बिन बरसात बढ़ा पौराणिक नदी तमसा का पानी
आदि काल से पृथ्वी के इस भूभाग को सिचित करती आ रही तमसा नदी भले ही प्रदूषण का शिकार होकर पिछले दो दशक से बरसात के दिनों को छोड़ दें तो एक नाले की शक्ल में बहने लगी थी लेकिन कुछ पुलों के मलबों के नदी की धार से हटने के बाद अब शुभ संकेत मिलने लगे हैं।
जागरण संवाददाता, मऊ : आदिकाल से पृथ्वी के इस भूभाग को सिचित करती आ रही तमसा नदी भले ही प्रदूषण का शिकार होकर पिछले दो दशक से बरसात के दिनों को छोड़ दें तो एक नाले की शक्ल में बहने लगी थी, लेकिन कुछ पुलों के मलबों के नदी की धार से हटने के बाद अब शुभ संकेत मिलने लगे हैं। नदी के आस-पास के वाशिदों का कहना है कि वर्षों बाद पौराणिक तमसा नदी में बिना बारिश के जलस्तर में वृद्धि देखी जा रही है जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है। आस-पास के जिलों में भी देखें तो तेज हवा के झोंकों के साथ थोड़ी बहुत बारिश की बूंदे और कुछ ओले ही गिरे थे, लेकिन नदी के जलस्तर में अचानक वृद्धि सबकी समझ से बाहर है।
नदी की अविरलता को लेकर लड़ रहे समाजसेवी व श्रीगंगा-तमसा सेवा मिशन के संरक्षक ज्ञानेंद्र मिश्र ने कहा कि तमसा नदी के तटवर्ती इलाकों के सभी छोटे-बड़े नाले व तालाब सूखे हुए हैं। ऐसे पोखरे जहां पानी गिरने के स्त्रोत नहीं हैं सूखे हुए हैं, लेकिन बीते दो सप्ताह में तमसा के पानी में शनै:शनै: वृद्धि देखी गई है। बीते वर्षों में जहां नदी में झांकने पर अप्रैल माह में एक काली-पतली और नाले सी धारा दिखाई देती थी, वहीं अबकि तमसा की धारा देखने में ही लग जा रही है कि किसी नदी की धारा है। बता दें कि जिले के स्वयंसेवियों, समाजसेवियों एवं जिला प्रशासन के महाप्रयास से नदी की धारा में अवरोधक बने मुगलकाल के पुलों के मलबे को पिछले वर्ष हटा दिया गया। जिससे नदी का प्रवाह कुछ ठीक हो गया। अप्रैल माह में आखिर नदी इतनी तर क्यों है, इस सवाल पर ज्ञानेंद्र मिश्र कहते हैं कि प्रवाह जब ठीक हुआ तो नदी अपने मूल स्वरूप में लौटने लगी है। शहरवासियों के लिए यह शुभ संकेत है।
इनसेट :
आस्था की वजह और पौराणिक
क्यों है तमसा नदी
मऊ : 'मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्।' महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के बालकांड के द्वितीय सर्ग का यह 15वां श्लोक पूरे संस्कृत साहित्य में प्रसिद्ध है। संस्कृत को देववाणी कहा जाता है और माना जाता था कि संस्कृत में देवताओं की स्तुति ही गायी जाएगी। डा.संजय राय कहते हैं कि यह लौकिक साहित्य का पहला काव्य है, जिसमें महर्षि वाल्मीकि ने एक बहेलिए द्वारा क्रौंच-सारस पक्षी के जोड़े में से एक को मारने पर शाप देने के लिए कहा है। धार्मिक ग्रंथ रामायण में तमसा नदी का जिक्र होने के नाते इसकी महत्ता यहां के सनातन धर्मावलंबियों के लिए मां गंगा से कम नहीं है। इसी वजह से इस पौराणिक नदी में लोगों की आस्था आज भी है।