गेहूं के डंठल से बनाएं कंपोस्ट खाद
जागरण संवाददाता, मऊ : कृषि उपनिदेशक एसपी श्रीवास्तव किसानों को खेत में डंठल या पुआल किसी भी हाल मे
जागरण संवाददाता, मऊ : कृषि उपनिदेशक एसपी श्रीवास्तव किसानों को खेत में डंठल या पुआल किसी भी हाल में न जलाने की सख्त ताकीद करते हैं। उन्होंने इस डंठल से कंपोस्ट उर्वरक तैयार किए जाने की सलाह दी है। दरअसल कंबाइन मशीन से गेहूं की कटाई के बाद खेत में डंठल बच जाता है। किसान इसको जलाकर जुताई कर देते हैं। जबकि कृषि वैज्ञानिक इसे खेत एवं पर्यावरण दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात करते हैं। वे बताते हैं कि जानकारी के अभाव में किसान 1000-1500 वर्ष में बनी मिट्टी की ऊपरी सतह (ह्यूमस) को एक मिनट में नष्ट कर खेत की उत्पादन क्षमता का सत्यानाश कर देता है। जिस तरह पृथ्वी पर 75 फीसदी पानी होने के बावजूद पीने योग्य शुद्ध जल की मात्रा तीन फीसदी है उसी तरह खेती योग्य जमीन भी मात्र पांच फीसदी ही है। खेती योग्य जमीन या खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह जिसे ह्यूमस कहते हैं के निíमत होने में एक हजार से डेढ़ हजार वर्ष लगते हैं। इसमें तमाम कार्बनिक पदार्थ एवं जीवाश्म होते हैं। खेत में डंठल जलाने पर मिट्टी का तापमान इतना बढ़ जाता है कि इसमें मौजूद कार्बनिक पदार्थ जलकर नष्ट हो जाते हैं। इससे कार्बन की मात्रा घट जाती है तो उत्पादन प्रभावित होता है। तमाम लाभकारी या किसान के मित्र कीडे़ भी मर जाते हैं। इससे मिट्टी की संरचना प्रभावित होती है। डंठल जलाने से वातावरण प्रदूषित होने के साथ ही बहुधा आगजनी की घटनाएं भी हो रही हैं। ऐसे में किसान कदापि किसी भी फसल का डंठल या अवशेष न जलाएं। उधर किसान सवाल उठाते हैं कि कि डंठल न जलाएं तो जुताई कैसे होगी। उनका इस बाबत कहना है कि किसान दो तरह से इस डंठल से कंपोस्ट उर्वरक बना सकते हैं। एक तो खेत में किसी स्थान पर या गड्ढे में सारे अवशेष एकत्रित कर दें। इस पर पानी का छिड़काव कर यूरिया दें। सात से दस दिनों में सारा डंठल सड़कर कंपोस्ट खाद बन दजाएगा। दूसरा विकल्प यह है कि ताई से जुताई कर दें। फिर पानी लगाकर या यूं ही ढैंचा का बीज छिटक दें। यदि बिना पानी के छिड़काव किया है तो बारिश होते ही ढैंचा का जमाव प्रारंभ होगा। ढैंचा बड़ा होने तक गेहूं के डंठल स्वत: कंपोस्ट खाद बन जाएंगे।