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बंद होता चला गया निगम बसों का परिचालन

बेहतर एवं आवश्यकतानुसार बसों के संचालन का उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का दावा स्थानीय तहसील क्षेत्र में एक मजाक सा बना है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 06:24 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 06:24 PM (IST)
बंद होता चला गया निगम बसों का परिचालन
बंद होता चला गया निगम बसों का परिचालन

जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : बेहतर एवं आवश्यकतानुसार बसों के संचालन का उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का दावा स्थानीय तहसील क्षेत्र में एक मजाक सा बना है। तहसील मुख्यालय एवं समीपवर्ती क्षेत्रों के नागरिकों को मंडल मुख्यालय के लिए भी सुबह से दोपहर तक एक भी निगम की बस नहीं है। अन्य मार्गों का भी हाल ऐसा ही है। जिन मार्गो पर रोडवेज ने बसें बंद कर दिया उन मार्गों पर निजी बसें यात्रियों से ठसाठस भरी चलती हैं।

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यातायात व्यवस्था आर्थिक उन्नति की प्रथम आवश्यक शर्त है। परिवहन संसाधन महज व्यवसाय के लिए ही नहीं वरन रोजमर्रा की जिदगी की जरूरत है। पर शायद यह बात निगम की नजरों में घोसी क्षेत्र के बाबत ऐसा नहीं है। स्थानीय तहसील मुख्यालय, नगर पंचायत, ब्लाक एवं कोतवाली मुख्यालय है तो साथ ही बुनकर बाहुल्य नगर की वर्तमान आबादी पचास हजार से अधिक है। बावजूद इसके प्रात:काल में घोसी से होकर या बन कर आजमगढ़ हेतु जाने के लिए एक भी बस नहीं है। वहीं नगरा से मझवारा, घोसी एवं नदवासराय होकर सुबह आजमगढ़ जाने वाली निजी बस का लोग इंतजार करते हैं। यह बस निकल गई तो नागरिकों को दोहरीघाट या मऊ होकर या फिर प्राइवेट साधन से आजमगढ़ जाना पड़ता है। पूर्व में घोसी-आजमगढ़ के बीच घोसी-जौनपुर, बिल्थरारोड-आजमगढ़, गजियापुर-आजमगढ़, मझवारा-आजमगढ़ सहित अन्य तमाम बसें संचालित थीं। अब हाल यह कि दिन में आजमगढ़ हेतु प्रथम बस सायं चार बजे प्रस्थान करती हैं। उधर पूर्व में मादी सिपाह से गाजीपुर वाया अमिला, घोसी बस चलती थी पर चार वर्ष से ठप है जबकि उक्त मार्ग पर आज भी निजी बसों में सवारियों को बैठने हेतु सीट बमु्िश्कल नसीब होती है। घोसी से मऊ डिपो की फैजाबाद होकर गोंडा जाने वाली बस भी अब बंद है तो सूरजपुर-सुल्तानपुर-घोसी-गाजीपुर बस भी ठप है। घोसी से प्रात:काल नगरा होकर बलिया जाने वाली बस को बंद हुए अरसा बीत गया जबकि उक्त बस के संचालन का मुद्दा कई बार उठा। बहरहाल उक्त सभी मार्ग निजी साधनों के हवाले हैं। ऐसे में सवाल यह कि जो मार्ग निगम के लिए घाटे के हैं वही निजी संचालकों के लिए मुफीद क्यों साबित होते हैं।


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