11 महीनों की बरकतें भी रमजान के बराबर नहीं
रमजान का पूरा महीना ही रहमतों और बरकतों का है। साल के बाकी 11 महीनो की बरकतें अगर एक में मिला दी जाएं तो भी इस महीने की बराबरी नहीं कर सकतीं।
जागरण संवाददाता, मऊ : रमजान का पूरा महीना ही रहमतों और बरकतों का है। साल के बाकी 11 महीनो की बरकतें अगर एक में मिला दी जाएं तो भी इस महीने की बराबरी नहीं कर सकतीं। रो•ोदारों को खुशूसी ए•ा•ा से नवा•ा जाएगा। हदीश शरीफ में सअल बिन साद (रजि.) से रवायत है कि Xह्नह्वश्रह्ल;जन्नत में एक दरवाजा होगा जिसका नामXह्नह्वश्रह्ल; रैय्यानXह्नह्वश्रह्ल; होगा और उसमें से सिर्फ रो•ोदार ही दाखिल होंगे। कहा जाएगा कि रो•ोदार कहां हैं, तो वे खड़े हो जाएंगे। फिर उस दरवा•ो को बंद कर दिया जाएगा। यह कहना है जमीअत उलमा के जनरल सेक्रेट्री मौलाना इ़फ्ते़खार मिफ्ताही का। वे रमजान की ़फ•ाीलत को बयान कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि रमजान माह को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहला अशरा (1 से 10 दिनों का) रहमतों का है। इसमें अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। रो•ोदारों को चाहिए की कसरत से इन दिनों में अल्लाह की इबादत करें। दूसरा अशरा मगफिरत का (11 से 20 दिनों का)। इसमें कसरत से इबादत के साथ ़कुरान की तिलावत करें। •िाक्र व अ•ाकार के साथ अल्लाह से अपने गुनाहों की मा़फी तलब करें। आखिरी तीसरा असरा (20 से 30 दिनों का) जहन्नम से अ•ादी का है। इन दिनों अल्लाह की इबादत के साथ साथ अल्लाह की बारगाह में गिड़गिड़ा कर मा़फी मांगें। रो•ोदार को चाहिए के रो•ो की हालत में हर बुरे काम से दूर रहें। रो•ा खाने पीने से परहे•ा का नाम रोजा नहीं। रो•ा में मनाही, लागू, फि•ाूल बातों व गुनाहों से दूर रहने का हुक्म है। हदीश में है कि Xह्नह्वश्रह्ल;जब तुम में से कोई रो•ा रखे तो उसे चाहिए के गुनाहों व जहालत के कामों से दूर रहे अगर कोई उसे गाली दे या लड़ाई करे तो वह कह दे मैं रो•ो से हूं। हदीस में अबू हुरैरा (रा•ाी) से रवायत है Xह्नह्वश्रह्ल;जो रो•ा रख कर भी झूठ बोल या उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह को इस ची•ा की कोई •ारूरत नहीं के वह खाना पीना छोड़ दे।
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