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यम के नाम जले दीप, खेदा गया दलिद्दर

नरक चतुर्दशी के अवसर पर शनिवार की सायंकाल लोगों ने छोटी दीवाली मनाई। यम के नाम से दीप जलाए और इसे घर के दक्षिण तरफ रखा।

By JagranEdited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 06:29 PM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 06:29 PM (IST)
यम के नाम जले दीप, खेदा गया दलिद्दर
यम के नाम जले दीप, खेदा गया दलिद्दर

जागरण संवाददाता, मऊ : नरक चतुर्दशी के अवसर पर शनिवार की सायंकाल लोगों ने छोटी दीवाली मनाई। यम के नाम से दीप जलाए और इसे घर के दक्षिण तरफ रखा। रविवार की ब्रह्ममुहुर्त में घरों की महिलाएं अपने-अपने घर का दरिद्र बाहर करने की परंपरा का निर्वहन किया और धन, संपत्ति, ऐश्वर्य की देवी कमलासना, विष्णुप्रिया मां लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त किया।

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दरिद्र निष्कासन को आंचलिक बोली में 'दलिद्दर खेदने' का नाम दिया गया है। इसमें भोर में ही महिलाएं उठकर यम के दीए को घर में पड़े पुराने सूप पर रखकर नए गन्ने के टुकड़े या हंसुए से पीटते हुए पूरे घर में घुमाती हैं और 'इस्सर पइठें, दलिद्दर निकलें' का जाप करती हुई गांव से बाहर लेकर चली जाती हैं। गांव के बाहर सभी घरों से साफ-सफाई में निकले कूड़ों-कबाड़ों और पुरानी टूटी-फूटी चीजों को जला दिया जाता है। कहीं-कहीं जल रहे मिट्टी के दीए से हंसिए के फाल पर काजल बनाकर आंखों में लगाने की परंपरा है। इस पूरी परंपरा का निहितार्थ यही है कि दीपावली साफ-सफाई का पर्व है। वर्षा ऋतु में आई नमी के कारण उत्पन्न कीड़े-मकोड़ों और गंदगी को साफ करना ही इसका सामाजिक उद्देश्य है। यह माना जाता है सफाई से स्वास्थ्य और स्वास्थ्य से संपदा आती है। यम का दीया नाबदान पर रखने की परंपरा शायद इसीलिए बनाई गई होगी कि गंदगी वाले स्थान पर एकत्र कीड़े-मकोड़े दीप के संपर्क में आकर जल मरेंगे। इसीलिए घर के कूड़ों को मां लक्ष्मी के आगमन के पूर्व ही घरों से निकाल देने को दलिद्दर खेदने का नाम दिया गया और इसी से ईश्वर के पैठने यानि वास करने की कल्पना की गई है। आज भी यह परंपरा जारी है।


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