जनप्रतिनिधि रहे मौन, ठप होते गए औद्योगिक प्रतिष्ठान
सुल्तानपुर या अमेठी के रास्ते लखनऊ से मऊ आएं तो आजमगढ़ की सीमा पार करते ही पूर्वांचल के मैनचेस्टर की तस्वीर अपनी दुर्दशा बयां करने लगती है। 1950 में प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने जिस मऊ को भारत का मैनचेस्टर कहा था वह इस सदी के प्रारंभ से ही गरीबी की पायदान पर तेजी से नीचे उतर रहा है।
- प्रस्तावित तो दूर संचालित हो रहे औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर भी लगा ताला
- कभी मऊ की दो काटन मिलों पर टिकी थी हजारों लोगों की आजीविका
अरविद राय,
घोसी (मऊ) : सुल्तानपुर या अमेठी के रास्ते लखनऊ से मऊ आएं तो आजमगढ़ की सीमा पार करते ही पूर्वांचल के मैनचेस्टर की तस्वीर अपनी दुर्दशा बयां करने लगती है। 1950 में प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने जिस मऊ को भारत का मैनचेस्टर कहा था, वह इस सदी के प्रारंभ से ही गरीबी की पायदान पर तेजी से नीचे उतर रहा है। जिले के जनप्रतिनिधि आंखों पर पट्टी बांध गांधारी बने गए और जिले में संचालित कल-कारखानों की खटर-पटर बंद होती चली गई। नए औद्योगिक प्रतिष्ठान की स्थापना तो दूर यहां प्रस्तावित इकाईयां भी स्थानांतरित होती चली गई। अब तो जिले के मतदाताओं को विकास की गंगा बहाने और कल्पनाथ राय की तर्ज पर विकास करने के वायदे भी नहीं सुहाते हैं।
बीती सदी के अंत तक मऊ के युवाओं को जिले में ही रोजगार मिलने से पलायन रूक गया था। अब हालात यह कि यहां के युवा रोजगार की तलाश में देश के विभिन्न महानगरों तक अरब देशों को पलायन कर रहे हैं। जनपद में प्रथम औद्योगिक इकाई के रूप में लगभग पचास दशक पूर्व जयपुरिया घराना ने मऊ में काटन मिल स्थापित किया। वर्ष 1971 में केंद्र सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। स्वदेशी काटन मिल मऊ के नाम से संचालित इस मिल के सहारे 1200 नियमित और अन्य दैनिक वेतनभोगियों सहित लगभग डेढ़ हजार श्रमिकों की रोजी-रोटी जुड़ी थी। 19 मई 1971 को परदहां में यूपी स्टेट स्पिनिग काटन मिल की स्थापना हुई। इस मिल ने लगभग 3600 श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया। 04 दिसंबर 1984 को घोसी में दि किसान सहकारी चीनी मिल्स लिमिटेड की चिमनियों ने धुंआ उगलना प्रारंभ किया। दस वर्ष बाद इस मिल की पेराई क्षमता में वृद्धि के बाद तो इस मिल ने एक हजार से अधिक श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराया। जिले के विकास पुरूष कल्पनाथ राय के देहावसान के बाद जिले के हालात बदलने लगे। एक के बाद एक वर्ष 2006 तक दोनों ही काटन मिलें बंद हो गईं। तमाम धरना-प्रदर्शन एवं आंदोलन हुए, श्रमिकों ने लाठियां खाया पर इन मिलों का संचालन न हो सका। वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने स्वदेशी काटन मिल को दोबारा चलाए जाने की सहमति जताया पर पैरवी न होने से बात खत्म हो गई। इन दोनों मिलों के बंद होने से इन पर आधारित साड़ी व्यवसाय एवं तमाम अन्य छोटे उद्योगों ने दम तोड़ दिया। जाहिर सी बात है कि अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े तमाम व्यवसायों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। अब एकमात्र बची फैक्ट्री घोसी चीनी मिल भी अरबों के घाटे में चल रही है। इस पर भी निजी हाथों में सौंपने की तलवार लटकी है।
---------------
इंडस्ट्रियल एरिया घोसी बदहाल
आजादी के बाद दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान घोसी में औद्योगिक आस्थान स्थापित किया गया। उद्यमियों को 99 वर्ष हेतु पट्टा के रूप में निर्मित नौ शेडों को आवंटित कर यूपीएफसी ने कल-कारखानों की स्थापना हेतु ऋण भी दिया। देखते ही देखते सभी नौ शेडों में उद्योग संचालित होने लगे। कालांतर में हालात ऐसे हुए कि अब यहां चंद प्रतिष्ठान ही बचे हैं। इसकी बदहाली से प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों को कोई सरोकार नहीं है।
---------
कहां गया कृषि विर्श्वविद्यालय
वर्ष 06-07 में राष्ट्रीय कृषि समिति ने जनपद में कृषि विर्श्वविद्यालय निमरण हेतु अस्सी फीसदी एवं अवशेष लागत सहित भूमि अधिग्रहण आदि की औपचारिकताओं हेतु प्रदेश सरकार को स्वीकृति के साथ मामला भेजा। यह प्रस्ताव कहां गुम हो गया पता नहीं।
-----------------
कभी बनती थी बिजली अब थर्मल पावर स्टेशन का प्रस्ताव भी लापता
पं. अलगू राय शास्त्री की पहल पर बनारस के बाद पूर्वाचल का दूसरा कोल थर्मल पावर प्लांट मऊ में लगा। सन 72 में विद्युत विभाग ने इसका अधिग्रहण किया। इस प्लांट से बलिया एवं आजमगढ़ शहरों को बिजली दी जाती थी। विभिन्न कारणों से यह प्लांट अस्सी के प्रारंभिक वर्षो में बंद हो गया। 11 अप्रैल 1992 को तत्कालीन केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री के प्रयास से घोसी तहसील मुख्यालय से लगभग पांच किमी दूर सरायसादी में 3.5 एकड़ क्षेत्रफल में सोलर पीपी प्लांट स्थापित किया गया। इससे एक सौ किलोवाट विद्युत उत्पादन प्रारम्भ हुआ। यह प्लांट भी अरसे से बंद है। अगस्त 09 में जिले के दोहरीघाट क्षेत्र में 660 मेगावाट की दो यूनिटों की स्थापना का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। यह प्रस्ताव भी अब लापता की श्रेणी में है।