शास्त्री जी ने विपक्षी को दे दिया अपना तांगा
बात परतंत्र भारत में अंतरिम सरकार के गठन हेतु वर्ष 1937 में हुए चुनाव की है। तब अमीरों के पास ही जीप और कार होती थी। बहुसंख्य कांग्रेस प्रत्याशी साधारण परिवार से थे।
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : बात परतंत्र भारत में अंतरिम सरकार के गठन हेतु वर्ष 1937 में हुए चुनाव की है। तब अमीरों के पास ही जीप और कार होती थी। बहुसंख्य कांग्रेस प्रत्याशी साधारण परिवार से थे। कांग्रेस ने आजमगढ़ ईस्ट-बलिया वेस्ट सीट से पं. अलगू राय शास्त्री को उतारा। उनका मुकाबला धनाढ्य नरसिेंह राय शर्मा से हुआ। वह ब्रिटिश हुकूमत के समर्थन से मैदान में उतरे। शास्त्री जी तांगा से प्रचार करते थे जबकि नरसिंह राय कार से जनसंपर्क करते थे। पं. अलगू राय शास्त्री के वंशज सत्यव्रत राय शास्त्री बताते हैं कि एक दिन शास्त्री जी धवरियासाथ गांव से गुजर रहे थे। एक मैदान में सजा मंच और एकत्रित भीड़ देख अपने एक समर्थक को भेजा। समर्थक ने तांगे पर शास्त्री जी के होने की जानकारी दी। भीड़ उनके पास पहुंची और विपक्षी प्रत्याशी की जनसभा होने और कई घंटे पूर्व कोपागंज से प्रस्थान करने के बावजूद उनके न पहुंचने की जानकारी दी। शास्त्री जी ने तांगा आगे बढ़ाने का इशारा किया पर ग्रामीणों ने उनसे ही संबोधन की मनुहार किया। शास्त्री जी का हर तर्क खारिज हो गया। अंतत: वह तांगे से उतरे और भीड़ संग मंच पर जा पहुंचे। उधर उनके निर्देशानुसार उनके सहयोगी गयाप्रसाद वर्मा और चालक खाली तांगा लेकर कोपागंज की तरफ रवाना हो गए। कोपागंज के समीप नरसिंह राय की कार खराब थी। गया प्रसाद ने नरसिंह राय को तांगे पर बिठाया और धवरियासाथ ले आए। उधर उनके आने तक सरस्वती पुत्र जनसभा को संबोधित करते रहे। उनके आते ही शास्त्री जी मंच से उतरे और नरसिंह राय शर्मा को अपना तांगा सौंपा और कार की मरम्मत के बाद ही वापस भेजने को कहा।