपाड़ा में स्थित यह स्कूल मंदिर की इमारत में संचालित है। स्कूल का पिछला हिस्सा पूरी तरह से ढह चुका है। जिसकी बाउंड्री वॉल तक नहीं है। न शौचालय और न ही पेयजल की व्यवस्था है। स्कूल में बंदरों का आतंक रहता है। इमारत जर्जर है, झाड़ियां उग आई है। छात्र संख्या के नाम पर यहां महज पांच-छह बच्चे ही हैं। यहां एक शिक्षिका तैनात है। इस स्कूल में प्राथमिक विद्यालय चाहशोर भी अटैच है, जिसकी किराए पर ली गई इमारत पूरी तरह से जर्जर है।
बंद ही रहते हैं, स्कूल के दरवाजे
विभागीय लापरवाही या सेटिंग का खेल, स्थानीय लोगों का कहना है कि स्कूल समय से नहीं खुलते, नौ बजे खुलकर 12 बजे बंद कर दिए जाते हैं। महज मिड-डे मील खाने के लिए यहां बच्चे आते हैं। न इन स्कूलों में किसी अधिकारी का फोन नंबर लिखा है न ही किसी शिक्षक का।
निजी इमारतों में संचालित हैं 40 विद्यालय
नगर क्षेत्र में करीब 40 ऐसे विद्यालय हैं जो किराए के भवनों की जर्जर इमारतों में संचालित किए जा रहे हैं। यहां छात्र संख्या बहुत कम है। किसी भी स्कूल का औचक निरीक्षण नहीं किया जाता। कंबोह गेट प्राथमिक विद्यालय के पास रहने वालों ने बताया 'सच'
कंबोह गेट स्कूलस्कूल में केवल पांच-छह बच्चे ही मुश्किल से पढ़ने के लिए आते हैं। स्कूल नौ बजे खुलकर 12 बजे बंद हो जाता है।
अर्शी, स्थानीय निवासी इतनी गर्मी है और स्कूल में पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है। इसके अलावा शौचालय भी नहीं है। जिससे बच्चों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।
युसूफ, स्थानीय निवासी स्कूल का भवन जर्जर है, हर वक्त हादसे का खतरा रहता है, लेकिन किसी का ध्यान इस ओर नहीं है।
शमां परवीन, स्थानीय निवासी बोले अधिकारी
स्कूल बंद रहते हैं और उनका भवन जर्जर है तो इसको दिखवाया जाएगा।
चरण सिंह, नगर खंड शिक्षा अधिकारी निजी इमारतों में चल रहे स्कूलों को समय से खुलवाया जाएगा। जर्जर इमारतों की शिकायत तो लोग करते ही रहते हैं।
सतेंद्र कुमार, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी