शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण का राग बनी रागिनी
घोसी विकासखंड और शिक्षा क्षेत्र के मानिकपुर जमीन हाजीपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय पर यदि किसी शिक्षक या शिक्षिका का ट्रांसफर हो जाए तो उसकी रूह कांप जाती है।
सूर्यकांत त्रिपाठी, मऊ :
घोसी विकासखंड और शिक्षा क्षेत्र के मानिकपुर जमीन हाजीपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय पर यदि किसी शिक्षक या शिक्षिका का ट्रांसफर हो जाए तो उसकी रूह कांप जाती है। यदि कोई शिक्षक या शिक्षिका पहुंच भी जाए तो वह पढ़ाए या न पढ़ाए कोई देखने-सुनने वाला भी नहीं है। विद्यालय तक पहुंचने के रास्ते इतने दुर्गम हैं कि खुद की बाइक या साइकिल न हो तो पहुंचा भी न जाए। पूछने पर पता चला कि कई सालों से विद्यालय पर बीएसए भी नहीं पहुंचे हैं लेकिन एक शिक्षिका और प्रभारी प्रधानाध्यापिका के रूप में वर्ष 2012 में पहुंची रागिनी यादव ने अपने कर्तव्य का पालन करके प्राइमरी की ऐसी तस्वीर बदली है कि बच्चा-बच्चा वहां बदलाव का साक्षी बनने को तैयार है। गरीबों के बच्चे अब यहां प्रोजेक्टर से पढ़ते हैं।
पूरा विद्यालय जहां स्वच्छता की अलग कहानी कह रहा है, वहीं कमरे में पुस्तकालय से लेकर बच्चों को सिखाने-पढ़ाने का हर सामान मौजूद है। इनमें से ज्यादातर सामानों को या तो रागिनी ने खुद अपने पैसे से जुटाया है या फिर सहयोगी शिक्षक-शिक्षिकाओं की मदद से। अपनी व्यवहार कुशलता से रागिनी ने स्कूल का कुछ ऐसा वातावरण बनाया है कि किसी शिक्षक के बेटे या बेटी के जन्मदिन पर स्कूल में एक पौधा लगाया जाता है और गिफ्ट के रूप में शिक्षक को विद्यालय के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट करना होता है। विद्यालय में सहयोगी के रूप में मौजूद शिक्षिका आराधना सिंह हों या कुमारी सोनू, कविता पांडेय, गुंजन यादव या शिक्षा मित्र राजाराम यादव सबने कुछ न कुछ गिफ्ट किया है। रागिनी ने बताया कि बीएसए ओपी त्रिपाठी के अभियान 'मिशन पहचान' और बीईओ घोसी के सकारात्मक निर्देशन से उन्हें ऊर्जा और प्रेरणा दोनों मिली है। इसके अलावा उनके ससुर उन्हें हमेशा अच्छा करने के प्रति प्रेरित करते रहे। इनसेट :
कैसे पढ़ाती हैं रागिनी
बच्चों को अंग्रेजी का शब्दार्थ ही नहीं बल्कि उसे क्रिया के माध्यम से कर के और दिखाकर एक-एक शब्द का वह अभ्यास कराती हैं। गांव के बच्चों के साथ एक बात बार-बार बोलनी पड़ती है। इसका भी हल ढूंढा रागिनी ने। अपनी आवाज को उन्होंने मोबाइल में रिकार्ड करके ब्लूटूथ लगे स्पीकर के माध्यम से बच्चों ने जितनी बार चाहा उतनी बनाया सुनाया और सबक याद कराया। ²श्य-श्रव्य माध्यम के रूप में प्रोजेक्टर से भी विषय को पूरी तरह समझाने में रागिनी नहीं हिचकिचाती हैं। रागिनी का कहना है कि गांव वालों का सकारात्मक सहयोग मिल जाए तो हर बच्चे को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से बेहतर करके वह दिखा देंगी।