सिगापुर में नेताजी के भाषण ने किया प्रेरित, 900 मुद्रा दान में दिया
अतीत के आईने में .... आजाद हिद फौज में हो गए शामिल नेताजी ने बना दिया लांस नायक
अतीत के आईने में ....
आजाद हिद फौज में हो गए शामिल, नेताजी ने बना दिया लांस नायक अंग्रेजों ने धोखे से उन्हें पकड़ रंगून सेंट्रल जेल में डाला, यातनाएं दी कोपागंज के देवकली विशुनपुर के निवासी थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामबृक्ष जागरण संवाददाता, पुराघाट (मऊ) : सिगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण ने इस कदर प्रेरित किया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामवृक्ष राय उर्फ जयहिंद राय देशभक्ति से ओत-प्रोत हो गए। मात्र 22 वर्ष की उम्र में ही देशसेवा करने का संकल्प लेकर 1942 में नेताजी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगे। हालात यह हुई कि उन्होंने अपनी कमाई का सिगापुर की 900 मुद्रा दान में दे दिया और आजाद हिद फौज की सेना में शामिल हो गए। नेताजी ने उन्हें अपना ड्राइवर बनाया और उनके जुनून व जज्बे को देखकर अपनी सेना का लांसनायक बना दिया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की कई लड़ाइयां लड़ी और देशभक्ति की मिसाल कायम की। आज उनके जज्बे को यादकर गांव के लोग सिहर उठते हैं। नेताजी की जयंती पर अक्सर गांव में उनके बीते दिनों को लोग याद करते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामवृक्ष राय कोपागंज विकास खंड के देवकली विशनुपुर गांव के रहने वाले थे। उनका जन्म 1920 में हुआ था। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने 22 वर्ष की आयु में सिगापुर का रुख किया और वहां कठिन परिश्रम कर 900 मुद्रा को अर्जित किया था। इसी बीच देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने तरह-तरह से मापदंड अपनाते रहे। 1942 में नेताजी ने एक सेना का गठन किया। उनकी बातों को सुन उनके मन मे देश भक्ति की भावना हिलोरे लेने लगी और देश की आजादी की भावना जाग गई। इसी को देख रामबृक्ष का मन नेताजी के साथ देश की आजादी के लिए व्याकुल हो उठा। 1943 में जर्मनी से सिगापुर आए नेताजी के सानिध्य में आकर वह सेना में वह शामिल हो गए और मेहनत से कमाए 900 सिगापुरी मुद्रा को सेना में न्योछावर कर उसमें शामिल हो गए। उनके जज्बे को देखकर नेताजी ने अपना ड्राइवर नियुक्त कर दिया और कुछ समय बाद उनका अनुशासन देख उन्हें सेना का लांसनायक बना दिया। उन्होंने उनको निराश नही किया बल्कि नेताजी के साथ कई लड़ाइयों में प्रतिभाग कर उनका विश्वास पात्र बन बैठे। वर्मा रंगून की लड़ाई में वह नेताजी के साथ रहे। इसी बीच अंग्रेजों ने धोखे से उन्हें पकड़ कर रंगून सेंट्रल जेल में डाल दिया और बहुत यातनाएं दी। भारत की आजादी के बाद सरकार की पहल पर वह स्वदेश लौट आए। सिगापुर से आने के बाद वह अपने गांव मे भी बच्चों को नेताजी के देश के प्रति किए अविस्मरणीय कार्यों को सुनाते-सुनाते रोने लगते थे। नेताजी की जयंती आने बाद बड़े धूमधाम से मानते थे। इस दौरान लोगों में मिठाई बांटते थे और आजाद हिद फौज सेना में एक ही गीत गाया जाता था उसे सुनाते थे। रामबृक्ष राय की मौत फरवरी 1996 में हो गई। चौदह साल बात भी उनकी याद में लोगों के आंखों में आंसू भर आते हैं। कदम कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाये जा,
यह जिदगी है कौम की, तू कौम पे लुटाए जा।