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सरकारी स्कूलों में पढ़ाई किसी का मुद्दा नहीं

देश को आजादी और लोकतंत्र की दहलीज तक लाने वाले उच्च शिक्षित नेताओं की दी हुई शिक्षा व्यवस्था जिले में दिनरात भ्रष्टाचार और नकल की गुलाम होती जा रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 06:17 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 06:17 PM (IST)
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई किसी का मुद्दा नहीं
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई किसी का मुद्दा नहीं

जागरण संवाददाता, मऊ : देश को आजादी और लोकतंत्र की दहलीज तक लाने वाले उच्च शिक्षित नेताओं की दी हुई शिक्षा व्यवस्था जिले में दिनरात भ्रष्टाचार और नकल की गुलाम होती जा रही है। नकल कारोबार जिले के शिक्षा विभाग के दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते गांव-गांव पांव पसारता जा रहा है। स्कूली शिक्षा हो या फिर तकनीकी शिक्षा हर ओर नकल का बोलबाला है। आइटीआइ पास हैं, लेकिन आइटीआइ का फुल फार्म पता नहीं है। बीएसएसी पास हैं लेकिन पानी का फार्मूला पता नहीं है। वकालत पढ़ भी लिया, रजिस्ट्रेशन भी हो गया लेकिन एक तहरीर लिखने में ही सारा ज्ञान धुआं बन जा रहा है। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते हैं, अंग्रेजी बोलने में ही परेशानी है। ऐसे युवाओं की जिले में भरमार हो गई है। हर घर से लेकर दफ्तर तक इसकी चर्चा आम है, लेकिन सियासी मैदान में चुनौती दे रहे किसी प्रत्याशी के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है।

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जिले में 1502 सरकारी प्राइमरी स्कूल हैं तो 700 से अधिक निजी कान्वेंट स्कूल हैं। जिले के लगभग 200 प्राथमिक स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता को छोड़ दें तो शेष की पढ़ाई के बारे में कुछ कहने की ही जरूरत नहीं हैं। वहीं, जिले में राजकीय व अनुदानित इंटर कालेजों की संख्या लगभग 81 है। अधिकांश इंटर कालेजों में शिक्षकों का अभाव है। वहीं, जिले के वित्तविहीन इंटर कालेजों की संख्या 350 के लगभग है। अधिकांश वित्तविहीन इंटर कालेजों में नकल का बोलबाला कुछ इस तरह है कि अनुदानित व राजकीय इंटर कालेजों में प्रवेश के लाले पड़े हैं। यही हाल उच्च शिक्षा के संस्थानों की है। जिले में दो राजकीय तथा चार अनुदानित डिग्री कालेज हैं, जिनमें से अधिकांश में शिक्षकों का अभाव है। दूसरी तरफ लगभग 160 निजी डिग्री कालेज हैं। उच्च शिक्षा के कुछ शिक्षण संस्थानों को छोड़ दें तो अधिकांश नकल कराने और डिग्रियां बांटने का खेल खेल रहे हैं। आईटीआइ कालेजों का आंकड़ा भी अब 100 का आंकड़ा छूने जा रहा है। तकनीकी संस्थानों में जब निजी कंपनियों के एचआर मैनेजर कैंपस इंटरव्यू के लिए आ रहे हैं तो वे यहां के छात्रों का शैक्षिक स्तर देख कर अचंभे में पड़ जा रहे हैं। सच तो यह है कि राजनीति का ककहरा पड़ रहे कई नेताओं की रोजी-रोटी ही नकल कारोबार पर टिकी हुई है। लोकतंत्र के इस महोत्सव में जिले की आवाम तमाशाई बनी हुई है और कोई नेता शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार और नकल कारोबार को लेकर चूं तक नहीं कस रहा है। इनसेट :

कान्वेंट स्कूलों का भी हाल बुरा

कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली में खुले कान्वेंट स्कूलों का हाल भी बुरा है। ये अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए नहीं बल्कि सरकारी स्कूलों से गायब हुई पढ़ाई से ऊबे अभिभावकों का धन चूसने के लिए खुले हैं। कुछ कान्वेंट स्कूलों को छोड़ दें तो शेष में पढ़ाई तो यहां भी नहीं है। यहां पढ़ाने वाले बच्चों के अभिभावक नंबर देखकर खुश होते हैं तो कान्वेंट स्कूलों के प्रिसिपल भी नंबर देने में कोई उठाव नहीं रखते और अभिभावकों को आसानी से खुश कर देते हैं।

आंकड़ों में शिक्षा ..

1502 सरकारी प्राथमिक स्कूल

700 कान्वेंट व निजी स्कूल

417 निजी व सरकारी इंटर कालेज

160 निजी व सरकारी डिग्री कालेज


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