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धान की पत्तियां पड़ रहीं पीली, बैठा जा रहा किसान का कलेजा

मौसम के मिजाज व आसमान में कहीं धूप तो कहीं छांव जहां लोगों को भीषण उमस भरी गर्मी का अहसास करा रही है। वहीं धान की फसल में बड़ी तेजी से खर-पतवार की बढ़ोतरी हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 05:39 PM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 05:39 PM (IST)
धान की पत्तियां पड़ रहीं पीली, बैठा जा रहा किसान का कलेजा
धान की पत्तियां पड़ रहीं पीली, बैठा जा रहा किसान का कलेजा

जागरण संवाददाता, थानीदास (मऊ) : मौसम के मिजाज व आसमान में कहीं धूप तो कहीं छांव जहां लोगों को भीषण उमस भरी गर्मी का अहसास करा रही है। वहीं धान की फसल में बड़ी तेजी से खर-पतवार की बढ़ोतरी हो रही है। धूप व छांव की आंख-मिचौली के बीच आसमान को चीरकर निकलने वाली सूर्य की किरणों ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई, तो किसान सकते में आ गए। बारिश न होने के कारण धान की फसल में खर पतवार बड़ी तेजी से निकल रहे हैं। खेत का पानी सूख जाने के कारण पौधों की जड़ में सफेद कीड़े लग रहे हैं। इससे धान की पत्तियां पीली हो रही हैं। भाद्रपद मास में मौसम के मिजाज में लगातार हो रहे परिवर्तन के कारण हर वर्ग के लोग परेशान हैं। वहीं अन्नदाता के लिए यह मौसम बिलकुल अनुकूल नहीं है। धान की फसल के लिए यह मौसम हानिकारक है। मौसम में हो रहे इस परिवर्तन से लोगों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

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बिजली और नहरों ने भी दिया धोखा

जागरण संवाददाता, थलईपुर (मऊ) : एक ओर आसमान में दहकते सूर्य देव की तीखी किरणें, दूसरी ओर बादलों की लगातार अनुपस्थिति ने धान की फसल के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। ऐसे में किसानों के माथे पर चिता की लकीरों का खिचना पूरी तरह स्वाभाविक है। ऊपर से उमस भरी गर्मी ने रही सही कसर भी पूरी कर दी है। मौसम की इस मार से अन्नदाता लाचार है, आखिर वह क्या करे। उसे समझ मे नहीं आ रहा है। मानसून की शुरुआत में हुई जबरदस्त बरसात में यद्यपि अनेक किसानों की धान की नर्सरी पानी में डूब कर बर्बाद हो गई। फिर भी वे हिम्मत नहीं हारे और किसी तरह संडा नर्सरी की व्यवस्था कर रोपाई कराई। उम्मीद थी कि मौसम साथ देगा तो उसके खेतों में धान की बालियां लहलहाएंगी। कितु मौसम की बेरुखी ने उसके अरमानों को धूल-धूसरित कर दिया। बिजली की आंखमिचौली और सूखी नहरों ने भी अपनी तरफ से उसे सताने की कोई जुगत नहीं छोड़ी। सूखे खेतों मे मुरझाए धान के पौधों को देखकर उसका कलेजा मुंह को आ रहा है। उसकी चिता भी जायज है। मंहगी जुताई, मजदूरी, खाद आदि में अपनी पूंजी लगाकर वह मौसम की बेरुखी को कोसते हुए अपनी निराशा को छिपाने का कठिन प्रयास कर रहा है।


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