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सरयू ने घटा दी चार किलोमीटर जिले की सरहद

जिले की उत्तरी सरहद से होकर बहने वाली सरयू नदी की कटान लगातार जनपद के आकार को घटाती जा रही है। कटान रोक पाने में शासन-प्रशासन की विफलता के चलते जहां जिले की चार किलोमीटर सरहद घट चुकी है वहीं तहसील के नक्शे में दर्ज लगभग आधा दर्जन गांवों और पुरवों का अस्तित्व ही मिट चुका है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Jun 2021 10:35 PM (IST)Updated: Sat, 05 Jun 2021 10:35 PM (IST)
सरयू ने घटा दी चार किलोमीटर जिले की सरहद
सरयू ने घटा दी चार किलोमीटर जिले की सरहद

जागरण संवाददाता, मधुबन (मऊ) : जिले की उत्तरी सरहद से होकर बहने वाली सरयू नदी की कटान लगातार जनपद के आकार को घटाती जा रही है। कटान रोक पाने में शासन-प्रशासन की विफलता के चलते जहां जिले की चार किलोमीटर सरहद घट चुकी है, वहीं तहसील के नक्शे में दर्ज लगभग आधा दर्जन गांवों और पुरवों का अस्तित्व ही मिट चुका है। देवारांचल में ग्रामीणों की मानें तो इस साल अभी तक करीब 10 एकड़ भूमि व तीन लोगों के रिहायशी मकान नदी की धारा में विलीन हो चुके हैं। पिछले वर्ष के तहसील के आंकड़ों से बात करें तो लगभग 250 एकड़ से अधिक भूमि घाघरा की प्रलयंकारी लहरों की भेंट चढ़ चुकी है। कटान रोकने के सारे सरकारी प्रयास महज पानी पर लाठी पीटने के बराबर साबित होने से देवाराचंल के लोगों में तीव्र आक्रोश है। देवारा क्षेत्र में पिछले दो सप्ताह से घाघरा नदी की कटान तेज होने से ग्रामीणों में दहशत है। नदी के सबसे अंतिम छोर पर बसे विनटोलिया गांव के अस्तित्व पर एक बार फिर खतरा मंडराने लगा है। ताजा कटान के कारण विनटोलिया के राकेश, जयराम निषाद, मुसाफिर के रिहाइशी मकान पूरी तरह नदी में विलीन हो चुके हैं। वहीं रामजीत, गोरख, देऊ निषाद से आफत बस कुछ ही दूर है। ये लोग अपने मकान को खुद ही तोड़कर ईंट, सरिया, खिड़कियां आदि बचाने की जुगत में लगे हैं। तहसील प्रशासन के आकलन के अनुसार पिछले साल दो दर्जन से अधिक मकान सहित लगभग 250 एकड़ कृषि योग्य भूमि नदी की धारा में समा चुकी है। ग्रामीणों के मुताबिक इस वर्ष अभी तक करीब 10 एकड़ भूमि व तीन लोगों के रिहायशी मकान नदी में विलीन हुए हैं। कटान की कहर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार वर्ष पहले चार किलोमीटर दूर नदी अब बिनटोलिया गांव के मुहाने पर पहुंच गई है। यानि जिले की सरहद चार देवरांचल में चार किलोमीटर सिमट चुकी है। इनसेट - इन गांवों का मिटा है अस्तित्व तहसील मधुबन के नक्शे में कुछ वर्ष पहले तक रहे केवट टोलिया, पंचपड़वा, बिनटोलिया बलुआ जैसे पुरवे अब नदी की कटान के चलते अपना अस्तित्व खो चुके हैं। नक्शे में तो ये गांव हैं, लेकिन जमीन पर अब इनका कोई वजूद नहीं है। इनसेट में- प्रशासनिक व सियासी उदासीनता आफत की जड़ देवरांचल की नौ ग्राम सभाएं व 50 से अधिक छोटे बड़े पुरवे घाघरा की कटान के निशाने पर हैं। कटान रोकने के उपायों को लेकर प्रशासनिक व सियासी उदासीनता ग्रामीणों की सबसे बड़ी आफत बनी हुई है। कटान रोकने के स्थाई उपायों की मांग बोल्डर गिराने-दिखाने और सरकारी धन डकारने तक सिमट कर रह गई है। नदी की धारा को 30 जून तक मोड़ने का प्रयास सेक्शन मशीन के सहारे किया जा रहा है, लेकिन यह कार्य भी नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर चल रहा है। फिलहाल यह कार्य भी तीन किलोमीटर शेष है, जो तय समय में पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। बिनटोलिया के श्रीकांत, नंदकुमार, डा.गोपाल कुमार, ओपी यादव, शिवचंद बिद, सचिन कुमार, दिलीप निषाद, रामजीत निषाद आदि का कहना था कि हर साल कटान का दंश झेलना हमारी नियति बन चुकी है। नदी में कटानरोधी कार्य आधा से अधिक शेष है।

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