किताब ही नहीं, फिर कैसे पढ़ें और बढ़े बच्चे
सब पढ़े सब बढ़े इन दिनों यही नारा जिधर देखो जोर-शोर से सुनाई पड़ रहा है। मगर यह नारा कैसे चरितार्थ होगा जब स्कूलों में किताबों का टोटा पड़ा हो।
जागरण संवाददाता, वलीदपुर (मऊ) : सब पढ़े, सब बढ़े, इन दिनों यही नारा जिधर देखो जोर-शोर से सुनाई पड़ रहा है। मगर यह नारा कैसे चरितार्थ होगा जब स्कूलों में किताबों का टोटा पड़ा हो। नए शिक्षा सत्र में 21 दिन बीत चुके हैं, लेकिन परिषदीय से लेकर माध्यमिक विद्यालयों में एक भी निश्शुल्क पुस्तकें अभी तक नहीं पहुंच सकी हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है परंतु शासन से लेकर शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी निश्शुल्क किताबें उपलब्ध कराने में कितने गंभीर हैं किसी की समझ से परे है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शिक्षा का अधिकार अधिनियम सफल भी हो तो कैसे हो। शासन द्वारा इधर तीन-चार वर्षों से शिक्षा का नया सत्र अप्रैल से प्रारंभ किया गया परंतु इसकी तैयारी सिफर रही है। कहने को तो सर्व शिक्षा अभियान अंतर्गत गांव से लेकर न्याय पंचायत ब्लाक स्तर पर जागरूकता रैली पूरे जोर-शोर के साथ शुरू हुई। शत-प्रतिशत नामांकन पर जोर दिया गया। कान्वेंट स्कूलों की चकाचौंध में वैसे ही परिषदीय विद्यालय बच्चों के नामांकन में जद्दोजहद कर रहे हैं। जैसे-तैसे नामांकन तो कराया गया परंतु किताबें उपलब्ध न होने से यह आड़े आ रहा है। परिषदीय स्कूलों में कक्षा 01 से 08 तक बच्चों के अलावा मान्यता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी कक्षा 06 से 08 तक के छात्रों में निश्शुल्क पुस्तक वितरण की व्यवस्था है। नए सत्र का पहला महीना आधा से अधिक गुजर चुका है अभी किताबों का कुछ पता नहीं है।