बोएं तोरिया व लाही, सूखे से हुई बरबादी की होगी भरपाई
तोरिया व लाही उगाएं किसान आपदा काे अवसर में बदलें
बोएं तोरिया व लाही, सूखे से हुई बरबादी की होगी भरपाई
जागरण संवाददाता, मऊ : पूर्वांचल में कम बारिश की वजह से कमोवेश हर तरफ सूखे जैसे हालात है। ऐसे में किसान त्राहि-त्राहि कर रहा है। अब यदि बरसात होने पर किसान रोपाई करते हैं तो उनकी ऊपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे आर्थिक रूप से धान की खेती नुकसानदायक ही होगी। ऐसे में किसान आपदा को अवसर में बदलकर तोरिया व लाही की खेती करें। इसकी फसल 75 से 90 दिन में तैयार हो जाएगी। इससे किसान की धान की फसल की भरपाई हो जाएगी।
रबी के सीजन आने में अभी है लंबा समय :
- कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एलसी वर्मा की मानें तो रबी सीजन आने में अभी लंबा समय है। खरीफ व रबी के बीच के अंतराल में खेत खाली रहने से और भी नुकसान होगा। इस बीच में खेत और अपने उपलब्ध संसाधन का उपयोग करके किसान 75 से 90 दिनों में तैयार होने वाली तिलहन फसल तोरिया अथवा लाही की फसल कैच क्राप (अंतर्वर्ती फसल) के रूप में ले सकते हैं। साथ ही साथ तोरिया की कटाई के बाद नवंबर में रबी सीजन में गेहूं की फसल ले सकते हैं। तोरिया से 12 से लेकर 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त सकते हैं। तोरिया की एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुआई के लिए चार किलोग्राम बीज पर्याप्त है। बुआई के पहले खेत तैयार करने के बाद तोरिया के बीज को 10 ग्राम थीरम प्रति चार किलोग्राम बीज से अथवा 10 ग्राम मैनकोज़ेब से उपचारित करके लाइनों में 30 सेंटीमीटर कतार से कतार में बुआई करना चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी भी 25 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। फसल घनी होने पर पहली सिंचाई या बोने के 25 दिनों बाद घने पौधों को निकालकर समायोजित कर लेना चाहिए। इससे ऊपज अच्छी होगी। मुख्य रूप से तोरिया की प्रजाति भवानी, पीटी 303, पीटी 30, उत्तरा, तपेश्वरी और आजाद चेतना आजाद प्रजातियां प्रचलित है। सामान्यतः तोरिया की बुआई अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितंबर के प्रथम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए। केवल भवानी प्रजाति की बुआइई सितंबर के दूसरे पखवाड़े में करें।
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फूल आने के पहले तक पानी की न हो कमी :
सस्य वैज्ञानिक डा. अंगद प्रसाद का कहना है कि बोआई के 15-20 दिनों बाद निराई गुड़ाई करके अवांछित खरपतवार एवं घने पौधों को निकाल लेना चाहिए। सिंचाई के लिए बरसात नहीं होने पर फसल को फूल आने के पहले पानी की कमी न होने पाए। अतः हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। खेत में जल निकास की भी व्यवस्था होनी चाहिए। निरंतर फसल की निगरानी करते रहना चाहिए। किसी भी रोग के लगने पर तत्काल संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेकर प्रबंधन के उपाय करना चाहिए।
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इस तरह करें उर्वरक का प्रयोग :
मृदा वैज्ञानिक डा. चंदन ने का कहना है कि खाद एवं उर्वरक सिंचित दशा में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फेट, 30 किलोग्राम पोटाश और 30 किलोग्राम सल्फर के साथ खेत की अंतिम जोताई के समय 40 क्विंटल साड़ी गोबर की खाद मिलाएं। सिंचित दशा में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट, 50 किलोग्राम पोटाश, 30 किलोग्राम सल्फर के साथ ही अंतिम जोताई के समय 40 क्विंटल गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। यदि उपलब्ध हो तो 200 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रद होगा। उपलब्ध न होने पर सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग फास्फेट और सल्फर दोनों के लिए किया जा सकता है।
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