होली के नाम पर अश्लील गीत
भाईचारे एवं प्रेम की पवित्र पर्व होली की मादकता अब लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी है होली गीतों में जो माधुरी एवं प्रेम पहले था अब वह अब कहीं ना कहीं भी लुप्त होता नजर आ रहा है।
-पवित्रता और रिश्तों की माधुर्यता गीतों से गायब
-अश्ललीलता और भौंडापन दूषित कर रहा संस्कृति
जागरण संवाददाता, मऊ : भाईचारे एवं प्रेम की पवित्र पर्व होली की मादकता अब लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी है होली गीतों में जो माधुरी एवं प्रेम पहले था अब वह अब कहीं ना कहीं भी लुप्त होता नजर आ रहा है। आज के होली गीत व भौंडे और अश्लील हो गए हैं, जिन्हें सुनकर लोग नजर चुराने लगते हैं। पहले की होली गीत की थाप, चौपाल में गूंजते ही ग्रामवासी बाल युवा दिवस सभी खींचे चले आते थे। ढोल-मजीरे की थाप पर नाचते-गाते, उल्लास एवं प्रेम की अविरल सरिता प्रवाहित करते थे।
'होली खेलें रघुवीरा, अवध में होली खेलें रघुवीरा' जैसे कर्णप्रिय गीतों के बोल पर्व की पवित्रता का एहसास कराते थे परंतु आज डीजे एवं कैसेट संस्कृति में जो होली गीत गाए जा रहे हैं, उन्हें परिवार के साथ बैठकर सुना भी नहीं जा सकता। क्योंकि खांटी फूहड़ता एवं अश्लीलता ही आज के होली गीतों का आवरण रह गया है। गांव की चौपाल से आंगन तक स्त्री-पुरुष, होली गीतों के माध्यम से गुझिया, ठेकुआ, पूआ की मिठास के साथ जो पर्व का आनंद लेते थे, आज अश्लीलता एवं फूहड़ता से उस पर्व की पवित्रता एवं स्वच्छता पर गहरा आघात पहुंचा है हमें अपने पुरातन संस्कृति की तरफ लौटना ही पड़ेगा।