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बेमिसाल : मऊ के इस कैंपस में नहीं करता कोई प्लास्टिक का प्रयोग

व्यक्तिगत रूप से व्यक्ति संकल्पित होकर प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग करना बंद कर दे और उनके स्थान पर कपड़ों के झोलों का प्रयोग शुरू कर दें तो इस समस्या से काफी हद तक बचा जा सकेगा।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 02:47 PM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2018 04:31 PM (IST)
बेमिसाल : मऊ के इस कैंपस में नहीं करता कोई प्लास्टिक का प्रयोग
बेमिसाल : मऊ के इस कैंपस में नहीं करता कोई प्लास्टिक का प्रयोग

मऊ [शैलेश अस्थाना]। सावधान! यहां जाने के पहले सोच लीजिए, इस कैंपस में कोई प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करता। अगर कहीं से किसी वस्तु की पैकिंग में आ भी गई तो उसके लिए अलग से बने विशिष्ट कूड़ेदान में ही उसको निस्तारित किया जाता है।

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पूरे परिसर में आपको कहीं भी प्लास्टिक उड़ती-बिखरती नहीं दिखेगी। वहां के सब लोग बाहर कुछ लेने जाते हैं तो झोला साथ में लेकर। जी हां, हम बात कर रहे हैं जनपद के कुशमौर में स्थापित आइसीएआर के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो व राष्ट्रीय बीज विज्ञान संस्थान परिसर की। यहां के लोगों ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प के बल पर प्लास्टिक जैसे महाभयंकर अविनाशी राक्षस से मुक्ति पा लिया है। इसका श्रेय जाता है एनबीएआइएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक श्रीवास्तव को।

इसी तरह का द्दढ़ संकल्प लेकर, दो वर्ष पूर्व अपने लोगों को जागरूक करने निकल पड़े थे डॉ. आलोक। वर्ष 2016 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी से उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत करते हुए ब्यूरो परिसर को प्लास्टिक-मैनेज्ड जोन बनाने का बीड़ा उठाया। यह मानते हुए कि प्लास्टिक से पूरी तरह से मुक्ति पाना आसान नहीं है।

इसी कारण शुरुआत प्लास्टिक वेस्टेज मैनेजमेंट से की। अपने सहयोगी वैज्ञानिकों की टीम के साथ वे लगातार इस अभियान में लगे रहे। अभियान में उन्हें ब्यूरो के निदेशक डॉ. एके सिन्हा और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. पवन कुमार शर्मा का भी भरपूर सहयोग मिला। इसका नतीजा आज सबके सामने है। ब्यूरो के साथ ही पड़ोस का राष्ट्रीय बीज विज्ञान संस्थान का परिसर भी पूरी तरह से प्लास्टिक मुक्त है।

तीन चरण में बनाई योजना

पूरे परिसर को प्लास्टिक-फ्री जोन बनाने के लिए डॉ. श्रीवास्तव ने तीन चरणों में कार्ययोजना तैयार की। इसके लिए प्रथम चरण में उन्होंने अपनी टीम के साथ परिसर के सभी आवासों में जाकर लोगों से प्लास्टिक की थैलियों के प्रयोग पर रोक लगाने का आह्वान किया। सबसे इससे उत्पन्न हो रहे खतरे के प्रति जागरूक करते हुए वैज्ञानिक समुदाय की जिम्मेदारियों को निभाने की बात की।

दूसरे चरण में प्रत्येक परिवार में कपड़ों के झोलों का वितरण कराया और लोगों को संकल्प दिलवाया। उन झोलों का प्रयोग परिवार के लोग शॉपिंग इत्यादि के लिए करने लगे। तीसरे चरण में उन्होंने परिसर में स्थान-स्थान पर वेस्टेज प्लास्टिक को एकत्र करने के लिए बाक्स रखवाए ताकि रेडीमेड आने वाली चीजों की पैकिंग में कंपनियों के प्रयोग की जाने वाली प्लास्टिक के कचरे निश्चित स्थान पर डाले जा सकें।

कैंपस की आवासीय कालोनियों में रहने वाले लोग भी अपने गीले-सूखे कचरे को अलग-अलग तो रखते ही हैं। किसी वस्तु की पैकिंग के साथ आने वाली प्लास्टिक को एक अलग बाक्स में इक्ट्ठा करते हैं और फिर कैंपस में लगे प्लाटस्टिक वेस्टेज ड्रम तक पहुंचा देते हैं। उनके भर जाने पर इन्हें रि-साइक्लिंग के लिए बाहर भेजने की व्यवस्था की गई है। उनके प्रयासों का नतीजा है कि आज एनबीएआइएम व राष्ट्रीय बीज विज्ञान संस्थान परिसर प्लास्टिक मुक्त दिखने लगे हैं।

सभी को सक्रिय होना पड़ेगा

प्रधान वैज्ञानिक, एनबीएआइएम, कुशमौर, मऊ डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि सभी लोग अपने-अपने स्तर पर व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति संकल्पित होकर प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग करना बंद कर दे और उनके स्थान पर कपड़ों के झोलों का प्रयोग शुरू कर दें तो इस समस्या से काफी हद तक बचा जा सकेगा। हमारी अगली योजना स्कूली बच्चों के माध्यम से पूरे जनपद में इस आंदोलन को फैलाने की है। मैं व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर भी संपर्क और जनजागरूकता में लगा हूं। 


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