240 साल की हुई विभिन्न ऑपरेशन से जुड़ी आरवीसी
आरवीसी आज 14 दिसंबर को अपना 240वां स्थापना दिवस मना रही है। आइए, हम भी आरवीसी के इस स्वर्णिम सफर से रू-ब-रू होते हैं।
मेरठ (अमित तिवारी)। श्वान, अश्व, जवान...। इस तिकड़ी के सहारे रणभूमि से खेल के मैदान तक तिरंगा फहराने वाली सेना का वेटनरी कोर अपनी स्थापना के 240 वर्ष पूरा कर रहा है। अपनी स्थापना के बाद से ही मेरठ छावनी स्थित रिमाउंट वेटनरी कोर (आरवीसी) सेंटर एंड कालेज ने हर स्तर पर साथ खड़े रहकर सेना को मजबूती दी। कारगिल के ऑपरेशन विजय में जहां आरवीसी के घोड़ों-खच्चरों ने दुर्गम पहाडिय़ों पर जवानों के साथ कदमताल कर उनकी तमाम जरूरतों को सुलभ कराया, वहीं आरवीसी के फौजी श्वान सरहदों पर तैनात सैन्य टुकडिय़ों के आंख-कान बने हैं। लेह में बादल फटने की घटना हो या एवलांच की घटना के बाद रेस्क्यू, इन श्वानों ने अपनी अहमियत बरकरार रखी है। घुड़सवारी प्रतियोगिताओं में अंतरराष्ट्रीय मानकों को सुरक्षित करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर के घोड़े और घुड़सवार यहां तैयार किए जा रहे हैं। हाल ही में एशियन गेम्स में एक बार आरवीसी के घुड़सवारों ने पदक जीतकर अपनी उपलब्धियों की लकीर और लंबी कर दी है। आरवीसी आज 14 दिसंबर को 240वां स्थापना दिवस मना रही है। आइए, हम भी आरवीसी के इस स्वर्णिम सफर से रू-ब-रू होते हैं।
प्लासी के युद्ध में पड़ी थी जरूरत
देश में हुए कुछ चर्चित युद्ध में से एक प्लासी का युद्ध भी है। इसी युद्ध में बंगाल आर्मी को शहजादा अली गौहर के खिलाफ युद्ध में प्रशिक्षित घोड़ों की जरूरत महसूस हुई। वर्ष 1770 के दशक में युद्ध में जख्मी घोड़ों के बदले दूसरे घोड़े मुहैया कराने का काम कांट्रेक्टर किया करते थे। इसके बाद 1780 से 1790 के दौरान बंगाल प्रेसीडेंसी और हैदर अली के बीच हुए युद्ध में अंग्रेजी सेना को कांट्रेक्टरों से पर्याप्त व गुणवत्ता वाले घोड़े नहीं मिले। काफी संख्या में घोड़ों के मारे जाने और जख्मी होने पर घोड़ों की बेहद कमी हो गई। इसी कमी को पूरा करने के लिए लेफ्टिनेंट विलियम फ्रेजर ने घोड़ों की ब्रीडिंग के लिए बिहार के पूसा में वर्ष 1794 में स्थान चिन्हित किया जहां पहले आरवीसी सेंटर की स्थापना हुई।
चल रहा है मिशन ओलंपिक
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ यानी सेना प्रमुख के विजन 'मिशन ओलंपिक्स' के अंतर्गत आरवीसी में साल 2002 में आर्मी इक्वेस्ट्रियन नोड (एईएन) बनाया। इसका उद्देश्य देशभर के घुड़सवारों को बेहतरीन ट्रेनिंग मुहैया कराना है ताकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में देश के लिए पदक जीत सकें। वर्तमान में भी अंतरराष्ट्रीय ट्रेनर घुड़सवारों को विशेष कैंप में तैयारी करा रहे हैं। सेंटर में नर्सिंग असिस्टेंट वेट, राइडर, आर्मी डॉग ट्रेनर, क्लर्क, फेरियर, लैब असिस्टेंट वेट और कैनाइनमैन की ट्र्रेनिंग की व्यवस्था है। आरवीसी की डॉग फैकल्टी को आर्कट्रैक यानी आर्मी ट्रेनिंग कमांड से 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' और 26 जनवरी 2017 को जीओसी-इन-सी आर्कट्रैक से यूनिट साइटेशन भी प्राप्त हो चुका है। एशियाड में टीम रजत पदक जीतने के बाद अब ओलंपिक के लिए तैयारी की जा रही है।
