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राइजोबियम पर शोध को भारत और यूके ने मिलाया हाथ

दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीव राइजोबियम की और भी उन्नत नस्लों तथा फसल विशेष पर विशेष प्रभाव छोड़ने वाली प्रजातियों की खोज के लिए भारत और यूनाइटेड ¨कगडम लंदन के वैज्ञानिकों ने हाथ मिलाया है। इस अंतरराष्ट्रीय परियोजना में जनपद के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो सहित देश के अन्य कई शोध संस्थान भी शामिल हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 08:35 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 08:35 PM (IST)
राइजोबियम पर शोध को भारत और यूके ने मिलाया हाथ
राइजोबियम पर शोध को भारत और यूके ने मिलाया हाथ

जासं, मऊ: दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीव राइजोबियम की और भी उन्नत नस्लों तथा फसल विशेष पर विशेष प्रभाव छोड़ने वाली प्रजातियों की खोज के लिए भारत और यूनाइटेड ¨कगडम लंदन के वैज्ञानिकों ने हाथ मिलाया है। इस अंतरराष्ट्रीय परियोजना में जनपद के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो सहित देश के अन्य कई शोध संस्थान भी शामिल हैं। ब्यूरो के निदेशक डा. अनिल कुमार सक्सेना के निर्देशन में चलने वाली इस परियोजना के तहत दोनों देशों के वैज्ञानिक मिलकर साझा अन्वेषण को बढ़ावा देंगे तथा उन्नत नस्लों के संबंध में प्राप्त ज्ञान और वैज्ञानिक शोधों का आदान प्रदान करेंगे।

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इस संबंध में डा. सक्सेना ने बताया कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीव राइजोबियम की और भी उन्नत प्रजातियों पर शोध करना है। ताकि राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़े और इसके लिए प्रयुक्त होने वाले रासायनिक खादों पर लोगों की निर्भरता कम हो और मिट्टी का स्वास्थ्य बना रहे। वे बताते हैं कि इस परियोजना में देश के विभिन्न संस्थानों के कुल आठ और यूनाइटेड ¨कगडम के नौ वैज्ञानिक शामिल हैं। इस संबंध में यूके के वैज्ञानिकों का एक दल भी मंगलवार को राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो कुशमौर पहुंचा। यहां तीन दिनों तक चलने वाली उच्चस्तरीय कांफ्रेंस में यूके के वैज्ञानिक प्रोफेसर फिलिप साइमन, प्रोफेसर रेमंड डिक्सन तथा डा. सक्सेना के अलावा भारतीय मृदा संस्थान भोपाल के डा. डीएलएन राव, डा. एसआर मोहंती, डा.जीएन कुमार प्रमुख रूप से आगामी योजनाओं पर मंथन करेंगे। क्या होगा शोध का क्षेत्र

राइजोबियम कल्चर की अन्य उपयोगी नस्लों की खोज, उनकी पहचान और उनके गुणों का विश्लेषण किया जाएगा। यह देखा जाएगा कि किस नस्ल की उपयोगिता किस दलहनी फसल के लिए विशेष है। इस प्रकार फसल को केंद्र में रखकर उनके उपयुक्त राइजोबिय स्ट्रेन का चयन किया जाएगा। दोनों देशों के वैज्ञानिक अपने-अपने देश की मिट्टी में पाए जाने वाले राइजोबियम पर शोध करके प्राप्त सूचनाओं और ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे ताकि इस दिशा में और भी बहुद्देशीय व महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की ओर बढ़ा जा सके। सार्थक आए हैं परिणाम

राइजोबियम जैसे बहुपयोगी सूक्ष्मजीव पर ब्यूरो काफी दिनों से काम कर रहा है। यूके के साथ यह परियोजना विगत दो वर्षों से अस्तित्व में आई है। इसके सार्थक परिणाम भी आए हैं। चना, मटर, मूंग, मसूर, लोबिया, सोयाबीन इत्यादि से प्रभावी राइजोबियम की प्रवर्धों का संकलन किया गया है। इनकी नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता तथा जड़ों में गंठाव की क्षमता का सतत रूप से मूल्यांकन किया जा रहा है। भविष्य में ब्यूरो के माध्यम से उन्नत राइजोबियम उपलब्ध कराने की योजना है।

-डा. अनिल कुमार सक्सेना, निदेशक, राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो, कुशमौर, मऊ।


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