पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हैं अखाड़ों के उस्ताद
अखाड़ों के उस्ताद ही है जो अपनी परंपराओं को ¨जदा रक्खे हुए हैं, वर्ना आज पश्चिमि देशों के नकल व चकाचौंध के इस युग में इन परंपराओं को कौन ढ़ोता है। ये न सिर्फ आज की पीढि़ बल्कि नई पीढि़यों को भी इसे ¨जदा रखने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, ये अखाड़े ही हैं जो जब त्योहारों के समय केशरिया झंडा लगाए हथियारों से लैश होकर मैदान में उतरते हैं तो हमारी पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती है। इनकी कला का जादू देख हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। उक्त विचार
जागरण संवाददाता, मऊ : अखाड़ों के उस्ताद ही है जो अपनी परंपराओं को ¨जदा रखें हुए हैं, वर्ना आज पश्चिमी देशों के नकल व चकाचौंध के इस युग में इन परंपराओं को कौन ढ़ोता है। यह न सिर्फ आज की पीढ़ी बल्कि नई पीढि़यों को भी इसे ¨जदा रखने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं। यह अखाड़े ही हैं जो जब त्योहारों के समय केशरिया झंडा लगाए हथियारों से लैश होकर मैदान में उतरते हैं तो हमारी पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती है। इनकी कला का जादू देख हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। यह विचार समाजसेवी व भाजपा नेत्री नीलम सर्राफ के हैं। वह लक्ष्मी प्रतिमा विसर्जन जुलूस में शामिल दर्जन भर अखाड़ों के उस्तादों के सम्मान समारोह के दौरान बोल रही थीं। श्रीमती सर्राफ ने अखाड़ों के उस्तादों सहित दर्जनों कलाकारों को अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया। इसमें प्रदीप वर्मा, विजय सर्राफ, सुर्यांसु सर्राफ, सतीश वर्मा, अमिताभ वर्मा, ज्ञान प्रकाश गुप्ता, प्रांशु वर्मा, रजत अंकित आदि शामिल थे।