तैयार कर रहे भविष्य के राइडर
घुड़सवारी के लिए भविष्य के राइडर तैयार करने के लिए आरवीसी सेंटर एंड कालेज में ब्वायज स्पोट्र्स कंपनी (बीएससी) का संचालन किया जा रहा है। एक अप्रैल 2005 से बीएससी का संचालन किया जा रहा है। यहां छठी से 12वीं कक्षा तक के बच्चों को भर्ती रैली में चयनित किया जाता है। चयनित बच्चों की पढ़ाई और घुड़सवारी ट्रेनिंग का पूरा खर्च आरवीसी वहन करती है।
कुछ ऐसा रहा आरवीसी का सफर
- -ईस्ट इंडिया की बंगाल आर्मी ने प्लासी युद्ध के समय वर्ष 1770 में खड़ी की मुगल हॉर्स।
- -लेफ्टिनेंट विलियम फ्रेजर की अगुआई में 31 अक्टूबर 1794 को बना पशु उन्नयन बोर्ड।
- -जून 1795 में बिहार के पूसा में 15 बीघा जमीन पर 20 घोड़ों व 400 घोडिय़ों से बनी घुड़साल।
- -वर्ष 1808 में विलियम मूरक्राफ्ट नियुक्त हुए पहले पशु चिकित्सक।
- -जरूरत बढ़ी तो बरेली (1803), हिसार (1814), हापुड़ (1820), बक्सर (1818) और गाजीपुर (1818) में बने घुड़साल।
- -वर्ष 1876 में बना आर्मी रिमाउंट विभाग व हॉर्स ब्रीडिंग डिपार्टमेंट।
- -बाद में बाबूगढ़ हापुड़ (1882), कर्नाल (1888) और अहमदनगर (1889) में बने।
- -वर्ष 1913 में प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए ब्रिटेन से उपकरण मंगाए गए।
- -उस युद्ध में आरवीसी के एक लाख दो हजार 71 घोड़े शामिल हुए।
- -वर्ष 1920 में 14 दिसंबर को आर्मी वेट कोर इंडिया की स्थापना हुई।
- -वर्ष 1925 में इसका नाम इंडियन आर्मी वेट कोर पड़ा।
- -वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध में घोड़ों की जगह टैंक व आर्टी ने ले ली।
- -द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सेना ने आइएवीसी के 90 यूनिट बंद कर दिए।
- -15 अप्रैल 1947 को इंडियन रिमाउंट वेटनरी कोर का गठन हुआ।
- -देश बंटवारे के बाद आइआरवीसी सेंटर अंबाला से सुबाथु और फिर मेरठ पहुंची।
- -एक अक्टूबर 1947 को रिमाउंट वेट एंड फाम्र्स कोर का गठन हुआ।
- -दिसंबर 1959 में मेरठ स्थित आरवीएफसी में वॉर डॉग ट्रेनिंग स्कूल शुरु हुआ।
- -मई 1960 में फाम्र्स को अलग कर आरवीसी सेंटर एंड स्कूल का गठन हुआ।
- -वर्ष 2005 में इसका नाम आरवीसी सेंटर एंड कालेज किया गया।
इन ऑपरेशनों से जुड़ी आरवीसी - 1919-24 - वजीरिस्तान
- 1921 - वाना पर पुन:कब्जा
- 1923 - रजमक पर कब्जा
- 1929 - नराई ऑपरेशन
- 1930 - खजुरी ऑपरेशन
- 1930-32 - पेशावर जिला ऑपरेशन
- 1930 - फ्रंटियर ऑपरेशन
- 1933 - चित्राल गैरीशन ऑपरेशन
- 1933 - खोस्ट कुर्रम ऑपरेशन
- 1933 - मोहम्मद ऑपरेशन
- 1936-41 - वजीरिस्तान ऑपरेशन
- 1939-45 - द्वितीय विश्व युद्ध फ्रांस, मिडिल ईस्ट, पाइफोर्स और इटली।
- 1939-45 - द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा व असम में
- 1947-49 - जम्मू-कश्मीर ऑपरेशंस
- 1955-56 - नागा हिल्स
- 1961 - गोवा ऑपरेशन
- 1962 - भारत-चीन युद्ध (नेफा)
- 1965 - भारत-पाक युद्ध
- 1971 - भारत-पाक युद्ध
- 1999-जम्मू-कश्मीर ऑपरेशंस आदि।
