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ख्वाहिशें जरूर करें पूरी, पर कहीं परवरिश रह न जाए अधूरी

च्चे किसे प्यारे नहीं होते, अगर आपका बच्चा है तो आप भी उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने का प्रयास करते हैं। करें भी क्यों नहीं, आखिर उनसे बढ़कर हैं कौन आपके लिए। उनकी हर खुशी पूरी करना आपका दायित्व है तो यह नितांत आपकी आपकी आंतरिक खुशी से जुड़ा हुआ मामला है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 10:22 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:22 PM (IST)
ख्वाहिशें जरूर करें पूरी, पर कहीं परवरिश रह न जाए अधूरी
ख्वाहिशें जरूर करें पूरी, पर कहीं परवरिश रह न जाए अधूरी

बच्चे किसे प्यारे नहीं होते, अगर आपका बच्चा है तो आप भी उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने का प्रयास करते हैं। करें भी क्यों नहीं, आखिर उनसे बढ़कर हैं कौन आपके लिए। उनकी हर खुशी पूरी करना आपका दायित्व है तो यह नितांत आपकी आपकी आंतरिक खुशी से जुड़ा हुआ मामला है। परंतु बच्चों के लालन-पालन में यही एक ¨बदु है, जिसमें ख्वाहिशों के पूरी करने के बारे में एक बारीक अंतर को समझना जरूरी है। देखने में आता है कि धनाढ्य वर्ग अपने बच्चों की हर जायज-नाजायज मांग को आंख मूंदकर पूरा करने में जुटा रहता है। उनकी देखा देखी मध्यम वर्ग भी इसी राह पर चल पड़ा है। यह अंधप्रवृत्ति काफी खतरनाक हो सकती है। आपके लिए ही नहीं, खुद बच्चे के जीवन और आपके पूरे परिवार के लिए भी।

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स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि आज के बच्चे माता-पिता को अपने ढंग से परवरिश करने के लिए मजबूर करते हैं। बच्चों की जिद पूरी करने के चक्कर में अभिभावक बहुत सी नैतिक जिम्मेदारियों को दरकिनार कर रहे हैं। लगातार घट रहा संयुक्त परिवार का प्रचलन इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। संयुक्त परिवार में बच्चा अपने बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर कथा कहानियों के माध्यम से नैतिक मूल्यों के बारे में सीखते थे। इससे किताबी ज्ञान के साथ नैतिक संस्कार भी साथ-साथ मिलते थे, लेकिन आज ¨जदगी इतनी तेजी से दौड़ रही है कि इसमें इंसान केवल मशीन बनकर रह गया। किसी के पास इतना वक्त नहीं कि बच्चों के पास कुछ पल व्यतीत करते हुए उनकी भावनाओं को समझ सकें। आजकल की पढ़ाई ने बच्चों की परिवार और रिश्तेदारों से न केवल दूरी ही बना दी है, बल्कि माता-पिता से भी बच्चों ने दूरी बनाना शुरू कर दिया है। इसलिए संस्कारों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनमें बड़ों के लिए प्यार और सम्मान नहीं रह गया। ऐसा ही चलता रहा तो आधुनिक युग की सामाजिक समस्याएं दिन-ब-दिन बढ़ती चली जाएंगी। अब माता पिता को थोड़ा बहुत कठोर बनना पड़ेगा। अपने बच्चों की जायज और नाजायज मांग में फर्क रखकर उनकी आवश्यक बात को पूरा और अनावश्यक इच्छा को अधूरा छोड़ना पड़ेगा।

-देवभाष्कर तिवारी, प्रधानाचार्य, डीएवी इंटर कालेज, मऊ।


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