इंसाफ को भटक रहे फोरलेन बाइपास के किसान
फोरलेन बाइपास के लिए जमीन देने वाले सैकड़ों किसानों का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा है। निर्माण जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, ग्रामीणों की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। सीमांकन कहीं और निर्माण कहीं और होने से कई किसान तो ऐसे हैं, जिन्हें अभी तक यही समझ में नहीं आ पाया है कि आखिर उनकी कितनी जमीन फोरलेन के लिए ली गई है। वहीं, कुछ किसानों का आरोप है कि कागजों पर ली गई जमीन से ज्यादा उनकी भूमि पर निर्माण चल रहा है।
जागरण संवाददाता, मऊ : फोरलेन बाइपास के लिए जमीन देने वाले सैकड़ों किसानों का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा है। निर्माण जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, ग्रामीणों की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। सीमांकन कहीं और निर्माण कहीं और होने से कई किसान तो ऐसे हैं, जिन्हें अभी तक यही समझ में नहीं आ पाया है कि आखिर उनकी कितनी जमीन फोरलेन के लिए ली गई है। वहीं, कुछ किसानों का आरोप है कि कागजों पर ली गई जमीन से ज्यादा उनकी भूमि पर निर्माण चल रहा है।
बढ़ुआगोदाम से परदहां, बरलाई, शहरोज, काछीकला, हिकमा गाड़ा होते हुए भदसा मानोपुर तक फोरलेन बाइपास बनाया जा रहा है। लगभग 18 किमी के इस बाइपास को बनाने के लिए हजारों किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है। बढुआगोदाम के दर्जनों किसान एवं मकान-दुकान के मालिक जमीन के मुआवजे का आंकलन कम करने का आरोप लगाते हुए पिछले एक महीने से धरने पर हैं। एनएचएआइ के अधिकारी किसानों की बात सुनने भी नहीं आ रहे हैं। धरने पर बैठे रामअवध राम, शिवशंकर, अवधेश, विजय गुप्ता, फेकू गुप्ता, जंगबहादुर, रामधनी यादव, उदयभान आदि का कहना है कि भू स्वामियों के मकानों और जमीनों के मुआवजे में गड़बड़ी की गई है। वे बढ़ुआगोदाम में बैठकर पिछले 34 दिनों से धरना दे रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। वहीं, काछीकला के कन्हैया चौहान ने बताया कि बाइपास में उनकी कितनी जमीन गई है, यह तय नहीं हो पा रहा है। अधिकारी आज-कल कहकर टाल रहे हैं। क्षेत्र में ऐसे कई किसान हैं जो समस्या से ग्रस्त हैं।