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भवन मानचित्र के पोर्टल में हुआ 'ऑनलाइन' घोटाला

भ्रष्टाचार समाप्त करने को मानचित्र आवेदन के लिए बना था ऑनलाइन पोर्टल। पकड़ में आया मामला, चुनिंदा जेई को आवंटित हो रहे हैं आवेदन।

By Taruna TayalEdited By: Published: Fri, 14 Dec 2018 04:44 PM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 04:44 PM (IST)
भवन मानचित्र के पोर्टल में हुआ 'ऑनलाइन' घोटाला
भवन मानचित्र के पोर्टल में हुआ 'ऑनलाइन' घोटाला
मेरठ (प्रदीप द्विवेदी)। मानचित्र स्वीकृत करने के मामले में जिस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत हुई थी, अब वही पोर्टल खुद भ्रष्टाचार के वायरस की गिरफ्त में आ गया है। ऑनलाइन व्यवस्था यह है कि पोर्टल रैंडम आधार पर किसी भी जेई को आवेदन निस्तारित करने को रेफर करता है, मगर खेल यह शुरू हो गया कि चुनिंदा जेई को ही आवेदन रेफर किए जाने लगे। बड़ी संख्या में ऐसे जेई हैं जिन्हें अब तक एक भी आवेदन रेफर नहीं हुआ।वैसे तो इस मामले की शिकायत अब शासन तक पहुंची है लेकिन एमडीए के वीसी साहब सिंह इस मामले को कई बार शासन में उठा चुके हैं और सॉफ्टवेयर डेवलप करने वाली कंपनी को भी लिख चुके हैं।
चुनिंदा जेई को ही एक साल में 1400 आवेदन
पिछले साल नवंबर माह में ऑनलाइन मानचित्र आवेदन की शुरुआत हुई थी। एमडीए से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार 28 नवंबर 2018 तक कुल 1407 आवेदन ऑनलाइन पोर्टल पर आए। इसमें से 1005 स्वीकृत हुए। 263 निरस्त किए गए। मानचित्र संबंधी जिम्मेदारी सिविल इंजीनियर को दी जाती है। पोर्टल के इस खेल की वजह से चुनिंदा जेई को ही बार-बार आवेदन रेफर होते रहे। बाकी जेई ऐसे थे जिन्हें एक भी आवेदन पूरे साल नहीं मिला। इस संबंध में सीटीपी इश्तियाक अहमद ने कहा कि वह इस मामले की अपने स्तर से जांच कराएंगे। यदि रैंडम आधार पर आवेदन आवंटित नहीं हुए हैं तो यह निश्चित रूप से गंभीर प्रकरण है।
शासन कंपनी हटाने को कर रहा विचार
चुनिंदा जेई को ही आवेदन रेफर करने वाली शिकायत शासन तक पहुंच गई है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि शासन ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया है संबंधित कंपनी से पोर्टल संचालन की जिम्मेदारी छीनने की तैयारी शुरू कर दी है।
फाइल का रेट फिक्स होने से हुई सेटिंग
जब ऑफलाइन व्यवस्था थी तब यह शिकायत आम थी आवेदक का मानचित्र आवेदन स्वीकार नहीं किया जाता। उन्हें बार-बार दौड़ाया जाता है और बेवजह आपत्तियां लगाई जाती हैं। दरअसल, इसके पीछे की वजह बताई जाती रही हर फाइल के पीछे सुविधा शुल्क। जब ऑनलाइन व्यवस्था शुरू हुई तो जल्द ही इसका भी समाधान ढूंढ लिया गया। सुविधा शुल्क की व्यवस्था बहाल हो गई और मलाई चंद लोग ही काटें इसलिए ऑनलाइन व्यवस्था में ही सेटिंग कर ली गई।
इन्होंने कहा--
एमडीए के कई जेई हैं जिन्हें मानचित्र का आवेदन आवंटित नहीं हुआ, जबकि कुछ को लगातार आवेदन आवंटित हुए। इसकी शिकायत सॉफ्टवेयर तैयार करने वाली कंपनी को प्रेषित की थी। शासन में भी कई बार इस प्रकरण को उठाया था। इसके पीछे क्या वजह है, इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है।
साहब सिंह, वीसी, एमडीए 

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