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वैदिक मूल्यों की स्थापना को आजीवन संघर्षशील रहे स्वामी पूर्णानंद

स्वामी पूर्णानंद सरस्वती के 121वें जन्मदिवस समारोह पर बच्चा पार्क स्थित आइएमए परिसर में कार्यक्रम हुआ।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Mar 2021 09:50 PM (IST)Updated: Sun, 14 Mar 2021 09:50 PM (IST)
वैदिक मूल्यों की स्थापना को आजीवन संघर्षशील रहे स्वामी पूर्णानंद
वैदिक मूल्यों की स्थापना को आजीवन संघर्षशील रहे स्वामी पूर्णानंद

मेरठ, जेएनएन। स्वामी पूर्णानंद सरस्वती के 121वें जन्मदिवस समारोह पर बच्चा पार्क स्थित आइएमए परिसर गेरुए रंग में रंगा रहा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और आर्य समाज के महोपदेशक रहे स्वामी पूर्णानंद का जन्मोत्सव प्रेरणा दिवस के रूप में मनाया गया। उनके संपर्क में रहे राजनेताओं और विद्वानों ने उनसे जुड़े संस्मरण सुनाए। प्रदेश सरकार में पूर्व गन्ना मंत्री रहे स्वामी ओमवेश ने कहा कि स्वामीजी में राष्ट्र के प्रति श्रद्धा और निष्ठा कूट-कूटकर भरी थी। वे महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, स्वामी श्रद्धानंद के निरंतर संपर्क में रहे। आजादी के पहले और बाद में भी वैदिक मूल्यों की स्थापना के लिए वे कठिन संघर्ष करते रहे। कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1921, 1931, 1939 में आजादी के आंदोलन में और 1957, 1947 में क्रमश: हिदी आंदोलन और गौ हत्या बंद कराने के लिए जेल गए।

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पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विधान सभा सीट छपरौली बागपत का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह ने कहा कि स्वामी पूर्णानंद निर्भीक व्यक्तित्व के धनी थे। आजादी के संघर्ष के दिनों में लाहौर आर्य समाज क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र था। छह भाषाओं के ज्ञाता स्वामी पूर्णानंद लाहौर आर्यसमाज के महोपदेशक नियुक्त हुए थे। अपनी विद्वता को उन्होंने जन-जन तक पहुंचाया।

ओज के कवि हरिओम पंवार ने अपनी प्रसिद्ध कविता मैं भारत का संविधान हूं लालकिले से बोल रहा हूं सुनाई। इस अवसर पर स्वामी पूर्णानंद द्वारा रचित पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

आयोजक स्वामी पूर्णानंद के पौत्र डा. वीरोत्तम तोमर ने कहा कि सौ वर्ष पहले (1921 में) वे सब इंस्पेक्टर का पद ठुकरा कर आजादी की लड़ाई में कूद गए थे और 50 वर्ष पहले (1971 में) संन्यास ले लिया था। इसलिए इस आयोजन को किया गया है।

कार्यक्रम का आयोजन स्वामी पूर्णानंद जन्मोत्सव आयोजन समिति और बुढ़ाना गेट आर्य समाज मंदिर द्वारा किया गया। अध्यक्षता धर्मपाल शास्त्री और संचालन डा. वीर सिंह ने किया। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी विजयेंद्र, उत्तर प्रदेश महिला अयोग की सदस्य डा. प्रियंवदा, डा. पुरुषोत्तम ने भी अपने दादा के जीवन पर प्रकाश डाला। सांसद राजेंद्र अग्रवाल, डा. ओमपाल सिंह, नरेंद्र सिंह एडवोकेट, डा. राजीव सिंह, योगेश मोहन, मयंक अग्रवाल, आरएसएस के धनीराम, डा. भूपेंद्र चौधरी, अशोक सुधाकर, सुशील बंसल, राजेश सेठी आदि मौजूद रहे।

अगले जन्म में मनुष्य बनना चाहता

हूं, इसलिए अध्ययन करता रहता हूं

बागपत के सांसद डा. सत्यपाल सिंह ने कहा कि बड़ौत के जाट कालेज में अध्ययन के दौरान वे स्वामीजी के संपर्क में आए थे। बताया कि जीवन के अंतिम वर्षो में आंखों से ठीक से दिखाई न पड़ने के बावजूद वे निरंतर अध्ययनरत रहते थे। एक बार कौतूहलवश उन्होंने पूछा कि स्वामीजी आप वेदों के ज्ञाता हैं। अब आपको ठीक से नजर नहीं आता तो अब पढ़कर आंखों को कष्ट क्यों देते हो। इस पर उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर मनुष्य ही पढ़ सकता है। मैं अगले जन्म में इंसान बनना चाहता हूं, इसलिए अध्ययन, चितन करता हूं।

मेरी इच्छाएं पूरी नहीं हुई हैं, मैं

अभी संन्यास कैसे ले सकता हूं

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से बूढ़पुर बड़ौत के निवासी स्वामी पूर्णानंद के प्रगाढ़ संबंध थे। 1971 में जब स्वामी पूर्णानंद का संन्यास दीक्षा का आयोजन हुआ था, उस समय अध्यक्षता चौधरी चरण सिंह ने की थी। पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह ने बताया कि स्वामी रामेश्वरानंद ने चौधरी साहब से पूछा कि पूर्णानंद को दीक्षा दे दी। आप कब संन्यास लोगे, इस पर चरण सिंह ने अपना चर्चित बयान दिया था कि मेरी इच्छाएं अभी पूरी नहीं हुई (उनका इशारा प्रधानमंत्री पद की ओर था), इसलिए मैं अभी संन्यास कैसे ले सकता हूं। उस समय राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर छाए चौधरी चरण सिंह का यह बयान मीडिया की सुíखयां बन गया था।

क्या आलू को सोना बना रहे है..

विख्यात कवि हरिओम पंवार ने अपने संबोधन से पहले लोगों से शांत होने को कहा, लेकिन आइएमए हाल में कार्यक्रम का सजीव प्रसारण चल रहा था। वहां से शोर उठ रहा था। हरिओम पंवार ने कहा कि क्या ये लोग आलू से सोना बना रहे हैं जो शोर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना काल के एक वर्ष के अंतराल के बाद वह काव्य पाठ कर रहे हैं।

एक दिन चिकित्सा विज्ञान भी

परमात्मा को मनेगा : सत्यपाल

मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और सांसद डा. सत्यपाल सिंह ने अध्यात्म की गहरी बातें कहीं। कहा कि सूक्ष्म शरीर को लेकर आत्मा चलती है। जीवन के अंतिम समय में हमारा जो चिंतन रहता है, वैसा जन्म मिलता है। कहा कि हम बाहर के ज्ञान की अभिलाषा के चलते अंदर के ज्ञान से दूर हो रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान परमात्मा को नहीं मानता। पर कई चीजें महसूस की जाती हैं। परमात्मा महसूस करने की चीज है। पहले मन को नहीं माना जाता था अब मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है। इसी तरह आत्मा और परमात्मा को भी विज्ञान मानेगा। सांसद ने कहा कि मौत उसकी होती है जिसकी इच्छाएं खत्म नहीं होती। मुक्ति उसे मिलती है जिसकी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं।


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