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अब तो बदहाल आयुष चिकित्सालयों की ली जाए सुधि

केंद्र में प्रचंड बहुमत से सरकार गठित करने जा रही भारतीय जनता पार्टी ने बीते कार्यकाल में चिकित्सा की पुरातन शास्त्र वर्णित भारतीय चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवन प्रदान किया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 05:39 PM (IST)Updated: Sun, 26 May 2019 05:39 PM (IST)
अब तो बदहाल आयुष चिकित्सालयों की ली जाए सुधि
अब तो बदहाल आयुष चिकित्सालयों की ली जाए सुधि

जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : केंद्र में प्रचंड बहुमत से सरकार गठित करने जा रही भारतीय जनता पार्टी ने बीते कार्यकाल में चिकित्सा की पुरातन शास्त्र वर्णित भारतीय चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवन प्रदान किया है। ऐसे में इस कार्यकाल में जिले में आयुष विधा से संचालित अस्पतालों के बेहतर दिन लौटने की उम्मीद बढ़ गई है। इन बदहाल अस्पतालों की सुधि ली जाए तो निश्चित ही गरीबों को सस्ता उपचार मिल सकेगा। बेरोजगारी की भी समस्या कुछ हद तक कम होगी।

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दरअसल आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा एवं होमियोपैथ विधाओं को मिलाकर आयुष नाम दिया गया है। आयुष चिकित्सा पद्धति में परीक्षण की बजाय नाड़ी और लक्षण से ही पहचान होती है। स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के आयुष चिकित्सक डा. अतुल कुमार शर्मा बताते हैं कि इस विधा में बहुधा महंगे परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। आयुर्वेद की विधा प्राकृतिक चिकित्सा और योग पद्धति तो एकदम मुफ्त है। हमारे घर के आसपास तमाम प्राकृतिक औषधियां हैं, जिनसे हम अनभिज्ञ हैं, उनसे उपचार किया जाता है। आयुष चिकित्सा पद्धति में उपचार काफी सस्ता भी है। एलोपैथ में हर दवा का साइड इफेक्ट है पर आयुष में नहीं। जनपद में गरीबों का संख्या काफी अधिक है। एलोपैथ की महंगी दवाएं और अस्पतालों में रोग की जांच हेतु विभिन्न परीक्षण का व्यय इनको कर्जदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। ऐसे में आयुष चिकित्सा पद्धति पर ध्यान दिया जाना गरीबों के हित में होगा। दूजे औषधीय वनस्पतियों की खेती को प्रोत्साहित किए जाने से किसानों के दिन भी बहुरेंगे। एलोपैथ पद्धति के लोकप्रियता का आलम यह कि आयुष चिकित्सा पद्धति पर बहुधा मरीजों को यकीन नहीं होता है। जिले में 23 होमियोपैथिक एवं 37 आयुर्वेदिक और यूनानी अस्पताल हैं। राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल मझावारा जैसे चंद अस्पातालों को अपवाद मान लें तो सभी किराए के मकान में ही संचालित हैं। इन अस्पतालों का हाल यह कि चिकित्सक है तो फार्मासिस्ट नहीं और फार्मासिस्ट है तो चिकित्सक और वार्ड ब्वाय नहीं। कुल जमा पूंजी दो या तीन का स्टाफ है। दवाओं की कमी आम बात है। एलोपैथ अस्पातालों में भी प्रारंभ की गई आयुष चिकित्सा व्यवस्था का भी हाल वही है। चिकित्सक एलोपैथ की दवाएं देने को बाध्य हैं। इन अस्पतालों के हालात में सुधार हो तो गरीबों को सस्ता उपचार मिलेगा और रोग जड़ से समाप्त होगा।

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