फोर्स मल्टीप्लायर बनी डॉग फैकल्टी
आरवीसी में वॉर डॉग ट्रेनिंग स्कूल की शुरुआत दिसंबर 1959 में 24 ट्रैकर श्वानों के साथ हुई। प्राथमिक तौर पर तीन श्वान व उनके तीन हैंडलर को तमिलनाडु पुलिस ने ट्रेनिंग दी थी। जम्मू-कश्मीर में सफल प्रदर्शन के बाद यह कारवां बढ़ता ही गया। वर्तमान में आरवीसी के पास पांच हजार से अधिक प्रशिक्षित फौजी श्वान हैं जो देश की सेवा में विभिन्न यूनिटों के साथ तैनात हैं। म्यांमार सहित कुछ अन्य पड़ोसी देशों की मदद के लिए भी श्वान मुहैया कराए गए हैं। लेब्राडोर और जर्मन शेफर्ड प्रजाति के श्वानों के प्रशिक्षण के बाद अब आरवीसी ने देशी नस्ल के मुधोल हाउंड प्रजाति के श्वानों को भी सेना के लिए तैयार कर लिया है। इन दिनों मुधोल हाउंड की ऑपरेशनल सफलता को परखा जा रहा है।
एक श्वान के सम्मान में 'मानसी द्वार'
आठ अगस्त 2015 को आरवीसी के डॉग यूनिट में शामिल श्वान मानसी अपने हैंडलर राइफलमैन बशीर अहमद वार के साथ जम्मू-कश्मीर के कंदहार में ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गई थी। आतंकियों की सूचना मिलने पर उस ओर बढ़े जवानों का मार्गदर्शन मानसी अपने हैंडलर के साथ कर रही थी। दुश्मन की गंध पाकर वह आगे बढ़ती गई। घात लगाए बैठे आतंकियों ने सामने से गोलीबारी कर दी। इसमें मानसी व हैंडलर दोनों शहीद हुए थे। मानसी को मरणोपरांत 'मेनसन इन डिस्पैचेज' से नवाजा गया। मानसी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आरवीसी डॉग यूनिट के गेट का नाम मानसी द्वार किया गया है।
फौजी श्वानों को मिले हैं यह सम्मान
शौर्य चक्र : 01
सेना मेडल : 06
मेनसन इन डिस्पैचेज : 01
जवान श्वान
सीओएएस कमेंडेशन कार्ड 88 61
वीसीओएएस कमेंडेशन कार्ड 06 01
जीओसी-इन-सी कमेंडेशन कार्ड 259 207
सीओएएस यूनिट साइटेशन : 02
जीओसी-इन-सी यूनिट साइटेशन : 05
जम्मू-कश्मीर राज्यपाल द्वारा सिल्वर सलवर : 02
अमरनाथ यात्रा के लिए जम्मू-कश्मीर राज्यपाल ट्रॉफी : 01
जम्मू-कश्मीर राज्यपाल से प्रोत्साहन सर्टिफिकेट : 01
एडीजी आरवीएस बेस्ट डॉग यूनिट ट्रॉफी : 02
बेस्ट आर्मी डॉग यूनिट ट्रॉफी : 01
बेस्ट आरवीसी यूनिट : 01
बेस्ट आरवीसी यूनिट ट्रॉफी यूनिट : 03
घुड़सवारी की दुनिया में बढ़ाया देश का मान
अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं के साथ बेहतरीन घोड़े तैयार कर राइडर्स को विशेष ट्रेनिंग मुहैया कराई जा रही है। हॉर्स ब्रीडिंग और ट्रेनिंग के क्षेत्र में आरवीसी पूरी तरह से सक्रिय है। देश भर की सेना के साथ ही अन्य विभागों को भी आरवीसी घोड़े मुहैया कराती है। यहां घोड़े घुड़सवारी के लिए और खच्चर पहाड़ी क्षेत्रों में जवानों का रसद पहुंचाने के लिए विकसित व प्रशिक्षित किए जाते हैं। घुड़सवारी में आरवीसी के नाम सौ से अधिक अंतरराष्ट्रीय पदकों के साथ चार हजार से अधिक पदक हैं। बेहद धीमा होने के कारण जब एनीमल ट्र्रांसपोर्ट को कम किया जाने लगा तभी कारगिल के युद्ध में दुर्गम पहाड़ी चोटियों पर आरवीसी के सहारनपुर यूनिट में प्रशिक्षित म्यूल्स यानी खच्चरों ने ही सेना के हथियार और खाद्य सामग्री ऊपर चढ़ाए थे।